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साईटिका (कटिस्नायुशूल) का सरल उपचार

सेहत

साईटिका नर्व (नाड़ी) शरीर की सबसे लंबी नर्व होती है। यह नर्व कमर की हड्डी से गुजरकर जांघ के पिछले भाग से होती हुई पैरोँ के पिछले हिस्से मेँ जाती है। जब दर्द इसके रास्ते से होकर गुजरता है, तब ही यह साईटिका का दर्द कहलाता है। यह दर्द सामान्यत: पैर के निचले हिस्से की तरफ फैलता है। ऐसा दर्द स्याटिक नर्व में किसी प्रकार के दबाव, सूजन या क्षति के कारण उत्पन्न होता है। इसमें चलने-उठने-बैठने तक में बहुत तकलीफ होती है।

    यह दर्द अक्सर लोगों में 30 से 50 वर्ष की उम्र में होता है| यह समझ लेना आवश्यक है कि साईटिका किसी रोग का नाम नहीं है अपितु गद्ध्रसी नाडी मे विकार आ जाने से शरीर में पैदा होने वाले लक्षण समूह इस रोग को परिभाषित करते हैं ।साईटिका  नाडी के विस्तार -स्थलों में भयानक दर्द होने को ही रिंगणबाय या गद्धृसी वात कहा जाता है। साईटिका हमारे शरीर की सबसे बडी नर्व(नाडी) है जो हमारी ऊंगली के बराबर मोटी होती है। कमर की जगह स्थित रीढ की हड्डी की जगह पर असहनीय दर्द होता है। रीढ की ४ थी और ५ वीं कशेरुका की जगह से साईटिका नाडी निकलती है। यह नाडी आगे चलकर कूल्हे,जांघ,घुटने ,टांग के पीछे के भाग में होती हुई पैर तक फ़ैली हुई होती है। आम तौर पर यह रोग शरीर के दायें अथवा बायें एक साईड को ही प्रभावित करता है। दर्द धीमा,तेज अथवा जलन वाला हो सकता है। झुनझुनी और सुन्नपन के लक्षण  भी देखने को मिलते हैं। बैठने और खडे होने में तकलीफ़ मालूम पडती है। खांसने और छींक आने पर दर्द तेज हो जाता है।

     साईटिका नाडी के ऊपर दवाब की वजह से यह रोग होता है। इस नाडी की स्थायी क्षति या इसकी वजह से लकवा पड जाना बहुत कम मामलों में देखने मे आता है | फ़िर भी धड और टांगों की अतिशय कमजोरी अथवा मूत्राषय और अंतडियों की कार्य प्रणाली में ज्यादा खराबी आ जाने पर तुरंत सुविज्ञ  चिकित्सक से संपर्क करना चाहिये। अन्य लक्षण- कमर के निचले हिस्से मेँ दर्द के साथ जाँघ व टांग के पिछले हिस्से मेँ दर्द। पैरोँ मेँ सुन्नपन के साथ मांसपेशियोँ मेँ कमजोरी का अनुभव। पंजोँ मेँ सुन्नपन व झनझनाहट।

