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‘नए भारत के लिए डेटा’ पर आयोजित गोलमेज सम्‍मेलन में सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्‍वयन मंत्री श्री सदानंद गौड़ा के भाषण का मूल पाठ

देश-विदेशप्रौद्योगिकी

नई दिल्ली: मुझे इस आरंभिक सत्र का एक हिस्‍सा बनने पर अत्‍यंत खुशी हो रही है, जो ‘नए भारत के लिए डेटा’ पर आयोजित गोलमेज सम्‍मेलन के लिए एक पूर्वावलोकन है।

    जैसा कि आप सभी इस तथ्‍य से अवगत हैं कि विकास से जुड़ी गतिविधियों में सरकार की भूमिका बढ़ने के साथ ही डेटा अथवा आंकड़ों से संबंधित जरूरतें भी निरंतर बढ़ती चली जाती हैं। ‘सबका साथ सबका विकास’ एजेंडे को ध्‍यान में रखते हुए हमारी सरकार ने मेक इन इंडिया, कौशल भारत, स्‍टार्ट-अप इंडिया, स्‍मार्ट सिटी, स्‍वच्‍छ भारत और ‘नए भारत’ के लिए सामाजिक-आर्थिक बदलाव हेतु जीएसटीएन जैसे अनेक नए कार्यक्रम शुरू किए हैं। हमारी सरकार ने विकास पर अपना ध्‍यान केन्द्रित रखने के लिए 115 आकांक्षी जिलों की पहचान की है। इन प्रयासों को आगे बढ़ाने के साथ-साथ उन्‍हें और ज्‍यादा प्रभावकारी एवं उद्देश्‍य उन्‍मुख बनाने में आधिकारिक आंकड़ों की मजबूत प्रणाली महत्‍वपूर्ण भूमिका निभा सकती है, क्‍योंकि उपयोगी अथवा परिणामी डेटा की जरूरतें कई गुना बढ़ गई हैं।

      नीति निर्माताओं के लिए वे आंकड़े अत्‍यधिक लाभप्रद साबित होते हैं, जो नीतिगत निर्णयों के लिए प्रासंगिक, स‍टीक, सामयिक और विश्‍वसनीय हों। सार्वजनिक अथवा निजी संस्‍थान विभिन्‍न मसलों पर सोच-समझकर निर्णय लेने के लिए एक ठोस बुनियाद के रूप में उच्‍च गुणवत्‍ता वाले एवं सार्वजनिक तौर पर उपलब्‍ध आंकड़ों पर अत्‍यधिक भरोसा करते हैं। गवर्नेंस की लोकतांत्रिक प्रणाली की सफलता उन आंकड़ों के निर्बाध प्रवाह पर निर्भर करती है, जिनका उपयोग देश के नागरिक सरकारी निर्णयों अथवा कार्यकलापों के आकलन में कर सकते हैं।

      विश्‍व भर में यह माना जाता है कि आधिकारिक आंकड़ों को सदैव कुछ विशेष बुनियादी सिद्धांतों जैसे कि गोपनीयता, प्रोफेशनल आजादी, निष्‍पक्षता, बाह्य जवाबदेही एवं पारदर्शिता के अनुरूप होना चाहिए, ताकि संबंधित डेटा में लोगों का विश्‍वास बढ़ सके और उन्‍हें सार्वजनिक तौर पर उपलब्‍ध कराया जा सके। ये बुनियादी सिद्धांत वर्ष 1994 में विकसित आधिकारिक आंकड़ों के संयुक्‍त राष्‍ट्र आधारभूत सिद्धांतों में निहित हैं।

      वर्ष 2014 में जब संयुक्‍त राष्‍ट्र की महासभा ने इन आधारभूत सिद्धांतों के एजेंडे पर विचार-विमर्श शुरू किया, तो भारत ने महासभा के इस प्रस्‍ताव का समर्थन किया। वर्ष 2014 में संयुक्‍त राष्‍ट्र की महासभा द्वारा अनुमोदन किए जाने के बाद हमारी सरकार ने वर्ष 2016 में इन सिद्धांतों को औपचारिक रूप से अपनाया।

  इन सिद्धांतों को आगे बढ़ाने के लिए मेरा मंत्रालय आधिकारिक आंकड़ों पर एक राष्‍ट्रीय नीति विकसित करने की प्रक्रिया में जुट गया है, ताकि हमारी आधिकारिक सांख्यिकी प्रणाली को बेहतर करने के उद्देश्‍य से एक समुचित रूपरेखा प्रदान की जा सके।

