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उपराष्ट्रपति ने स्कूलों से अपील करते हुए कहा कि वे कम उम्र से ही बच्चों में मजबूत चरित्र और राष्ट्रीय मूल्यों का समावेश करें

देश-विदेश

उपराष्‍ट्रपति श्री एम. वेंकैया नायडु ने आज स्कूलों से अपील करते हुए कहा कि कम उम्र से ही वे बच्चों में मजबूत नैतिक चरित्र को गढ़ने और एकता, सौहार्द्र व सार्वभौमिक भाईचारे की भावना का समावेश करने की कोशिश करें।

श्री नायडु ने कहा, “हमारे पुरखों ने ऐसे भारत की कल्पना की थी, जो धर्म, जाति, नस्ल, लिंग या जन्म स्थल के आधार पर भेदभाव ना करता हो। ऐसे समावेशी और बहुलतावादी मूल्य ही भारत को तमाम देशों से अलग बनाते हैं। तमाम विषम परिस्थितियों में भी इन मूल्यों को सुरक्षित रखने और इनका पालन करने की शपथ लें।”

उपराष्ट्रपति ने आज हैदराबाद के रामनाथपुर में हैदराबाद पब्लिक स्कूल की पचासवीं सालगिरह के कार्यक्रम का शुभारंभ करते हुए यह बातें कहीं। स्कूल को इस उपलब्धि पर बधाई देते हुए उन्होंने कहा कि शैक्षणिक संस्थानों में उत्कृष्टता को नारा बनाया जाना चाहिए। उन्होंने स्कूल से “राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का पूरा फायदा उठाने” की अपील की और छात्रों के बौद्धिक, नैतिक तथा सृजनात्मक स्तर के चहुंमुखी विकास को गढ़ने का आह्वान किया।

स्कूलों में मातृभाषा के मुद्दे पर श्री नायडु ने चिंता जताते हुए कहा कि कुछ स्कूल “छात्रों की मातृभाषा को हीनता की दृष्टि से देखते हैं और उन्हें सिर्फ अंग्रेजी बोलने के लिए प्रेरित करते हैं।” उन्होंने कहा कि “किसी के मातृभाषा में सीखना और मुक्त संचार करना ना केवल शिक्षा के परिणामों को बेहतर करता है, बल्कि इससे आत्मविश्वास में इजाफा भी होता है और छात्रों के सांस्कृतिक जुड़ाव की भावना भी बेहतर होती है।”

राष्ट्रीय शिक्षा नीति के सुझावों की तरफ इशारा करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि वे चाहते हैं कि प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा दी जाए और इसे धीरे-धीरे ऊपरी स्तर पर भी ले जाया जाए। उन्होंने जोर देकर कहा, “हमारे बच्चों के व्यक्तित्व को आकार देने और उनके चरित्र को गढ़ने में मातृभाषा के योगदान को बयां नहीं किया जा सकता।”

सफलता के लिए अनुशासन और समय की पाबंदी को बेहद अहम गुण बताते हुए उन्होंने छात्रों से ऊंचा लक्ष्य बनाने और जिंदगी में प्रगति के लिए कड़ी मेहनत करने को कहा। खुद को देश के दूसरे सबसे ऊंचे संवैधानिक पद पर पहुंचने के लिए अपने भीतर समाहित ‘अनुशासन, प्रतिबद्धता और कड़ी मेहनत’ के गुणों को जिम्मेदार बताते हुए श्री नायडु ने कहा कि “कड़ी मेहनत का कोई दूसरा विकल्प नहीं होता।”

स्कूल के लंबे-चौड़े और हरे-भरे कैंपस के लिए श्री नायडु ने एचपीएस, रामनाथपुर की प्रशंसा की और कहा कि सभी शैक्षणिक और दूसरे संस्थानों को भी इस तरीके से डिजाइन किया जाना चाहिए कि उनमें सूर्य की रोशनी पर्याप्त मात्रा में पहुंचे और हवा का निर्बाध प्रवाह परिसर में बना रहे। प्रकृति के साथ प्रेम और सौहार्द्र से रहने पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि वे चाहते हैं कि छात्र ना केवल अपने अध्ययन पर, बल्कि अपनी शारीरिक अवस्था पर भी ध्यान केंद्रित करें।

पारंपरिक ‘वंदना नृत्यम’ का प्रदर्शन करने वाले युवा छात्रों की तारीफ करते हुए उपराष्ट्रपति ने कम उम्र से ही छात्रों को भारतीय कला और संस्कृति अपनाने के लिए प्रेरित करने को कहा। उन्होंने कहा कि भारत में संगीत और नृत्य की महान परंपरा है, जो ना केवल हमारी सांस्कृतिक परंपरा का हिस्सा है, बल्कि यह तनाव को दूसरा करने वाले कारगर उपाय भी हैं।

इस अवसर पर तेलंगाना के गृहमंत्री श्री मोहम्मद महमूद अली, विधायक श्री बी सुभाष रेड्डी, शिक्षा सचिव श्रीमति वकाटी करूणा, हैदराबाद पब्लिक स्कूल के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स के अध्यक्ष, स्कूल प्रबंधन, स्टाफ, अभिभावक, स्कूल के पूर्व छात्र और दूसरे लोग मौजूद रहे।

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