बचाव- 
प्रतिदिन सामान्य व्यायाम करेँ।
वजन नियंत्रण मेँ रखेँ।
पौष्टिक आहार ग्रहण करेँ।
रीढ़ की हड्डी को चलने-फिरने और उठते-बैठते समय सीधा रखेँ।
भारी वजन न उठाएं।
साईटिका रोग के उपचार लिख देता हूँ-
  1. आलू का रस ३०० ग्राम नित्य २ माह तक पीने से साईटिका रोग नियंत्रित होता है। इस उपचार का प्रभाव बढाने के लिये आलू के रस मे गाजर का रस भी मिश्रित करना चाहिये.
  2. कच्ची लहसुन का उपयोग सियाटिका रोग में अत्यंत गुणकारी है। २-३ लहसुन की कली सुबह -शाम पानी से निगल जावें। विटामिन बी १, तथा बी काम्प्लेक्स का नियमित प्रयोग सियाटिका रोग को काफ़ी हद तक नियंत्रित कर लेता है। भोजन में ये विटामिन हरे मटर ,पालक,कलेजी,केला,सूखे मेवे,और सोयाबीन में प्रचुरता से मिल जाता है।
  3. जल चिकित्सा इस रोग में कारगर साबित हो चुकी है। एक मिनिट ठंडे पानी के फ़व्वारे के नीचे नहावें। फ़िर ३ मिनिट गरम जल के फ़व्वारे में नहावें। दूसरा तरीका यह है कि कपडे की पट्टी ठंडे जल में डुबोकर निचोडकर(कोल्ड काम्प्रेस) प्रभावित भाग पर १ मिनिट रखें फ़िर गरम जल में डुबोई सूती कपडे की पट्टी प्रभावित हिस्से पर रखे।ऐसा करने से प्रभावित हिस्से में रक्त संचार बढ जाता है। और रोगी को चेन आ जाता है।
  4. लहसुन की खीर इस रोग के निवारण में महत्वपूर्ण है। १०० ग्राम दूध में ४ लहसुन की कली चाकू से बारीक काटकर डालें। इसे उबालें। उतारकर ठंडी करके पीलें। यह उपचार  २-३ माह तक जारी रखने से सियाटिका रोग को उखाड फ़ैंकने में भरपूर मदद मिलती है। लहसुन में एन्टी ओक्सीडेन्ट तत्व होते हैं जो शरीर को स्वस्थ रखने हेतु मदद गार होते है
  5. हरे पत्तेदार सब्जियों का भरपूर उपयोग करना चाहिये। लेकिन लहसुन में खून को पतला रखने के तत्व पाये जाते हैं अत: जिन लोगों की रक्त स्राव की प्रवृति हो वे यह नुस्खा अपने चिकित्सक की सलाह के बाद ही इस्तेमाल करें।
  6. सरसों के तेल में लहसुन पकालें। दर्द की जगह इस तेल की मालिश करने से फ़ोरन आराम लग जाता है।
  7. साईटिका रोग को ठीक करने में नींबू का अपना महत्व है। नींबू के रस में दो चम्मच शहद मिलाकर नियमित पीने से आशातीत लाभ होता है।
  8. आहार मेँ विटामिन सी, ई, बीटा कैरोटिन (हरी सब्जियोँ व फलोँ मेँ) और कैल्शियम का सेवन उपयोगी है। कैल्शियम दूध मेँ पर्याप्त मात्रा मेँ पाया जाता है। इसी तरह कान्ड्राइटिन सल्फेट व ग्लूकोसामीन (इन पोषक तत्वोँ की गोलियाँ दवा की दुकानोँ पर उपलब्ध हैँ) का सेवन भी लाभप्रद है। वहीँ आइसोफ्लेवान (सोयाबीन मेँ मिलता है) और विटामिन बी12 (बन्दगोभी व ऐलोवेरा मेँ) आदि का पर्याप्त मात्रा मेँ प्रयोग करने से ऊतकोँ (टिश्यूज) का पुन: निर्माण होता है।
  9. रोग उग्र होने पर रोगी को संपूर्ण विश्राम कराना चाहिये। लेकिन बाद में रोग निवारण के लिये उपयुक्त व्यायाम करते रहना जरुरी है\

सायटिका का होम्योपैथिक उपचार
एलोपैथी में जहां सायटिका दर्द का उपचार केवल दर्द निवारक दवाइयां एवं ट्रेक्शन है वहीं पर होम्यापैथी में रोगी के व्यक्तिगत लक्षणों के आधार पर दवाईयों का चयन किया जाता है जिससे इस समस्या का स्थाई समाधान हो जाता है। सायटिका रोग के उपचार में प्रयुक्त होने वाली औषधियां इस प्रकार हैं।

कोलोसिन्थ-
रोगी के चिड़चिड़े स्वभाव के कारण क्रोध आ जाता हो, गृध्रसी बायी ओर का पेशियों में खिंचाव व चिरने-फाड़ने जैसा दर्द विशेषकर दबाने या गर्मी पहुंचाने से राहत मालूम हो।

