नई दिल्ली: राष्ट्रीय पोषण सप्ताह पूरे देश में 1 से 7 सितम्बर तक मनाया जाएगा। 2017 के लिए राष्ट्रीय पोषण सप्ताह की थीम है ‘नवजात एवं बाल आहार प्रथाएं- बेहतर बाल स्वास्थ्य’। इस वार्षिक कार्यक्रम का मूल उद्देश्य स्वास्थ्य के लिए पोषण के महत्व के प्रति जागरूकता बढ़ाना है। स्वास्थ्य उत्पादकता, आर्थिक विकास और अन्ततः राष्ट्रीय विकास पर प्रभाव डालता है।
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय का आहार एवं पोषण परिषद 30 राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों स्थित अपने 43 सामुदायिक आहार और पोषण इकाईयों के माध्यम से राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों के विभागों, राष्ट्रीय संस्थानों, स्वयं सेवी संगठनों से समन्वय स्थापित करेगा तथा किसी प्रमुख विषय पर कार्यशाला, प्रशिक्षण कार्यक्रम, तथा सामुदायिक बैठकों का आयोजन करेगा।
राज्य, जिला तथा गाँव स्तर पर अऩेक कार्यक्रम आयोजित किए जाएगें और इसमें सस्ते पोषक भोजन की विधि भी बताई जाएगी। स्कूल शिक्षकों, आगनवाड़ी कार्यकर्ताओं, ग्रामीण महिलाओं तथा महिला समितियों के समक्ष प्रदर्शनी के माध्यम से विभिन्न आयु वर्गों के लिए सस्ते पोषक भोजन की विधि बताई जाएगी। गाँव स्तर पर कठपुतली, नृत्य, नाटक तथा फिल्मों के माध्यम से पोषण के प्रति जागरुकता बढ़ाई जाएगी।
वर्तमान और आगे आने वाली पीढ़ी के जीवित रहने, स्वास्थ्य तथा विकास के लिए पोषण एक आवश्यक मुद्दा है। ऐसे नवजात जिनके जन्म के समय वजन निर्धारित सीमा से कम होता है उन्हें बीमारियों की आशंका ज्यादा रहती है। कुपोषित बच्चों की बुद्धि मत्ता भी कम होती है। सभी आयु वर्गों के लोगों का पोषण तथा स्वास्थ्य राष्ट्रीय आर्थिक संपदा होती है।
राष्ट्रीय विकास के लिए आबादी के पोषण स्तर में सुधार आवश्यक है। एनएफएचएस4 द्वारा भी विशेषकर महिलाओं और बच्चों के पोषण स्तर में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज नही की जा सकी है।
कम वजन वाले लोगों की संख्या में 6.8 प्रतिशत की कमी आई है। रक्त की कमी वाले लोगों की संख्या में भी 11 प्रतिशत की कमी आई है। कुपोषण को केवल गरीबी के संदर्भ में नही देखा जाना चाहिए। यह एक राष्ट्रीय समस्या है और उत्पादकता व आर्थिक विकास पर इसका कुप्रभाव पड़ता है।
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