     भारत जैसे देश में आधिकारिक आंकड़ों का दायरा काफी व्‍यापक है। इस राह में अनेक चुनौ‍तियां हैं। उचित मानकों को तय करने के साथ-साथ नियमित रूप से उन्‍हें अपडेट करने पर संबंधित आंकड़ों में लोगों का विश्‍वास बढ़ता है। प्रणाली अथवा सिस्‍टम में सृजित होने वाले विशाल डेटा का प्रबंधन करना और उनकी गोपनीयता को बनाए रखना भी एक बड़ी जिम्‍मेदारी है। सांख्यिकीय उत्‍पादों, विशेष कर किसी कार्यालय द्वारा नियमित रूप से अथवा समय-समय पर सृजित किए जाने वाले उत्‍पादों में लोगों का विश्‍वास बनाए रखने के लिए किसी बाह्य विशेषज्ञ के जरिए सांख्यिकीय अंकेक्षण अथवा ऑडिट कराना अत्‍यंत जरूरी है। व्‍यवस्‍था नियंत्रण की आंतरिक व्‍यवस्‍थाएं पर्याप्‍त नहीं होती हैं। कई देशों ने अब गुणवत्‍ता नियंत्रण की उन्‍नत रूपरेखाओं के साथ-साथ ऐसी सांख्यिकीय ऑडिट व्‍यवस्‍थाओं को भी अपनाना शुरू कर दिया है, जिनकी तलाश भारतीय संदर्भ में भी की जा सकती है। अनावश्‍यक दोहराव को टालना और आकलनों में सामंजस्‍य सुनिश्चित करना भी ऐसे अहम मसले हैं, जिन पर राष्‍ट्रीय एवं अंतर्राष्‍ट्रीय स्‍तर पर विस्‍तृत विचार-विमर्श किए जाने की जरूरत है।

      किसी भी प्रणाली की सफलता एवं निरंतरता, क्षमता निर्माण और अंतर्राष्‍ट्रीय सहयोग पर निर्भर करती है। हमारे पास अंतर्राष्‍ट्रीय स्‍तर पर ख्‍याति प्राप्‍त अनुसंधान एवं अकादमिक संस्‍थानों की कोई कमी नहीं है। हालांकि, संबंधित प्रणाली के साथ-साथ आधिकारिक सांख्यिकीय प्रणालियों की क्षमता भी बढ़ाने में इन संस्‍थानों की अनुसंधान क्षमता का पूर्ण दोहन करने की जरूरत है। यह भी एक चिंता का विषय है कि सरकार से जुड़े सांख्यिकीय पेशे में सांख्यिकीय स्‍नातक और स्‍नातकोत्‍तर की डिग्रियां प्राप्‍त करने वालों का आकर्षण कम होता जा रहा है। इस वजह से सांख्यिकीय एजेंसियों को अब अन्‍य प्रोफेशनलों के भरोसे रहना पड़ता है। अत: इस बारे में सभी स्‍तरों पर गहन सोच-विचार की जरूरत है।

     काफी तेजी से हो रहे डिजिटलीकरण के परिणामस्‍वरूप विशाल मात्रा में ऐसे डेटा एवं सूचनाएं सृजित हो रही हैं, जिनका अब तक दोहन नहीं हो पाया है। अत: डेटा के इन विशाल सेटों का इस्‍तेमाल करने के लिए ऐसी विधियां विकसित करने की जरूरत है, जिससे कि मांग एवं वास्‍तविक समय पर आधिकारिक आंकड़ों को सृजित करना संभव हो सके। डेटा विश्‍लेषण की पारम्‍परिक विधियों के स्‍थान पर न्‍यूट्रल नेटवर्क्‍स, आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस और संज्ञानात्मक विश्लेषिकी जैसी उन्‍नत विधियां अपनाने की जरूरत है, जिससे कि समय पर विश्‍वसनीय सूचनाएं उपलब्‍ध हो सकें।

    हमारी सरकार सभी पहलुओं से सांख्यिकीय प्रणाली को बेहतर करने और अन्‍य देशों जैसे कि ऑस्‍ट्रेलिया, कनाडा और ब्रिटेन की सर्वोत्‍तम प्रथाओं तथा सफलता की गाथाओं की पुनरावृत्ति करने के लिए प्रतिबद्ध है। हम विभिन्‍न क्षेत्रों में सांख्यिकीय पद्धति को बेहतर करने से संबंधित अंतर्राष्‍ट्रीय फोरमों के साथ-साथ वैश्विक सांख्यिकीय कार्यक्रमों जैसे कि विश्‍व बैंक द्वारा आयोजित अंतर्राष्‍ट्रीय तुलना कार्यकम का भी हिस्‍सा रहे हैं। हम अपनी सांख्यिकीय प्रणालियों को बेहतर करने के लिए अन्‍य देशों एवं अंतर्राष्‍ट्रीय एजेंसियों से सहायता प्राप्‍त करने और दूसरों की मदद करने के इच्‍छुक हैं।

      जैसा कि मैंने पहले ही उल्‍लेख कर दिया है कि आधिकारिक आंकड़ों पर एक राष्‍ट्रीय नीति पेश करने का हमारा प्रयास सांख्‍यिकीय प्रणाली में सुधार करने की हमारी प्रतिबद्धता को दर्शाता है। इस दृष्टि से इस गोलमेज सम्‍मेलन का समय बिल्‍कुल उपयुक्‍त है और यह एक स्‍वागत योग्‍य कदम है। मैं यह सम्‍मेलन आयोजित करने के लिए विश्‍व बैंक के पदाधिकारियों और ऑस्‍ट्रेलिया, कनाडा एवं ब्रिटेन के हमारे गणमान्‍य अतिथियों तथा अपने मंत्रालय के अधिकारियों की सराहना करता हूं।

     मुझे यह उम्‍मीद है कि इस सम्‍मेलन के तहत अगले दो दिनों में होने वाले विचार-विमर्श हमारी सांख्‍यिकीय प्रणाली को बेहतर करने के लिए हमारे ज्ञान और क्षमता को समृद्ध करेंगे। इन शब्‍दों के साथ ही मैं इस सम्‍मेलन का उद्घाटन करता हूं और इसकी पूर्ण सफलता की कामना करता हूं।

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