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परवेज मुशर्रफ को भले ही फांसी की सजा दी गई, लेकिन उनके साथ वही होगा जो PAK सेना चाहेगी

देश-विदेश

भारत में कुछ लोग हिंसक प्रदर्शन करके संविधान को बचाने का दावा कर रहे हैं. लेकिन पाकिस्तान में संविधान के उल्लंघन पर पूर्व राष्ट्रपति को फांसी की सज़ा दी गई है. पाकिस्तान की राजनीति में षड़यंत्र हमेशा से एक अहम किरदार अदा करता रहा है. पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेश मुशर्रफ ऐसी षड़यंत्रकारी राजनीति का जीता जागता प्रमाण हैं. पाकिस्तान की विशेष अदालत ने 77 वर्षीय परवेज मुशर्रफ को राजद्रोह के मामले में फांसी की सजा सुनाई है. सबसे पहले आप ये समझिए कि परवेज मुशर्रफ पर क्या इल्जाम लगाए गए हैं और क्या 77 वर्ष की उम्र में मुशर्रफ अपनी सबसे मुश्किल चुनौती का मुकाबला कर पाएंगे? 9 वर्षों तक पाकिस्तान पर शासन करने वाले परवेज मुशर्रफ पर, पाकिस्तान में वर्ष 2007 में इमरजेंसी लगाकर संविधान का उल्लंघन करने का आरोप है. वर्ष 2013 में उन पर केस चलाया गया था. वर्ष 2014 में इस केस में मुशर्रफ को दोषी साबित किया गया था. इसके बाद वर्ष 2016 में मुशर्रफ ने पाकिस्तान छोड़ दिया था और तब से वो दुबई में रहकर अपना इलाज करा रहे हैं.

पाकिस्तान की स्पेशल कोर्ट ने मुशर्रफ को आदेश दिया था कि वो 5 दिसंबर 2019 को कोर्ट में अपना बयान दर्ज कराएं. इसके बाद दुबई के एक अस्पताल से परवेज मुशर्रफ ने एक वीडियो संदेश रिकॉर्ड करके न्‍यायिक आयोग को भेज दिया. इस वीडियो में उन्होंने अपनी बिगड़ती सेहत का हवाला देते हुए बताया कि इस हालत में वो पाकिस्तान आकर अपना बयान दर्ज नहीं करा सकते .

अल्लाह, आर्मी और अमेरिका
एक कहावत है कि अल्लाह, आर्मी और अमेरिका. इन तीनों की मर्जी से ही पाकिस्तान में सभी फैसले लिए जाते हैं. लेकिन शायद परवेज मुशर्रफ के साथ ये तीनों ही नहीं हैं. पाकिस्तान की स्पेशल कोर्ट ने संविधान के Article 6 के अंतर्गत मुशर्रफ को मौत की सजा सुनाई है. पाकिस्तान के कानूनी जानकारों के मुताबिक वर्ष 1973 में बने इस कानून के तहत पहली बार किसी को फांसी की सजा दी गई है. मुशर्रफ ने पाकिस्तान में इमरजेंसी क्यों लगाई थी? वर्ष 1998 में तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने जनरल परवेज मुशर्रफ को पाकिस्तान का सेनाध्यक्ष बनाया था. लेकिन वर्ष 1999 में जनरल मुशर्रफ ने तख्तापलट करके पाकिस्तान की सत्ता हथिया ली थी. इसके बाद वर्ष 2008 तक उन्होंने पाकिस्तान पर शासन किया था .

वर्ष 2007 में परवेज मुशर्रफ ने पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस इफ्तिखार मुहम्मद चौधरी को पद से हटाने की कोशिश की थी. इसके बाद वकीलों ने पूरे पाकिस्तान में विरोध प्रदर्शन किया था. तत्कालीन राष्ट्रपति मुशर्रफ ने पाकिस्तान में इमरजेंसी लगा दी थी. वर्ष 2013 में उन पर देशद्रोह का केस चलाया गया था. उन पर संविधान को निलंबित करने और नेताओं और जजों को हिरासत में रखने का आरोप है.

वर्ष 2014 में उन्हें दोषी करार दिया गया था. इसके खिलाफ मुशर्रफ की अपील के बाद ये केस चलता रहा और अब इसमें सजा दी गई है. विशेष अदालत के तीन जजों ने 2-1 से ये फैसला सुनाया है. यानी दो जज मुशर्रफ को मौत की सजा देने के पक्ष में थे और एक ने इसका विरोध किया.

