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काले धन से संबंधित विशेष जांच दल (एसआईटी) ने रिजर्व बैंक से विनियामक ढांचे में अभिज्ञात कमियों को देखते हुए गैर कानूनी रूप से देश से बाहर जाने वाले धन का पता लगाने के लिए संस्‍थागत तंत्र तैयार करने को कहा

देश-विदेश

नई दिल्ली: काले धन की जांच से संबंधित, माननीय उच्‍चतम न्‍यायालय द्वारा नियुक्‍त किए गए विशेष जांच दल (एसआईटी) ने भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर को 11.8.2016 को पत्र भेजकर आरबीआई के विविध डाटाबेस में मौजूद आंकड़ों को प्रवर्तन अधिकारियों के साथ साझा करने के लिए निम्‍नलिखित संस्‍थागत तंत्र तैयार करने की जरूरत पर बल दिया, ताकि प्रवर्तन अधिकारियों के पास उपलब्‍ध अन्‍य सूचना के आधार पर इन आंकड़ों की दुबारा जांच हो सके और धन को गैर कानूनी रूप से देश से बाहर जाने से रोका जा सके:

(क) फॉरेन एक्‍सचेंज ट्रैन्ज़ैक्शन्‍स इलेक्ट्रॉनिक रिपोर्टिंग सिस्‍टम (एफईटी-ईआरएस): –

एफईटी-ईआरएस प्रणाली आरबीआई के परिपत्र संख्‍या 77, दिनांक 13-03-2004 के माध्‍यम से प्रारंभ की गई। सभी अधिकृत डीलर विदेशी मुद्रा में होने वाले प्रत्‍येक लेन-देन (एफईटी-ईआरएस में होने वाले आवक विप्रेषण और जावक विप्रेषण) की जानकारी देने के लिए बाध्‍य हैं। इस डेटाबेस तक पहुंच प्रवर्तन निदेशालय और राजस्व आसूचना निदेशालय जैसे प्राधिकरणों को प्रदान किए जाने की आवश्‍यकता है, ताकि उपरोक्‍त विश्‍लेषण किया जा सके।

इसके लिए एसआईटी ने सुझाव दिया है कि एफईटी-ईआरएस डाटा में आयातक या निर्यातक का पेन नम्‍बर होना चाहिए तथा आरबीआई को यह कार्य तत्‍काल आधार पर करने के लिए आवश्‍यक कदम उठाने चाहिए।

(ख) निर्यात के बकाये से संबंधित आंकड़े: –

एसआईटी को आरबीआई द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों में, फेमा का उल्लंघन करते हुए एक वर्ष की अवधि से भी ज्‍यादा अर्से की बकाया रकम का पता चला। एसआईटी ने पाया कि संबंधित कंपनियों द्वारा गलत तरीके से शुल्क वापसी का दावा किए जाने की संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता। इसके अलावा, संबंधित कंपनियों द्वारा विभिन्न निर्यात संवर्धन योजनाओं का लाभ उठाए जाने की संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता।

इसके मद्देनजर, एसआईटी ने प्रवर्तन निदेशालय, राजस्व आसूचना निदेशालय और वाणिज्य मंत्रालय से कहा है कि वे निर्यात के बकाया संबंधी आंकड़ों का विश्लेषण करें और इस संबंध में आवश्यक कार्रवाई करें।

आरबीआई अपने ईडीपीएमएस डेटाबेस में निर्यात प्राप्ति संबंधी आंकड़े रखता है। एसआईटी के अध्‍यक्ष ने अपने पत्र में कहा कि लदान पत्रों को एक अलग डेटाबेस- बैंक प्राप्ति प्रमाण पत्र (बीआरसी), की बजाए बैंक से मिलान के साथ, ईडीपीएमएस डेटाबेस पर ही सह-संबंधित किया जाना महत्‍वपूर्ण है और आरबीआई, बैंकों को निर्यात की प्रक्रिया के बारे में ईडीपीएमएस डेटाबेस पर ही सूचित करने को कह सकता है।

