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गृह मंत्रालय ने देश में महिलाओं की सुरक्षा में सुधार के लिए कई कदम उठाए

देश-विदेश

देश में महिलाओं की सुरक्षा बढ़ाने के लिए गृह मंत्रालय ने कई कदम उठाए हैं, जिनके लिए निर्भया कोष से वित्तपोषण किया गया है। गृह मंत्रालय (एमएचए) ने यौन हमलों के मामलों में समय से जांच पूरी करने सहित महिला सुरक्षा से जुड़े मुद्दों के प्रति राज्यों/ संघ शासित क्षेत्रों को संवेदनशील बनाने के लिए एक अलग महिला सुरक्षा इकाई की स्थापना भी की है।

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत सरकार ने बीते 7 साल के दौरान महिलाओं के सशक्तिकरण और उनकी सुरक्षा की दिशा में कई कदम उठाए हैं। यौन हमलों के घृणित मामलों के खिलाफ सख्त रुख अपनाते हुए भारत सरकार ने आपराधिक कानून संशोधन अधिनियम, 2018 के माध्यम से बलात्कार की सजा को ज्यादा कठोर कर दिया है। कानून में संशोधन को प्रभावी रूप से जमीनी स्तर पर लागू किया जाना सुनिश्चित करने के लिए एमएचए द्वारा कई कदम उठाए गए हैं और उनकी प्रगति की लगातार निगरानी की जा रही है। इनमें यौन अपराधों के लिए जांच निगरानी प्रणाली (आईटीएसएसओ), यौन अपराधियों का राष्ट्रीय डाटाबेस (एनडीएसओ), सीआरआई-एमएसी (क्राइम मल्टी-एजेंसी केन्द्र) और नई नागरिक सेवाएं शामिल हैं। आईटी से जुड़ी इन पहलों से समयबद्ध और प्रभावी जांच में सहायता मिलती है।गृह मंत्री श्री अमित शाह ने सभी राज्यों/ संघ शासित क्षेत्रों से इन ऑनलाइन टूल्स के प्रभावी उपयोग के लिए बलपूर्वक सिफारिश की है।

आईटीएसएसओ और एनडीएसओ

यौन अपराधों के लिए जांच निगरानी प्रणाली (आईटीएसएसओ) एक ऑनलाइन विश्लेषणात्मक साधन है, जिसे यौन हमलों के मामलों  में पुलिस जांच की निगरानी और समयबद्ध तरीके से पूरा किए जाने (आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 2018 के तहत वर्तमान में यह दो महीने है) के लिए लॉन्च किया गया है। वहीं, यौन अपराधियों के राष्ट्रीय डाटाबेस (एनडीएसओ) को बार-बार अपराध करने वालों की पहचान करने और साथ ही जांच में यौन अपराधियों पर अलर्ट हासिल करने के लिए पेश किया गया है।

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आपराधिक मामलों का समयबद्ध निस्तारण सुनिश्चित करने के उद्देश्य से राज्यों को सहूलियत देने के कदम के रूप में एक स्थगन चेतावनी मॉड्यूल भी विकसित किया गया है। इसके तहत, जब भी एक सरकारी वकील किसी आपराधिक मामले में दो बार से ज्यादा स्थगन की मांग करता है, तो इस प्रणाली में अपरिहार्य देरी से बचने के लिए वरिष्ठ अधिकारियों को अलर्ट भेजने का एक प्रावधान है।

सीआरआईएमएसी

क्राइम मल्टी एजेंसी केन्द्र (सीआरआई-एमएसी) को राज्यों/ संघ शासित क्षेत्रों के पुलिस थानों और मुख्य कार्यालयों को घृणित अपराधों और अंतर राज्यीय अपराध के मामलों में सामंजस्य से संबंधित अन्य मुद्दों से जुड़ी जानकारी साझा करने के लिए 12 मार्च, 2020 को पेश किया गया है। इसे राज्यों/ संघ शासित क्षेत्रों को ईमेल/एसएमएस के माध्यम से अपराध और अंतर राज्यीय अपराधों के अलर्ट या संबंधित जानकारियां भेजने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।

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नई नागरिक सेवाएं

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो ने महिलाओं के खिलाफ अपराधों के मामलों के लिए अपने पोर्टल digitalpolicecitizenservice.gov.in पर नई नागरिक सेवाएं लॉन्च की हैं। इन सेवाओं में ‘गुमशुदा लोगों की खोज’ जैसे कार्य शामिल हैं, जिससे नागरिकों को खोजे गए अज्ञात लोगों/ अज्ञात मृतकों के राष्ट्रीय डाटाबेस से अपने लापता परिजनों को खोजने में मदद मिलती है।इसके अलावा ‘घोषित अपराधियों’ से जुड़ी एक अन्य सेवा है, जिससे नागरिकों को घोषित अपराधियों से जुड़ी ऑनलाइन जानकारी हासिल करने में मदद मिलती है।

