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केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. मनसुख मंडाविया ने ब्रिक्स टीका अनुसंधान एवं विकास केंद्र का शुभारंभ किया

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“यह देखते हुए कि भारत, दुनिया के सबसे बड़े टीका निर्माण उद्योगों में से एक है जो 150 से अधिक देशों को टीकों की आपूर्ति करता है और डब्ल्यूएचओ की टीका आवश्यकताओं के 65-70% को पूरा करता है, भारत ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) देशों के साथ-साथ दुनिया के दूसरे देशों के लिए भी टीके विकसित करने के लिए अपने मजबूत टीका निर्माण उद्योग की पेशकश करने को तैयार है” यह बात केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री डॉ. मनसुख मंडाविया ने आज यहां वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से टीका सहयोग पर ब्रिक्स टीका अनुसंधान एवं विकास केंद्र और कार्यशाला का शुभारंभ करते हुए कही।

डॉ. मंडाविया ने विशेष जोर देते हुए कहा, “यह केंद्र टीका अनुसंधान और विकास में ब्रिक्स देशों के पूरक लाभों को एक साथ जोड़ने में मदद करेगा और संक्रामक रोगों को रोकने तथा नियंत्रित करने के लिए ब्रिक्स देशों की क्षमता को बढ़ावा देगा और अन्य विकासशील देशों को जरूरत पड़ने पर समय पर सहायता प्रदान करेगा।” इसमें बुनियादी अनुसंधान एवं विकास (आरएंडडी), प्रीक्लिनिकल एवं क्लिनिकल अध्ययन शामिल होने चाहिए और परीक्षण टीका उम्मीदवारों की जांच करने के लिए परीक्षण विकसित करने और उनका मानकीकृत करने के लिए ब्रिक्स देशों की प्रयोगशाला क्षमताओं को मजबूत करना चाहिए। उन्होंने कहा “केंद्र टीकाकरण संसाधनों को सुव्यवस्थित करने और सुरक्षित तथा प्रभावकारी कोविड -19 टीकों तक समान पहुंच की सुविधा प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा”।

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने इस बात पर प्रकाश डाला कि “ब्रिक्स टीका अनुसंधान एवं विकास (आर एंड डी) केंद्र अन्य देशों के साथ सहयोग करने, अपने अनुभवों को साझा करने, आपसी लाभ के लिए सहयोग करने और सार्वजनिक स्वास्थ्य महत्व के टीके के विकास में तेजी लाने के लिए एक स्वागत योग्य पहल है। यह ब्रिक्स देशों और दुनिया के दूसरे देशों के नागरिकों के लिए आर्थिक सुधार की दिशा में हमें प्रेरित करने के लिए जीवन और आजीविका को बचाने में सक्षम होगा।”

वर्चुअल तरीके से इस केंद्र के शुभारम्भ के अवसर पर डॉ. मनसुख मंडाविया ने टीकों के अनुसंधान और विकास की दिशा में सामूहिक रूप से वैज्ञानिक प्रयास करने के लिए ब्रिक्स देशों के प्रति आभार और प्रशंसा व्यक्त की। उन्होंने कहा, “एक वैश्विक महामारी के बीच, मैं इस केंद्र के शुभारंभ के समन्वय के लिए ब्रिक्स अध्यक्षता की सराहना करता हूं। यह वैश्विक महामारी प्रतिक्रिया के प्रति ब्रिक्स देशों की प्रतिबद्धता की साक्षी है।” केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने टीका अनुसंधान और विकास की दिशा में काम करने वाले सभी लोगों की सराहना की। “मैं स्थानीय और वैश्विक स्तर पर स्वास्थ्य पेशेवरों, वैज्ञानिकों, शोधकर्ताओं, दवा नियामक अधिकारियों और नीति निर्माताओं के अथक प्रयासों के लिए अपना आभार और प्रशंसा व्यक्त करना चाहता हूं, जिन्होंने इस वैश्विक महामारी की शुरुआत से ही स्वास्थ्य प्रणाली और टीका विकास में मुख्य सहारा यानी मेरुदंड के रूप में मजबूती के साथ काम किया है। उन्होंने आगे कहा कि कोविड-19 वायरस की आने के बाद एक साल से भी कम समय में कोविड-19 के लिए सुरक्षित और प्रभावी टीकों का विकास और अनुमोदन एक अविश्वसनीय वैज्ञानिक उपलब्धि है। इसके साथ ही इसने हमें भविष्य के टीके के विकास में क्या संभव है, इसके बारे में राह दिखाई है।

