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कर्नाटक संकट: रणनीति बनाने में जुटीं पार्टियां, फ्लोर टेस्ट के लिए दो निर्दलीय MLA पहुंचे सुप्रीम कोर्ट

देश-विदेश

बेंगलुरु : कर्नाटक में कांग्रेस-जदएस सरकार रहेगी या जायेगी, इस पर सोमवार को विधानसभा में फैसला होने की संभावना है. फ्लोर टेस्ट से पहले जहां राजनीतिक पार्टियां अपनी रणनीति बना रहे हैं, वहीं दो निर्दलीय विधायकों ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है. दोनों ने उच्चतम न्यायालय से गुहार लगायी है कि वह कर्नाटक सरकार को निर्देश दे कि सोमवार को किसी भी हालत में फ्लोर टेस्ट हो जाये. दोनों पहले ही भारतीय जनता पार्टी को अपना समर्थन दे चुके हैं.

उधर, बेंगलुरु के होटल वॉर रूम बने हुए हैं. एक तरफ भाजपा के नेताओं ने रमाडा होटल में विधायकों की बैठक बुलायी, तो विवांता होटल में कांग्रेस नेताओं का जमावड़ा रहा. हालांकि, गठबंधन सरकार को बीएसपी से राहत मिली है. बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने ट्वीट कर अपने एकमात्र विधायक एन महेश को विश्वास प्रस्ताव के दौरान सरकार के पक्ष में वोट देने का निर्देश दिया है. भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बीएस येदियुरप्पा ने सोमवार सुबह भी विधायकों की बैठक बुलायी है. येदियुरप्पा ने भरोसा जताया है कि यह (सोमवार) कुमारस्वामी सरकार का आखिरी दिन होगा.

दरअसल, गठबंधन के विधायकों के इस्तीफों के बाद एचडी कुमारस्वामी नीत सरकार ने 19 जुलाई को बहुमत साबित करने के लिए राज्यपाल द्वारा दी गयर दो समय-सीमाओं का पालन नहीं किया था. मुख्यमंत्री एचडी कुमारास्वामी द्वारा लाये गये विश्वास प्रस्ताव पर गठबंधन सरकार के चर्चा खींचने की अब भी कोशिशें करने की खबरों और उच्चतम न्यायालय से कोई ना कोई राहत मिलने की उम्मीद के बीच कांगेस तथा जदएस बागी विधायकों का समर्थन वापस हासिल करने के लिए अब तक प्रयासरत हैं. कुमारास्वामी और कांग्रेस ने शुक्रवार को उच्चतम न्यायालय का रुख कर आरोप लगाया था कि राज्यपाल ने उस वक्त विधानसभा की कार्यवाही में हस्तक्षेप किया, जब विश्वास मत पर चर्चा चल रही थी. साथ ही, उन्होंने 17 जुलाई के शीर्ष न्यायालय के आदेश पर भी स्पष्टीकरण मांगा है. आदेश में कहा गया था कि बागी विधायकों को सदन की कार्यवाही में हिस्सा लेने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता.

शुक्रवार को दोपहर डेढ़ बजे की समय सीमा और विश्वास प्रस्ताव की प्रक्रिया शुक्रवार तक संपन्न करने की समय सीमा को नजदअंदाज किये जाने के बाद विधानसभा की कार्यवाही सोमवार के लिए स्थगित कर दी गयी थी. सत्तारूढ़ गठबंधन ने समय सीमा का निर्देश देने की राज्यपाल की शक्तियों पर सवाल उठाया है और कुमारास्वामी ने उच्चतम न्यायालय के एक फैसले का उल्लेख किया है, जिसके मुताबिक राज्यपाल विधायिका के लोकपाल के रूप में काम नहीं कर सकता है. विधानसभा अध्यक्ष रमेश कुमार ने शुक्रवार को सदन की कार्यवाही स्थगित करने से पहले गठबंधन से यह वादा लिया था कि विश्वास मत सोमवार को निष्कर्ष पर पहुंच जायेगा. उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि किसी भी स्थिति में इसे और अधिक नहीं टाला जाये।.

