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Text of PM’s address on the occasion of the 5th International Convention of SPIC MACAY at New Delhi – via video conferencing

Text of PM’s address on the occasion of the 5th International Convention of SPIC MACAY at New Delhi – via video conferencing
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त्रिपुरा के गवर्नर श्री तथागत रॉय जी, हरियाणा के गवर्नर प्रोफेसर कप्तान सिंह सोलंकी जी, मंत्रिमंडल में मेरे सहयोगी श्री सुरेश प्रभु जी, स्पिक मैके एडवायडरी बोर्ड के चेयरमैन डॉक्टर कर्ण सिंह जी, चेयरमैन श्री अरुण सहाय जी, कार्यक्रम में उपस्थित अन्य महानुभाव और मेरे युवा साथियों!

“स्पिक मैके” की स्थापना की 40वीं वर्षगाँठ पर हो रहे पांचवे इंटरनेशनल कन्वेन्शन पर आप सभी को बहुत-बहुत बधाई। इस संस्था ने शास्त्रीय संगीत, कला, साहित्य, लोक-संस्कृति के माध्यम से भारतीय विरासत को सहेजने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। देश के लाखों युवाओं को देश की संस्कृति के प्रति जागरूक और प्रेरित किया है।

मैं प्रोफेसर किरण सेठ जी का इस आयोजन के लिए विशेष रूप से अभिनंदन करता हूं। प्रोफेसर किरण सेठ जी पिछले 40 वर्षों से इस सांस्कृतिक आंदोलन को एक कुशल नेतृत्व दे रहे हैं। वो एक ऐसे साधक हैं जिनकी वर्षों की साधना ने भारतीय संगीत और संस्कृति को युवाओं के बीच जीवंत बनाए रखा है।

साथियों, सच्चे साधक अपनी सोच, अपने विचारों से फकीर होते हैं। मोह-माया से परे होते हैं। मैंने एक किस्सा पढ़ा था जब संगीत के एक साधक से पूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने पूछा था कि वो सरकार से क्या सहयोग चाहते हैं। उस साधक ने एक विशेष राग का नाम लेते हुए कहा था कि कई कलाकार उसे अनुशासन से नहीं गाते, उससे खिलवाड़ करते हैं, क्या सरकार इसे रोक सकती है। ये उत्तर सुनकर डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने मुस्कराते हुए सिर झुका दिया था।

संगीत के क्षेत्र में शासन नहीं, केवल अनुशासन चलता है। पिछले 40 वर्षों में आपकी सोसायटी ने जिस अनुशासन के साथ, single-minded focus के साथ, देश के कोने-कोने में स्कूलों और कॉलेजों में जाकर, गांवों और शहरों में छात्रों को इस कार्यक्रम से जोड़ा है, बहुत कम फीस पर कलाकारों को अपने साथ काम करने के लिए तैयार किया है, साधन जुटाए हैं, संसाधन जुटाए हैं, वो अतुलनीय है।

इस संस्था ने अपने समर्थकों के माध्यम से एक ऐसे परिवार का सृजन किया है जिसने भारतीय संस्कृति को भौगोलिक सीमाओं की परिधि से निकालकर दुनिया को जागरूक करने में भी बड़ी भूमिका निभाई है।

आज इंटरनेशनल कन्वेंशन के इस अवसर पर मैं आप सभी के साथ उन महान कलाकारों को भी शुभकामनाएं देता हूं जो पिछले 40 वर्षों से इसे सपोर्ट करते आए हैं। उन सभी व्यक्तियों और संगठनों को भी मैं बधाई देना चाहता हूं जिन्होंने लंबे समय से इस सांस्कृतिक आंदोलन का समर्थन किया है।

इस कार्यक्रम में हिस्सा ले रहे देश और विदेश के छात्र, बहुत भाग्यशाली हैं कि उन्हें भारत के सर्वाधिक प्रतिष्ठित कलाकारों के, एक नहीं बल्कि बहुत सारे concerts को अटेंड करने का अवसर मिला है। इन concerts में आप देश की सांस्कृतिक विविधता, उसकी भव्यता, सुंदरता, अनुशासन, विनम्रता, सहृदयता को महसूस करें। ये हमारे महान देश के प्रतीक हैं, हमारी भारत माता के प्रतीक हैं।

साथियों, हमारे देश की मिट्टी से निकला संगीत, यहां की प्रकृति से जन्मा संगीत केवल सुनने का आनंद नहीं देता, बल्कि दिल और दिमाग तक पहुँचता है। भारतीय संगीत का प्रभाव व्यक्ति की सोच पर, उसके मन पर और उसकी मानसिकता पर भी पड़ता है।

