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सीसीआई ने कंपनी संयोजन के नियमन के तहत गैर-प्रतिस्पर्धा पाबंदियों पर गौर करने के लिए आम जनता से मांगी है उनकी राय

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नई दिल्ली: भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) कंपनी संयोजनों की समीक्षा करते समय विलय और अधिग्रहण में निर्दिष्‍ट गैर-प्रतिस्पर्धा पाबंदियों पर गौर करता रहा है। इस बारे में सूचित करने वाले पक्षों (पार्टी) के लिए गैर-प्रतिस्पर्धा पाबंदियों पर विभिन्‍न जानकारियां देना आवश्यक है, ताकि इस पर सही ढंग से गौर किया जा सके। सीसीआई ने एक मार्गदर्शक नोट जारी किया है जिसमें यह बताया गया है कि किन-किन परिस्थितियों में गैर-प्रतिस्पर्धा पाबंदी को ‘सहायक’ या ‘सहायक नहीं’ माना जाएगा। मार्गदर्शक नोट में यह प्रावधान है कि आम तौर पर सद्भावना या साख एवं आवश्‍यक जानकारियों का हस्तांतरण करने के मामले में 3 साल का गैर-प्रतिस्पर्धा दायित्व जायज है और केवल सद्भावना या साख का ही हस्तांतरण करने के मामले में दो साल का गैर-प्रतिस्पर्धा दायित्व उचित है। इसमें यह भी बताया गया है कि गैर-प्रतिस्पर्धा का दायरा केवल बेची गई कंपनी और उस क्षेत्र तक ही सीमित रहेगा जहां इसका संचालन किया जाता था। हालाँकि, यह पता लगना कि पाबंदी ‘सहायक नहीं’ है, उससे अधिनियम के प्रावधानों के तहत उल्लंघन का कोई भी अनुमान नहीं लगाया जा सकता है।

यह देखा गया है कि गैर-प्रतिस्पर्धा पाबंदियों के आकलन के लिए मानकों का एक सामान्य संग्रह निर्दिष्‍ट करना संभवत: आधुनिक कारोबारी माहौल में उचित नहीं है। वैसे तो किसी विशेष मामले पर विस्‍तार से गौर करना संभव हो सकता है, लेकिन यह संयोजन के मामलों में निर्धारित समयसीमा को ध्यान में रखते हुए शायद संभव नहीं है।

अत: इसे ध्‍यान में रखते हुए सीसीआई ने संयोजन नियमन [1] में फॉर्म I के पैरा 5.7 को हटाने का प्रस्ताव किया है, जिसके तहत किसी संयोजन के संबंधित पक्षों के बीच स्‍वीकृति प्राप्‍त गैर-प्रतिस्पर्धा पाबंदियों और उसके औचित्य के बारे में जानकारियां मांगी जाती हैं। इससे किसी संयोजन के संबंधित पक्षों को गैर-प्रतिस्पर्धा पाबंदियों का निर्धारण करने में लचीलापन प्राप्‍त होगा और इसके साथ ही उन पर सूचनाएं देने का बोझ भी कम हो जाएगा। हालांकि, संबंधित पक्ष यह सुनिश्चित करने के लिए उत्‍तरदायी होंगे कि उनकी गैर-प्रतिस्पर्धा व्यवस्थाएं सही मायनों में प्रतिस्पर्धा के अनुरूप होंगी। गैर-प्रतिस्पर्धा पाबंदियों से उत्पन्न होने वाली प्रतिस्पर्धा संबंधी चिंता, यदि कोई हो, पर अधिनियम की धारा 3 और/या 4 के तहत गौर किया जा सकता है।

संयोजन नियमनों के प्रारूप संशोधन की एक प्रति सीसीआई की वेबसाइट (www.cci.gov.in ) पर उपलब्ध है। आम जनता से उनकी राय मांगी गई है। लोग अपनी राय combination.cci@nic.in पर 15 जून 2020 तक ईमेल कर सकते हैं।

[1] भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (संयोजनों से संबंधित कारोबारी सौदे के संबंध में प्रक्रिया) नियमन, 2011

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