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हरिद्वार के पतंजलि विद्यापीठ में उच्चतर शिक्षा में गुणात्मक सुधार के लिए आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन ‘‘ज्ञान कुम्भ’’ का शुभारम्भ करते हुए: राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद

उत्तराखंड

देहरादून: हरिद्वार के पतंजलि विद्यापीठ में उत्तराखण्ड के उच्च शिक्षा विभाग द्वारा उच्चतर शिक्षा में गुणात्मक सुधार के लिए आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन ‘‘ज्ञान कुम्भ’’ का शुभारम्भ हुआ। राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद ने इसका विधिवत उद्घाटन किया। इस अवसर पर उत्तराखण्ड की राज्यपाल श्रीमती बेबी रानी मौर्य, मुख्यमंत्री श्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत, नागालैण्ड के राज्पाल श्री पी.बी.आचार्य, उच्च शिक्षा मंत्री डाॅ. धन सिंह रावत, स्वामी रामदेव, उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री श्री दिनेश शर्मा सहित विभिन्न राज्यों के शिक्षा मंत्री, विश्वविद्यालयों के कुलपति, शिक्षाविद व विद्यार्थी उपस्थित थे।

राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद ने अपने सम्बोधन में कहा कि देश में सदियों से धार्मिक कुम्भ की परम्परा रही है। हरिद्वार, कुम्भ के आयोजन की पावन भूमि रही है। उन्होंने उत्तराखण्ड के उच्च शिक्षा विभाग द्वारा आयोजित ज्ञान कुम्भ को उच्च शिक्षा के क्षेत्र में सार्थक पहल बताया। उन्होंने कहा कि शिक्षा ही व्यक्ति, परिवार, समाज व देश की प्रगति का आधार होती है। देश के संविधान में शिक्षा की जिम्मेदारी, केंद्र व राज्य दोनों को दी गई है। ज्ञान कुम्भ द्वारा उच्च शिक्षा में गुणात्मक सुधार के लिए केंद्र व राज्यों में नया समन्वय स्थापित हो रहा है, उत्तराखण्ड ने इसका उदाहरण प्रस्तुत किया है। उन्होंने आशा व्यक्त की कि ज्ञान कुम्भ में विभिन्न सत्रों में सार्थक व उपयोगी विमर्श होगा जिससे उच्च शिक्षा में गुणात्मक सुधार के लिए सहायता मिलेगी।

राष्ट्रपति ने कहा कि गुणात्मक शिक्षा में शिक्षकों व शिक्षण संस्थानों की महत्वपूर्ण भूमिका है। हर बच्चे में कोई न कोई प्रतिभा अवश्य होती है, उस प्रतिभा को तलाशने व निखारने का काम शिक्षकों व शिक्षण संस्थानों का होता है। यह सुनिश्चित करना होगा कि कोई भी बच्चा गरीबी या किसी भी कारण से शिक्षा के अवसर से वंचित न रहे। ज्ञान के साथ संस्कारों के बीज भी रोपित करना शिक्षकों की जिम्मेवारी है। परंतु यह काम वही शिक्षक कर सकते हैं जिनमें स्वयं त्याग व संवेदनशीलता हो।

राष्ट्रपति ने कहा कि हमारे देश में आदर्श शिक्षकों के अनेक प्रेरक उदाहरण हैं। शिक्षा व नैतिकता के बल पर राष्ट्र निर्माण में आचार्य चाणक्य, सभी शिक्षकों के लिए अनुकरणीय है। राष्ट्रपति ने बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर के अध्यापक डाॅ. अम्बेडकर के साथ ही डाॅ. एस. राधाकृष्णन, महामना मदन मोहन मालवीय व डाॅ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के जीवन से सीख लेने की बात कही।

राज्यपाल श्रीमती बेबीरानी मौर्य ने कहा कि कुम्भ नगरी हरिद्वार में ज्ञान कुम्भ का आयोजन निश्चित रूप से राष्ट्रीय शैक्षिक परिदृश्य के लिए हितकारी होगा। इस ज्ञानकुम्भ के  आयोजन  का  मुख्य उद्देश्य आधुनिक चुनौतियों और आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए  उच्च शिक्षा के स्तर में सुधार लाना है। ज्ञानकुम्भ से प्राप्त ज्ञान रूपी अमृत, देश को एक नई दिशा प्रदान करेगा।