विश्वास प्रस्ताव पर सत्तापक्ष द्वारा अपने विधायकों की लंबी सूची को बोलने का मौका दिये जाने पर जोर दिया है और चर्चा पूरी होनी बाकी है, ऐसे में राजनीतिक गलियारों में ये सवाल उठ रहे हैं कि क्या सोमवार को विश्वास प्रस्ताव पर मतदान होगा और क्या सरकार इस प्रक्रिया को और नहीं टालने के अपने वादे को पूरा करेगी. यदि सत्तारूढ़ गठबंधन सोमवार को भी इसे टालने की कोशिश करती है तो फिर सारी नजरें राज्यपाल के अगले कदम पर होंगी. विश्वास प्रस्ताव पर मतदान की प्रक्रिया को सत्तारूढ़ गठबंधन द्वारा पूरा करने में की जा रही देर को बागी विधायकों को कांग्रेस-जदएस के मनाने की आखिरी पल तक की जा रही कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है. सूत्रों के मुताबिक, इस सिलसिले में कोशिशें की गयीं हैं लेकिन इसका कुछ ज्यादा लाभ अब तक नहीं मिल पाया है क्योंकि बागी विधायकों का दावा है कि उनमें से 13 एकजुट हैं और अपने इस्तीफे पर दृढ़ हैं तथा उनके लौटने का सवाल ही नहीं उठता है.

इस बीच, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बीएस येदियुरप्पा ने रविवार को भरोसा जताया कि सोमवार कुमारस्वामी नीत सरकार का आखिरी दिन होगा. येदियुरप्पा ने संवाददाताओं से कहा, मैं आश्वस्त हूं कि कल (सोमवार) कुमारास्वामी सरकार का आखिरी दिन होगा. उन्होंने आरोप लगाया कि सत्तारूढ़ गठबंधन अनावश्यक रूप से वक्त जाया कर रहा है जबकि उसे पता है कि सत्तारूढ़ गठबंधन के विधायकों को जारी किये गये व्हिप का कोई मतलब नहीं है. उन्होंने कहा, उच्चतम न्यायालय ने अपने आदेश में स्पष्ट रूप से कहा है कि मुंबई में ठहरे हुए 15 विधायकों को किसी भी सूरत में विधानसभा के मौजूदा सत्र में शामिल होने के लिए मजबूर नहीं किया जाये. पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा, यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि यह उन पर (विधायकों पर) निर्भर है कि वे इसमें (सत्र में) शामिल होना चाहते हैं या नहीं. उन्होंने कहा कि इस स्थिति में व्हिप का कोई महत्व नहीं रह जाता, जो सत्तारूढ़ पार्टी भी जानती है.

वहीं, भाजपा ने अपने विधायकों को एकजुट रखने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी है और उसने सोमवार तक देखो और इंतजार करो की नीति अपनायी है. भाजपा सूत्रों ने बताया कि यदि शक्ति परीक्षण में और देर होती है तो इससे राजनीतिक गतिरोध बढ़ेगा जिससे भगवा पार्टी राज्यपाल का रुख करने को मजबूर होगी और यहां तक कि वह इसमें हस्तक्षेप के लिए शीर्ष न्यायालय का भी रुख कर सकती है. येदियुरप्पा ने पहले ही दावा किया है कि कांग्रेस-जदएस गठबंधन के पास महज 98 विधायक हैं और वह बहुमत खो चुका है. जबकि, भाजपा के पास 106 विधायक हैं और वह एक वैकल्पिक सरकार के गठन के लिए सहज स्थिति में है. करीब 16 विधायकों कांग्रेस के 13 और जदएस के तीन विधायकों ने इस्तीफा दिया है, जबकि दो निर्दलीय विधयकों ने भी गठबंधन सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया है और वे अब भाजपा का समर्थन कर रहे हैं. न्यूज़ सोर्स प्रभात खबर

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