डॉ. मंडाविया ने कहा कि डब्ल्यूएचओ के आर एंड डी ब्लूप्रिंट और अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य विनियम इस केंद्र के लिए मार्गदर्शक सिद्धांत होने चाहिए। उन्होंने प्रस्ताव रखा कि “ब्रिक्स देशों को 2022 के मध्य तक दुनिया की 70% आबादी को कोविड-19 टीके लगाने के डब्ल्यूएचओ के निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए एसीटी-ए, कोवैक्स, सीईपीआई, आदि जैसे प्रयासों में मदद करने के लिए मिलकर काम करना चाहिए।” उन्होंने कहा कि “महामारी और स्वास्थ्य आपात स्थितियों के अलावा,  उच्च रुग्णता और उच्च मृत्यु दर वाले टीके से बचाव योग्य रोगों के क्षेत्र में और एड्स, टीबी आदि जैसे उन बीमारियों के लिए जिनके पास वर्तमान में टीके उपलब्ध नहीं हैं, जैसे देशों के बीच सहयोग की पर्याप्त गुंजाइश है।”

अपने देश की क्षमताओं और दुनिया के सबसे बड़े कोविड-19 टीकाकरण अभियान की सफलता के बारे में विस्तार से बताते हुए डॉ. मंडाविया ने कहा कि भारत ने अब तक 1.81 अरब से अधिक टीकाकरण किया है। उन्होंने जोर देकर कहा कि देश में टीका अनुसंधान एवं विकास के एक मजबूत और अनुकूल परिस्थिति के बिना यह संभव नहीं होता। “भारत ने अब तक कोविड-19 आपातकालीन उपयोग के लिए 9 टीकों को मंजूरी दी है, जिनमें से 5 स्वदेशी हैं। इसमें दुनिया का पहला एम-आरएनए वैक्सीन जेनोवा भी शामिल है जिसे स्वदेशी रूप से विकसित किया गया है और इसका उत्पादन डब्ल्यूएचओ हस्तांतरण प्रौद्योगिकी कार्यक्रम के बाहर किया गया है। उन्होंने कहा कि भारत में टीका उद्योग दो तरीके से काम करता है- डे-नोवो उत्पाद विकास यानी देश के भीतर और स्थानीय-वैश्विक साझेदारी के माध्यम से प्रौद्योगिकी हस्तांतरण। उन्होंने हितधारकों को भारत के साथ सहयोग करने के लिए आमंत्रित करते हुए कहा, “हमने स्थानीय और साथ ही वैश्विक प्रासंगिकता के रोगों के लिए टीका अनुसंधान और विकास प्रयासों को मजबूत करने को प्राथमिकता दी है।”

विभिन्न क्षेत्रों में अपने सहयोग को मजबूत करने की दिशा में ब्रिक्स देशों की प्रतिबद्धता के साथ, टीका अनुसंधान और विकास पर विशेष जोर दिया गया। इस संबंध में, जोहान्सबर्ग घोषणा 2018 में ब्रिक्स टीका अनुसंधान एवं विकास केंद्र स्थापित करने का प्रस्ताव रखा गया था। वर्षों से और विशेष रूप से महामारी के दौरान, इस प्रक्रिया में तेजी लाई गई और अंत में नई दिल्ली में XIII ब्रिक्स शिखर सम्मेलन की घोषणा में, नेताओं ने वर्चुअल प्रारूप में ब्रिक्स टीका आर एंड डी केंद्र के जल्द शुभारंभ के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराई।

ब्रिक्स देशों की सरकारों की मदद से, प्रत्येक ब्रिक्स देश ने अपने राष्ट्रीय केंद्रों अर्थात् ओस्वाल्डो क्रूज़ फाउंडेशन (फियोक्रूज़) के इम्यूनोबायोलॉजिकल टेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट (बायोमंगुइनहोस), इन्फ्लुएंजा के स्मोरोडिंटसेव रिसर्च इंस्टीट्यूट, इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर), सिनोवैक लाइफ साइंसेज कंपनी लिमिटेड, दक्षिण अफ्रीकी चिकित्सा अनुसंधान परिषद की भी पहचान की है।

इस समारोह की अध्यक्षता चीन के विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री श्री वांग झिगांग ने की, जिन्होंने देशों से टीकों के निष्पक्ष और समान वितरण को बढ़ावा देने और इस केंद्र तथा इस तरह की अन्य पहलों के माध्यम से ब्रिक्स देशों के बीच तालमेल को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित करने का आग्रह किया। पैनल ने टीका अनुसंधान एवं विकास में सहयोग और कोविड-19 प्रबंधन में उनके अनुभवों के अलावा ब्रिक्स देशों के बीच सहयोगात्मक रूप से भविष्य की महामारियों से निपटने के लिए रणनीतियों पर चर्चा की।

इस बैठक में श्री मार्सेलो क्विरोगा (स्वास्थ्य मंत्री, ब्राजील), श्री मिखाइल मुराश्को (स्वास्थ्य मंत्री, रूस), डॉ. ब्लेड नज़ीमांडे (उच्च शिक्षा, विज्ञान और नवाचार मंत्री, दक्षिण अफ्रीका) और ब्रिक्स देशों के प्रतिनिधि मंडलों तथा वरिष्ठ प्रतिनिधियों एवं अनुसंधान विशेषज्ञों ने भाग लिया।

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