जब हम शास्त्रीय संगीत सुनते हैं, चाहे शैली कोई भी हो, स्थान कोई भी हो, हम इसे भले ही न समझ पाएं लेकिन यदि हम कुछ समय तक इसे ध्यान लगाकर सुनें तो असीम शांति का अनुभव होता है। हमारी तो पारम्परिक जीवनशैली में भी संगीत कूट-कूट कर भरा हुआ है। विश्व के लिए संगीत एक कला है, कई लोगों के लिए संगीत आजीविका का साधन है लेकिन भारत में संगीत एक साधना है, जीवन जीने का एक तरीका है।

Majesty, Magic और Mystic यह भारतीय संगीत की त्रि-गुण सम्पदा है। हिमालय की ऊंचाई, मां गंगा की गहराई, अजंता-एलोरा की सुंदरता, ब्रह्मपुत्र की विशालता, सागर की लहरों जैसा पदन्यास और भारतीय समाज में रची-बसी आध्यात्मिकता इन सबका मिला-जुला प्रतीक बन जाता है। इसीलिए संगीत की शक्ति को समझने और समझाने में लोग अपनी जिंदगी खपा देते हैं।

भारतीय संगीत, चाहे वह लोक संगीत हो, शास्त्रीय संगीत हो या फिर फिल्मी संगीत ही क्यों ना हो, उसने हमेशा देश और समाज को जोड़ने का काम किया है। धर्म-पंथ-जाति की सामाजिक दीवारों को तोड़कर सभी को एक स्वर में, एकजुट होकर एकसाथ रहने का संदेश संगीत ने दिया है। उत्तर का हिन्दुस्तानी संगीत, दक्षिण का कर्नाटक संगीत, बंगाल का रविन्द्र संगीत, असम का ज्योति-संगीत, जम्मू-कश्मीर का सूफी संगीत, इन सभी की नींव है हमारी गंगा- जमुनी सभ्यता।

जब कोई विदेश से भारतीय संगीत और नृत्य कला को समझने, सीखने आता है तो ये जानकर हैरान रह जाता है कि हमारे यहां पैर, हाथ, सिर और शरीर की मुद्राओं पर आधारित, कितनी ही नृत्य शैलियां हैं। ये नृत्य शैलियां भी अलग-अलग कालखंड में अलग-अलग क्षेत्रों में विकसित हुई हैं, उनकी पहचान हैं।

एक और विशेष बात है कि हमारे यहाँ का लोक-संगीत, जन-जातियों ने अपनी निरंतर साधना से विकसित किया है। उस समय की सामाजिक व्यवस्थाओं को, कुरीतियों को तोड़ते हुए उन्होंने अपनी शैली, प्रस्तुति का तरीका और कहानी कहने के अपने तरीके का विकास किया। लोक गायकों, नर्तकों ने स्थानीय लोगों की बातों का उपयोग करते हुए अपनी शैली का निर्माण किया। इस शैली में कठिन प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं थी और इसमें सामान्य जनता भी शामिल हो सकती थी।

आप में से अधिकांश लोग हमारी संस्कृति की इन बारीकियों को, और उसके विस्तार को समझते हैं। लेकिन आज की युवा पीढ़ी में ज्यादातर को इस बारे में पता नहीं है। इसी उदासीनता की वजह से बहुत से वाद्य यंत्र और संगीत की विधाएं विलुप्त होने की कगार पर हैं। बच्चों को गिटार के अलग-अलग स्वरूप तो पता हैं लेकिन सरोद और सारंगी का फर्क कम को पता होता है। ये स्थिति ठीक नहीं।

भारत का संगीत, ये विरासत, इस देश के लिए, हम सभी के लिए आशीर्वाद की तरह है। एक बड़ी सांस्कृतिक विरासत है। उसकी अपनी शक्ति है, ऊर्जा है। हमारे शास्त्रों में कहा गया है कि “राष्ट्रयाम जाग्रयाम वयम” : eternal vigilance is the price of liberty, हमें हर पल सजग रहना चाहिए। हमें अपनी विरासत के लिए हर पल कार्य करना चाहिए।

हम अपनी विरासत के प्रति लापरवाह बनकर नहीं रह सकते। हमारी संस्कृति, हमारी कला, हमारा संगीत, हमारा साहित्य, हमारी अलग-अलग भाषाएं, हमारी प्रकृति, हमारी अनमोल विरासत हैं। कोई भी देश अपनी विरासत को भुलाकर आगे नहीं बढ़ सका है। हम सभी का कर्तव्य है इस विरासत को संभालने का, उसे और सशक्त करने का।