मुशर्रफ इस सजा के खिलाफ अगले 30 दिनों में सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सकते हैं. लेकिन नियम अनुसार चुनौती देने के लिए परवेज मुशर्रफ को पाकिस्तान जाना होगा .अब सवाल है कि दुबई से परवेज मुशर्रफ को पाकिस्तान कैसे ले जाया जाएगा? ऐसे मामलों के लिए UAE और पाकिस्तान के बीच कोई स्पष्ट संधि नहीं है. यानी अगर परवेज मुशर्रफ की फांसी की सजा को पाकिस्तान का सुप्रीम कोर्ट बरकरार रखता है तो भी उन्हें पाकिस्तान लाना आसान नहीं होगा .

एक और मुद्दा ये है कि इमरान खान ने पिछले महीने पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को इलाज कराने के लिए लंदन जाने की इजाजत दी है. पाकिस्तान में घोटाले के आरोपों में फंसे नवाज शरीफ को 7 साल की सजा मिली है. उनको मिली इजाजत में ये शर्त है कि बीमारी ठीक होने के बाद उन्हें वापस पाकिस्तान आकर अपनी सजा पूरी करनी होगी . ऐसे हालात में दुबई में अपनी बीमारी का इलाज करा रहे परवेज मुशर्रफ को इमरान खान कैसे वापस लाएंगे?

पाकिस्‍तानी सेना
इस बीच स्पेशल कोर्ट के इस आदेश के बाद पाकिस्तान की सेना ने दुख जाहिर करते हुए कहा है कि 40 साल तक सेना और पाकिस्तान की सेवा करने वाला गद्दार नहीं हो सकता है. पाकिस्तान के इतिहास में पहली बार किसी पूर्व सेनाध्यक्ष पर देशद्रोह का आरोप साबित हुआ है. लेकिन पाकिस्तान की सेना का साथ मिलने के बाद इस बात की उम्मीद कम है कि परवेज मुशर्रफ को मौत की सजा मिलेगी.

दरअसल मुशर्रफ को फांसी की सजा सुनाई गई है. उसके पीछे पाकिस्तान की बदला लेने वाली राजनीति है. लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि मुशर्रफ दूध के धुले हैं. वर्ष 1999 में पाकिस्तान के तत्कालीन सेनाध्यक्ष जनरल परवेज मुशर्रफ ने कारगिल में भारतीय सीमा में घुसपैठ की थी. भारत और पाकिस्तान के बीच नियंत्रण रेखा पर हुए इस संघर्ष में पाकिस्तान की हार हुई थी.

कारगिल युद्ध
कारगिल युद्ध के कुछ महीनों बाद ही तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने जनरल परवेज मुशर्रफ को सेनाध्यक्ष पद से बर्खास्त कर दिया था. और तो और, विदेश दौरे से लौट रहे जनरल मुशर्रफ के हवाई जहाज को पाकिस्तान में उतरने भी नहीं दिया गया था. सेना ने कुछ ही घंटों में तख्तापलट करके पाकिस्तान की सत्ता पर मुशर्रफ को काबिज कर दिया था. पाकिस्तान में लोग मुशर्रफ पर हत्या के भी आरोप लगाते हैं.

वर्ष 2006 में पाकिस्तान की सेना ने हमला करके बलोचिस्तान के राष्ट्रवादी नेता नवाब अकबर खान बुगती की हत्या कर दी थी. माना जाता है कि इस हमले का आदेश तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने दिया था. इसी के बाद से बलोचिस्तान में पाकिस्तान के जुल्मों के खिलाफ विरोध और बढ़ता गया. बलोचिस्तान की आज़ादी का ये संघर्ष आज भी चल रहा है.

परवेज मुशर्रफ पर एक और आरोप है… कि उन्होंने पाकिस्तान की पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो की हत्या का आदेश दिया था. वर्ष 2007 में पाकिस्तान के रावलपिंडी में एक चुनावी रैली में बेनजीर भुट्टो की हत्या कर दी गई थी . लेकिन मुशर्रफ ने हमेशा इन आरोपों से इनकार किया है.