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निर्भया कोष परियोजनाओं में तेजी

महिलाओं की सुरक्षा को बढ़ाने के लिए एमएचए द्वारा निर्भया कोष से वित्तपोषित परियोजनाओं को तेजी से लागू किया जा रहा है। ‘आपात प्रतिक्रिया समर्थन प्रणाली (ईआरएसएस)’ ऐसी पहलों का एक उदाहरण है। यह अखिल भारतीय, एकल, कई आपात स्थितियों के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त नंबर 112 है। ईआरएसएस वर्तमान में मार्च, 2022 तक देश के 34 राज्यों/ संघ शासित क्षेत्रों में परिचालित है। इसे आधिकारिक रूप से 16 फरवरी, 2019 को पेश किया गया था। तब से ईआरएसएस अखिल भारतीय स्तर पर 15.66 मिनट के प्रतिक्रिया समय के साथ 11.48 करोड़ कॉल्स का प्रबंधन (31 जनवरी, 2021 तक) कर चुका है। 112 इंडिया मोबाइल एप्लीकेशन के फरवरी, 2019 तक 9.98 लाख डाउनलोड हो चुके हैं, जिस पर 5.75 लाख यूजर पंजीकृत हैं जिनमें 2.65 लाख महिलाएं हैं।

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महिलाओं के खिलाफ साइबर अपराधों की रोकथाम

एमएचए का महिलाओं और बच्चों के खिलाफ साइबर अपराध रोकथाम पर मुख्य जोर है। वर्तमान में, आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, मिजोरम, ओडिशा, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सहित 14 राज्यों ने साइबर फॉरेंसिक ट्रेनिंग लैबोरेटरी की स्थापना कर ली है। 13295 पुलिस कर्मचारियों, अधिवक्ताओं और न्यायिक अधिकारियों को महिलाओं और बच्चों के खिलाफ साइबर अपराधों की पहचान, पता लगाने और समाधान में प्रशिक्षण दिया गया है। गृह मंत्रालय ने एक पोर्टल www.cybercrime.gov.in भी लॉन्च किया है, जिस पर नागरिक अश्लील कंटेंट की सूचना दे सकते हैं और उसे 72 घंटों के भीतर ब्लॉक कराया जा सकता है। एमएचए द्वारा सुधार के साथ इस पोर्टल को 30 अगस्त, 2019 को लॉन्च किया गया है।

दिल्ली पुलिस ने महिलाओं को बिना किसी भय या शर्म के आगे आने और अपराधों की सूचना देने के लिए प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से सामाजिक कार्यकर्ताओं और परामर्शदाताओं की नियुक्ति की

दिल्ली पुलिस ने बिना किसी भय या शर्म के आगे आने और अपराधों की सूचना देने को प्रोत्साहित करने के लिए पुलिस थानों और उप मंडल स्तर के कार्यालयों में सामाजिक कार्यकर्ताओं और परामर्शदाताओं की नियुक्ति की है। सामाजिक कार्यकर्ता/ परामर्शदाता हिंसा पर रोक लगाने के लिए व्यक्तिगत और संयुक्त स्तर पर 19,316 सत्रों का आयोजन कर चुके हैं। दिल्ली पुलिस आत्म रक्षा तकनीक शिविरों के 7,550 सत्र करा चुकी है, जिनमें स्कूल/ महाविद्यालयों की 14,82,481 लड़कियां, गृहणियां, कामकाजी महिलाएं और वंचित बच्चों को प्रशिक्षण दिया जा चुका है। वर्ष 2017 और 2018 के लिए, लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड भी इस उपलब्धि को प्रमाणित कर चुका है। एसपीयूडब्ल्यूएसी (महिलाओं और बच्चों की विशेष इकाई) द्वारा 1,23,084 लड़कियों/महिलाओं के लिए 738 एकदिवसीय कार्यशालाएं आयोजित की जा चुकी हैं। लैंगिक जागरूकता के लिए 358 कार्याशालाएं आयोजित की जा चुकी हैं, जिसमें पुलिस अधिकारियों सहित 1,22,833 प्रतिभागी लाभान्वित हुए हैं। एसपीयूडब्ल्यूएसी और एसयूपीएनईआर (पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए एक विशेष इकाई) के लिए एक आधुनिक सुविधा मार्च, 2020 तक पूरी हो गई है और दिल्ली पुलिस अपने कोष के साथ परियोजना को जारी रख रही है।

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शहरों में सुरक्षित शहर परियोजनाएं