साथियों, आज विश्व पर्यावरण दिवस भी है और हमारा संगीत, हमारी कला हमें अपनी प्रकृति को बचाने का अनवरत संदेश देती है।

इस समय पूरी दुनिया में climate change एक बड़ा विषय बना हुआ है। आने वाली पीढ़ियों के लिए, भविष्य के लिए हमें अपने पर्यावरण को बचाना ही होगा। पिछले तीन वर्षों में पर्यावरण बचाने के लिए भारत ने जो कुछ कदम उठाएं हैं, आज पूरी दुनिया में उनकी चर्चा है। दुनिया भारत की ओर देख रही है और इसलिए बहुत आवश्यक है कि देश के नौजवानों को पर्यावरण संरक्षण के प्रति, अपनी विरासत को बचाने के लिए जागरूक किया जाए।

आप एक साल में सात से आठ हजार कार्यक्रम करते हैं, देश के सैकड़ों शहरों-गांवों-कस्बों में लाखों लोगों से, और विशेषकर युवाओं से सीधा संवाद करते हैं। अगर आप अपने कार्यक्रमों में पर्यावरण के प्रति जागरूकता को भी प्राथमिकता देंगे तो ये भी मानवता की बड़ी सेवा होगा।

आप सभी एक भारत-श्रेष्ठ भारत अभियान को भी मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। एक भारत-श्रेष्ठ भारत अभियान देश की सांस्कृतिक विविधता को मजबूत करने, देश के नागरिकों को अपने देश की धरती पर मौजूद अलग-अलग परंपराओं, भाषाओं, खाने-पीने के तरीके, रहन-सहन से परिचित कराने का प्रयास है।

इसके तहत दो अलग-अलग राज्यों को एक प्लेटफॉर्म पर लाकर, उनके बीच पेयरिंग कराई जा रही है। पेयरिंग के बाद एक राज्य के लोगों को दूसरे राज्य के बारे में जागरूक करने की कोशिश की जा रही है। दूसरे राज्य की भाषा पर आधारित क्विज कंपटीशन, डांस कंपटीशन, खाने-पीने की प्रतियोगिता जैसे आयोजन किए जा रहे हैं।

आपके जैसी संस्था अपने स्तर पर भी इस कड़ी को आगे बढ़ा सकती है। आप अलग-अलग राज्यों के जिन स्कूलों में जाते हैं, उन्हें आपस में पेयरिंग के लिए प्रेरित कर सकते हैं, स्कूल प्रबंधन में संवाद स्थापित करा सकते हैं।

पिछले 40 वर्षों से आप युवा ऊर्जा को एक दिशा देने का प्रयास कर रहे हैं। अब तो हमारा देश दुनिया का सबसे नौजवान देश है। नौजवान ऊर्जा और युवा जोश से भरा हुआ है। इस ऊर्जा को राष्ट्र निर्माण के कार्यों में लगाने के लिए आपके जैसे संस्थान बहुत कुछ कर सकते हैं। इतिहास गवाह है कि जिस देश में युवा शक्ति संगठित होकर राष्ट्र निर्माण में जुट गई, वो देश विकास की नई ऊंचाइयों पर पहुंचा है।

साथियों, 2022 में हमारा देश अपनी स्वतंत्रता के 75वें वर्ष में प्रवेश कर रहा होगा। उस समय तक हमें देश को बहुत सी कुरीतियों से, बहुत सी कमजोरियों से बाहर निकालकर आगे ले जाना है, न्यू इंडिया बनाना है। न्यू इंडिया का ये संकल्प देश के हर व्यक्ति, हर परिवार, हर घर, हर संस्था, हर संगठन, हर शहर-गांव-मोहल्ले का संकल्प है। इस संकल्प को पूरा करने के लिए हम सभी को मिलकर काम करना होगा।

आपसे मेरा आग्रह है कि आप भी वर्ष 2022 को ध्यान में रखते हुए अपने लिए कुछ लक्ष्य अवश्य तय करें।

साथियों, परम्परा का ‘वर्तमान’ से संवाद ही संस्कृतियों को जीवित रखता है। “स्पिक मैके” वर्तमान भी है और संवाद भी। आपका हर प्रतिनिधि देश की संस्कृति और सभ्यता का ध्वजावाहक है। ये ध्वजा ऐसे ही फरहाती रहे, आप नित नई ऊर्जा से सराबोर रहें, इसी शुभकामना के साथ मैं अपनी बात को विराम देता हूं। इस आयोजन के लिए सभी को एक बार फिर बहुत-बहुत बधाई।

धन्यवाद !!!

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