परवेज मुशर्रफ, पाकिस्तान की सत्ता छोड़ने के बाद वर्ष 2008 से लेकर 2013 तक पाकिस्तान से बाहर रहे. करीब 5 वर्षों के बाद पाकिस्तान में चुनावों से ठीक पहले मुशर्रफ लौटे. इसी वर्ष उन पर देशद्रोह केस की सुनवाई के लिए स्पेशल कोर्ट बनाई गई थी. ये मुशर्रफ की जिंदगी का सबसे बुरा वक्त था.

फौज और तख्‍तापलट
पाकिस्तान में फांसी और सजा को एक राजनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल किया जाता है. ऐसा लगता है जैसे सत्ता से बाहर जाते ही पाकिस्तान के नेताओं के लिए जेल जाने के दरवाजे खुल जाते हैं.

वर्ष 2018 में पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को 7 साल की सज़ा हुई थी. शायद यही वजह है कि आज पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने मुशर्रफ के पक्ष में बयान दिया है. जबकि 20 वर्ष पहले साल 1999 में मुशर्रफ ने ही नवाज शरीफ सरकार का तख्तापलट किया था. इसके बाद भी आज नवाज शरीफ…मुशर्रफ के साथ दिखाई दे रहे हैं.

अभी पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान हैं लेकिन उन्हें भी Elected नहीं Selected प्रधानमंत्री कहा जाता है. ये कहा जाता है कि वो एक कठपुतली की तरह पाकिस्तान की सेना के आदेशों का पालन करते हैं . पाकिस्तान में पिछले 72 वर्षों में करीब 31 साल तक सेना का शासन रहा है. और इसकी शुरुआत पाकिस्तान को आजादी मिलने के 11 वर्षों के बाद ही हो गई थी.

वर्ष 1958 में जनरल अयूब खान ने पाकिस्तान में पहली बार मार्शल लॉ लगाया था. ये पाकिस्तान में सेना के तानाशाही वाले शासन की शुरुआत थी. वर्ष 1977 में पाकिस्तान के चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ जनरल जिया उल हक ने तत्कालीन प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो का तख्ता पलट किया था . वर्ष 1979 में जुल्फिकार अली भुट्टो को फांसी दे दी गई थी. भुट्टो पर आरोप था कि उन्होंने अपने राजनैतिक विरोधी कि हत्या करवाई थी. यानी सिर्फ 2 साल से कम वक्त में ज़ुल्फिकार अली भुट्टो पर मुकदमा चला और फैसला भी हो गया.

उसी दौरान बेनजीर भुट्टो को भी हिरासत में ले लिया गया. वर्ष 1977 से 1984 के बीच वो कई बार जेल गईं और रिहा हुईं. बाद में वो लंदन जाकर रहने लगीं. भ्रष्टाचार के आरोपों की वजह से बेनज़ीर ने वर्ष 1999 में पाकिस्तान छोड़ दिया. हालांकि, वर्ष 2007 में पाकिस्तान में एक चुनावी रैली में उनकी हत्या कर दी गई.

वर्ष 1988 में जब जनरल ज़ियाउल हक़ का विमान बहावलपुर के रेगिस्तान में गिरा, तब से लेकर अब तक इससे जुड़े कई षड्यंत्रों पर काफ़ी चर्चा हुई है. बहुत से लोग अब भी मानते हैं कि जनरल ज़िया उल हक़ की मौत एक साधारण विमान दुर्घटना में नहीं हुई थी, बल्कि साजिश का नतीजा थी.

वैसे पाकिस्तान में सेना के जनरलों द्वारा होने वाला तख्तापलट कोई नई बात नहीं है. यही वजह है कि वहां की जनता भी लोकतंत्र पर कम भरोसा करती है. वर्ष 2012 में हुई एक रिसर्च के मुताबिक पाकिस्तान में केवल 42 प्रतिशत लोग लोकतंत्र के पक्ष में थे. पूरी दुनिया ये जानती है कि पाकिस्तान लोकतंत्र से नहीं चलता, बल्कि वहां की सेना जो चाहती है वो करती है. पाकिस्तान में सेना जिसे चाहती है, उसे प्रधानमंत्री बनाती है और जिसे चाहती है उसे रास्ते से हटा देती है. परवेज मुशर्रफ के साथ भी वही होगा जो पाकिस्तान की सेना चाहेगी. Source Zee News

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