(ग) आयात हेतु अग्रिम विप्रेषण की निगरानी: –

बैंक ऑफ बड़ौदा के घोटाले के मद्देनजर, एसआईटी ने आरबीआई से कहा है कि वह विप्रेषित धन के मूल्‍य की परवाह किए बिना, आयात पत्र के विपरीत अग्रिम विप्रेषण की दोबारा जांच करने की व्‍यवस्‍था को संस्‍थागत रूप प्रदान करे। एसआईटी ने आरबीआई को सूचित किया कि 30 सितंबर 2015 तक अरबों डॉलर राशि के अग्रिम विप्रेषण बड़े पैमाने पर बकाया थे, जिनके लिए आयात पत्र को सहसंबंधित नहीं किया गया है। इसलिए एसआईटी ने आरबीआई से इस सह-संबंध को पूरा करने और सूचित करने को कहा है। एसआईटी के अध्‍यक्ष ने अपने पत्र में आरबीआई से इस कार्य को जल्‍द से जल्‍द से पूरा करने और उसकी जानकारी एसआईटी को भेजने को कहा है। एसआईटी के अध्‍यक्ष ने इस बात पर संतोष व्यक्त किया कि आरबीआई द्वारा (इम्‍पोर्ट डाटा प्रोसेसिंग और मॉनिटरिंग सिस्टम) आईडीपीएमएस की स्‍थापना की जा रही है,जिसके सितंबर के आखिर तक प्रारंभ हो जाने की संभावना है, जो आयात पत्र, के लिए प्रत्‍येक अग्रिम विप्रेषण की दोबारा जांच में सक्षम बनाएगा, भले ही उसका मूल्‍य कुछ भी हो।

एसआईटी के अध्‍यक्ष ने अपने पत्र में आरबीआई द्वारा प्रबंधित उपरोक्‍त तीनों डेटाबेस यथा-एफईटी-ईआरएस, आईडीपीएमएस और ईडीपीएमएस के समस्‍त आंकड़ों को साझा करने के लिए आरबीआई से राजस्‍व विभाग के परामर्श से एक संस्‍थागत ऑनलाइन तंत्र विकसित करने का अनुरोध किया है। एसआईटी के अध्‍यक्ष ने राजस्‍व विभाग से, राजस्‍व विभाग में ऐसी सिंगल प्‍वाइंट एजेंसी की पहचान करने को कहा है,जो उपरोक्‍त तीनों डेटाबेस तक पहुंच कायम कर सकती है और उसके बाद उन आंकड़ों को विविध प्रवर्तन एजेंसियों को भेज सकती है।

दरअसल, काले धन की जांच से संबंधित माननीय उच्‍चतम न्‍यायालय द्वारा नियुक्‍त किए गए विशेष जांच दल (एसआईटी) का लगातार यही दृष्टिकोण रहा है कि विभिन्‍न सरकारी विभागों, विशेषकर प्रवर्तन एजेंसियों के बीच जानकारियों का प्रभावी आदान-प्रदान होना चाहिए। एसआईटी का मानना है कि ये आंकड़े, केवल आंकड़ों के भंडार (डेटा वेयरहाउस) के रूप में किसी केंद्रीय आर्थिक आसूचना ब्‍यूरो (सीईआईबी) जैसी एजेंसी या किसी अन्‍य एजेंसी के होने पर ही साझा किए जा सकते हैं। उक्‍त डेटा वेयरहाउस से विभिन्‍न एजेंसियां तत्‍काल उचित कार्रवाई करने के लिए उपयुक्‍त जानकारी एकत्र कर सकती हैं। यदि किसी एक एजेंसी के पास आंकड़े उपलब्‍ध होंगे, तो अन्‍य कानून प्रवर्तन एजेंसी से कार्रवाई की उम्‍मीद करना उचित हो सकेगा। वर्तमान में आरबीआई के पास विभिन्‍न श्रेणियों में होने वाले समस्‍त प्रकार के विदेशी मुद्रा संबंधी लेन-देन की जानकारी होती है, जिनका विवरण नीचे दिया गया है।

एसआईटी का मानना है कि देश से गैर कानूनी रूप से बाहर जाने वाले धन को नियंत्रित करने और उसका पता लगाने के लिए प्रवर्तन निदेशालय, राजस्‍व आसूचना निदेशालय और सीबीडीटी जैसी विभिन्‍न कानून प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा आरबीआई के आंकड़ों का उपयोग बहुत महत्‍वपूर्ण है। एसआईटी ने अतीत में इस बारे में चिंता व्‍यक्‍त की थी और आरबीआई से विदेश भेजे गए ऐसे अग्रिम विप्रेषण के संबंध में आंकड़े उपलब्‍ध कराने का अनुरोध किया था, जिससे संबंधित आयात पत्र प्राधिकृत डीलर द्वारा प्राप्‍त नहीं किया गया। एसआईटी ने आरबीआई से यह भी अनुरोध किया था कि वह एक साल से ज्‍यादा अर्से के निर्यात संबंधी बकायों का विवरण उपलब्‍ध कराए। आरबीआई द्वारा दोनों स्‍तरों पर उपलब्‍ध कराए जाने वाले आंकड़े स्‍पष्‍ट रूप से दर्शाते हैं कि उपरोक्‍त कारोबार की निगरानी में खामियां रही जिनका इस्‍तेमाल भ्रष्‍ट तत्‍वों द्वारा बहुमूल्‍य पूंजी देश से बाहर ले जाने में करते हैं और इस प्रकार भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था के ताने-बाने को नुकसान पहुंचाते हैं।

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