नेफाइलियम
पुरानी गृध्रसी वात आराम करने से पैरों की पिंडलियों मं ऐंठन होने की अनुभूति के साथ सुन्नपन व दर्द अंगों को ऊपर की ओर खींचने एवं जांघ को उदर तक मोड़ने से राहत हो।

रसटॉक्स
ठंड व सर्द मैसम में रोग बढ़ने की प्रवृत्ति, अत्यधिक बेचैनी के साथ निरन्तर स्थिति बदलते रहने का स्वभाव, गृध्रसी वात का जो दर्द चलने-फिरने से आराम होता है एवं आराम करने से ज्यादा, साथ ही सन्धियों एवं कमर में सूजन के साथ दर्द होता हो।

ब्रायोनिया-

अत्यधिक चिड़चिड़ापन, बार-बार गुस्सा आने की प्रवृत्ति, पुराने गृध्रसी वात, दोनों पैर में सूई की चुभन तथा चीड़फाड़ किए जाने जैसा दर्द हो जो चलने फिरने से बढ़ता हो एवं आराम करने से घटता हो, साथ ही पैरों के जोड़ सूजे हुए, लाल व गर्म हो, जिसमें टीस मारने जैसा जलन युक्त दर्द हो।

गुएकम-
सभी तरह के वात जैसे गठिया व आमवाती दर्द जो खिंचाव के साथ फाड़ती हुई महसूस हो, टखनों मे दर्द जो ऊपर की ओर पूरे पैरों में फैल जाया करता हो, साथ ही पैरों के जोड़ सूजे हुए, दर्दनाक व दबाव के प्रति असहनीय, गर्मी बर्दास्त न हो।

लाइकोपोडियम-
सायटिका जो विशेषकर दायें पैर में हो, दर्द कमर से लेकर नीचे पैर तक हो एवं पैरों में सुन्नपन व खिंचाव के साथ दर्द महसूस हो, साथ ही साथ रोगी को बहुत पुरानी वात व गैस हो व भूख की कमी महसूस हो।

आर्निका माॅन्ट-
बहुत पुरानी चोट जिनके वजह से रोग प्रार्दुभाव स्थान में लाल सूजन व कुचलने जैसा दर्द हो साथ ही रोग ठंड व बरसात से बढ़े, आराम व गर्माहट से घटे।

कास्टिकम-
दाहिने पैर में रोग की शुरुआत, रोग वाली जगह का सुन्न व कड़ा होना, ऐसा मालूम होता हो कि जैसे वहां की मांसपेशियां एक साथ बंधी हुई हो साथ ही नोच-फेंकने जैसा दर्द होता रहे।

ट्यूबरकुलिनम-
जिन रोगियों के वंश में टी.बी. का इतिहास हो, साथ ही उनको सायटिका दर्द भी पुराना हो। इसके अतिरिक्त बेलाडोना, जिंकमेट, लीडमपाल, फेरमफॅास, आर्सेनिक एल्बम, कैमोमिला, कैल्मिया, अमोनियम मेयोर, कॉली बाइक्रोम, नेट्रसल्फ आदि औषधियों का प्रयोग रोगी के लक्षणों के आधार पर किया जाता है।

सावधानियां:-
सायटिका रोग के सम्बन्ध में अनेक भ्रान्तियां व्याप्त हैं। कुछ तथाकथित चिकित्सक चीरा लगाकर गन्दा खून निकालकर सायटिका के इलाज का दावा करते हैं जो कि गलत है क्योंकि इस रोग का खून के गन्द होने से कोई सम्बन्ध नहीं है। इस प्रकार के इलाज से आपकी समस्या बढ़ सकती है। सायटिका रोगी को निम्न सावधानियां अपनानी चाहिए।
रोगी को बिस्तर पर आराम करना चाहिए।
रोगी को नियमित रूप से व्यायाम एवं टहलना चाहिए।
रोगी को हल्का भेजन लेना चाहिए।
अस्वास्थ्यप्रद वातावरण एव सीलन भरे गन्दे मकान में नहीं रहना चाहिए।

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