निर्भया कोष द्वारा वित्तपोषित परियोजनाओं में से 8 शहरों (अहमदाबाद, बंगलुरू, चेन्नई, दिल्ली, हैदराबाद, कोलकाता, लखनऊ और मुंबई) में सुरक्षित शहर परियोजनाओं पर काम चल रहा है। इन परियोजनाओं में भारत में महिलाओं की सुरक्षा में सुधार के लिए तकनीक का इस्तेमाल शामिल है। इसमें अपराधियों और आपराधिक गतिविधियों के बारे में पुलिस को सचेत करने के लिए ड्रोन का इस्तेमाल, सीसीटीवी कैमरे इंस्टाल करना, स्मार्ट लाइटिंग सिस्टम जैसी तकनीक कुशल अवसंरचनाएं शामिल हैं, जो अंधेरा होते ही अंधेरा छंटने के लिए और अपराध के प्रमुख स्थलों पर जलने लगती हैं। इसके साथ ही गूगल मैप्स पर महिलाओं के लिए शौचालयों का पता लगाया जा सकता है।

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फॉरेंसिक विज्ञान प्रयोगशालाओं को मजबूत बनाना

एमएचए ने भारत में फॉरेंसिक विज्ञान प्रयोगशालाओं को मजबूत बनाकर न्याय विभाग में सुधार की एक अन्य पहल की है। फॉरेंसिक विज्ञान किसी आपराधिक जांच का एक महत्वपूर्ण पहलू है, क्योंकि इससे अधिकारियों के लिए एक अपराध में संदिग्ध पहचान करना, समयसीमा का निर्धारण और अपराध से जुड़े अन्य विवरण का पता लगाना आसान हो जाता है। देश में फॉरेंसिक विज्ञान केन्द्रों को मजबूत बनाकर आपराधिक जांच में सुधार के लिए निर्भया कोष द्वारा भी वित्तपोषण किया गया है। केन्द्रीय फॉरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला (सीएफएसएल), चंडीगढ़ में 23 दिसंबर, 2019 को अत्याधुनिक डीएनए विश्लेषण इकाई का शुभारम्भ किया गया। प्रयोगशाला की क्षमता बढ़कर प्रति वर्ष 2,000 मामले हो गई है। यौन हमलों और हत्या, मानवीय आपदा पीड़ित पहचान, पितृत्व इकाई और माइटोकॉन्ड्रियल इकाई की जांच के लिए विशेष इकाइयों की स्थापना की गई है।

यौन हमलों के मामलों में साक्ष्य की जांच में मानकीकरण और गुणवत्ता सुनिश्चित करने के क्रम में फॉरेंसिक विज्ञान सेवा निदेशालय ने यौन हिंसा के मामलों में फॉरेंसिक साक्ष्य के संग्रहण, हैंडलिंग और भंडारण के लिए दिशानिर्देश अधिसूचित किए हैं। इसके साथ ही, एक यौन हमला साक्ष्य संग्रहण किट भी अधिसूचित की गई है। इन दिशानिर्देशों और किट्स पर जांच अधिकारियों/ अभियोजन अधिकारियों/ चिकित्सा अधिकारियों को प्रशिक्षण दिया गया है। पुलिस सुधार एवं विकास ब्यूरो और लोक नायक जयप्रकाश नारायण नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ क्रिमिनोलॉजी ऑफ फॉरेंसिक साइंसेस द्वारा यौन हिंसा के मामलों में फॉरेंसिक साक्ष्य के संग्रहण, हैंडलिंग और ढुलाई में कुल 13,602 अधिकारियों को प्रशिक्षण दिया गया है। बीपीआरएंडडी (पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो) ने राज्यों और संघ शासित क्षेत्रों को 14,950 यौन हमले साक्ष्य संग्रहण (एसएईसी) किट्स का वितरण किया है। ये एसएईसी किट्स यौन हमले के मामले में फॉरेंसिक साक्ष्य के कुशल संग्रहण, हैंडलिंग और भंडारण को आसान बनाएगी।

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सरकार ने पुलिस थानों में महिला सहायता डेस्क (डब्ल्यूएचडी) की स्थापना और संवेदनशील सीमाओं की तरह देश के सभी जिलों में मानव तस्करी रोधी इकाइयों (एएचटीयू) की स्थापना/मजबूत बनाने के लिए राज्यों व संघ शासित क्षेत्रों को 200 करोड़ रुपए दिए जाने को स्वीकृति दी है।

भारत सरकार महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है और इससे जुड़ी कई परियोजनाएं निर्माणधीन हैं, जिससे राज्य/ संघ शासित क्षेत्र न सिर्फ रहने के लिए सुरक्षित होंगे, बल्कि देश की महिलाएं स्वतंत्र रूप से रहने के लिए सशक्त भी बनेंगी।

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