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कार्यशाला में विचार रखते हुए कैबिनेट मंत्री दिनेश अग्रवाल

उत्तराखंड

देहरादून: राजपुर रोड स्थित मधुबन होटल में जलवायु कार्यवाही के लिए राज्य को मजबूत बनाने की रणनीतियों (Strengthening state strategies for climate action) के सम्बन्ध में आयोजित कार्यशाला का उद्घाटन वन वन्यजीव मंत्री उत्तराखण्ड सरकार दिनेश अग्रवाल द्वारा किया गया।
इस कार्यशाला को सम्बोधित करते हुए मा वन मंत्री ने कहा कि वर्तमान समय में वैसे तो पुरी दुनिया जलवायु परिवर्तन को लेकर चिंतित है, फिर भी उत्तराखण्ड जैसे प्रकृति संरक्षक राज्य का चिंतित होना स्वभाविक है। उन्होने कहा कि पिछले कुछ समय से लोगों के मन में प्रकृति को लेकर उस तरह का सम्मान नही रह गया है, जैसा कि हमारे पूर्वजों का रहा है। इसके लिए बहुत हद तक वर्तमान भौतिक सुख संसाधनों की अत्यधिक प्राप्ति तथा व्यक्तिगत जीवनशैली को आरामदायक बनाने की सोच है। उन्होने कहा कि उत्तराखण्ड में वन पंचायतें लम्बे समय से प्रकृति के संरक्षण में कार्य करती आ रही हैं तथा वर्तमान समय में उन्हे वित्तीय व आर्थिक रूप से और सशक्त करने की जरूरत है। उन्होने कहा कि इसके लिए उत्तराखण्ड सरकार ने चार मुख्य वन संरक्षण योजनाएं लागू की हैं जिनमें मेरा पेड़ मेरा धन, चारागाह विकास, जल संरक्षण तथा मानव वन्यजीव संघर्ष की न्यूनता कार्यक्रम शामिल है। उन्होने कहा कि पर्यावरण संरक्षण हेतु केन्द्र व राज्य सरकारें, सिविल समाज तथा आम जनमानस को उचित तालमेल से और पर्यावरण फे्रंडली युक्तियों तथा व्यवहारों को अमल में लाने की आवश्यकता है।
कार्यशाला में मुख्य सचिव उत्तराखण्ड शासन शत्रुघ्न सिंह ने कहा कि जलवायु परिवर्तन को लेकर पिछले कुछ दशक चिंताजनक रहे हैं तथा राष्ट्रीय एवं अन्तराष्ट्रीय स्तर पर लगभग सभी सम्मेलनों में जलवायु परिवर्तन का मुद्दा मुख्यतः रहा है। उन्होने कहा कि यदि समय रहते हम सजग नही हो पाये तो आने वाला समय बहुत भयानक होगा तथा आने वाली पीढियों को हम एक सुनहरा भविष्य में देने में नाकाम रह सकते हैं। उन्होने कहा कि पर्यावरण को संरक्षित करने की जिम्मेदारी सम्पूर्ण राष्ट्रों की सरकारों एवं प्रबद्ध समाज की है, साथ-2 प्रत्येक स्तर पर व्यवहारिक प्रतिमानों को अपनाये जाने की आवश्यकता पर बल दिया।
कार्यशाला में एस.डी.सी (Swis Agency for Development Coorporation) की निदेशक जैनी क्यूरीगर ने कहा कि जलवायु परिवर्तन का समाधान आधुनिक व उन्नत तकनीकों के विकास एवं उसके साझा प्रयोग में है। उन्होने कहा कि जलवायु संरक्षण से सम्बन्धित अनुभव तथा प्रशिक्षण को ग्रासरूट तक लाने व प्रचारित करने की आवश्यकता है तथा भारत की केन्द्र और राज्य सरकारें इस ओर प्रयासरत है।

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