राज्यपाल ने कहा कि भारतवर्ष जिन महान मूल्यों और संस्कारों के लिए जाना जाता है, आज शिक्षा में उनका समावेश करने की आवश्यकता है। भारत में प्राचीन काल से ही शिक्षा एवं शिक्षण कार्य को पवित्र कार्य माना जाता रहा है। भारत में गुरू की महत्ता माँ-बाप और ईश्वर से बढ़कर बताई गई है। सैकड़ों वर्ष पूर्व भी भारत में नालन्दा-तक्षशिला जैसे विश्वविद्यालय थे, जहाँ देश विदेश से विद्यार्थी पढ़ने आते थे। जब विश्व के तमाम देश अज्ञानता की निद्रा में सोये थे तब भारत में ज्ञान का सूर्य पूरी आभा के साथ चमक रहा था।

आज तकनीक का समय है। प्रत्येक क्षेत्र में तेजी से बदलाव आ रहे हैं। इसलिए विश्वविद्यालयों को अपनी पाठ्यसामग्री को भी लगातार अपडेट करते रहने की जरूरत है ताकि इनकी उपयोगिता सिद्ध हो सके। शिक्षण विधियों में सरलता व गुणवत्ता लाने के लिए स्मार्ट और वर्चुअल क्लासेस, ई-लाईब्रेरी आदि की व्यवस्था आज की आवश्यकताएँ बन गयी हैं।

राज्यपाल ने कहा कि शिक्षा की गुणवत्ता का एक मापदण्ड उसका रोजगारपरक होना भी है। इसके साथ ही विद्यार्थियों के  व्यक्तित्व विकास पर भी ध्यान दिया जाना जरूरी है। पारम्परिक पाठ्यक्रमों के साथ कम्यूनिकेशन स्किल और पर्सनैलिटी डेवलपमेंट को भी पाठ्यवस्तु में स्थान दिया जाना चाहिए। संस्कृत भाषा पर भी विशेष ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है। इसके लिए हम सब को मिलकर प्रयास करने होंगे।

मुख्यमंत्री श्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने कहा कि ज्ञानकुम्भ का आयोजन उच्च शिक्षा के क्षेत्र में एक ऐतिहासक पहल है। इसमें होने वाले वैचारिक मंथन से जो अमृत निकलेगा वह देश की उच्च शिक्षा में गुणात्मक सुधार लाने में महत्वपूर्ण साबित होगा। शिक्षा एक ऐसा धन होता है जिसे न तो चुराया जा सकता है और न ही नष्ट किया जा सकता है। शिक्षा के माध्यम से अंधकार को दूर कर ज्ञान रूपी प्रकाश फैलाया जा सकता है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि वर्तमान मे देश में 903 विश्वविद्यालय हैं और 39 हजार काॅलेज हैं। आज आवश्यकता ग्रामीण क्षेत्रों में गुणात्मक उच्च शिक्षा उपलब्ध कराने की है। उच्च शिक्षा में शोध को बढ़ावा देना होगा।

मुख्यमंत्री ने कहा कि विश्वविद्यालय अपने निकटवर्ती क्षेत्रों के सामाजिक व आर्थिक विकास के लिए आगे आएं। स्थानीय संसाधनों का प्रयेाग कर वहां की आवश्यकताओं व आकांक्षाओं की पूर्ति किस प्रकार की जा सकती है, इस पर विश्वविद्यालय शोध करें। इससे एक बड़ा आर्थिक व सामाजिक बदलाव आ सकता है। कुछ संस्थान यह काम कर भी रहे है। देहरादून का आईआईपी का उदाहरण हमारे सामने है। उत्तराखण्ड में चीड़ को हानिकारक बताया जाता है। परंतु आईआईपी ने चीड़ से तारपीन का तेल, डीजल, बिजली उत्पादित करने का शोध किया है। इससे चीड़ हमारे लिए वरदान बन सकता है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि आई.टी. पर विशेष ध्यान दिए जाने की जरूरत है। प्रधानमंत्री जी ने भी कहा है कि आईटी $ आईटी = आईटी (इन्फोरमेशन टेक्नोलोजी $ इंडियन टेक्नोलोजी = इंडिया टूमारो)। आईटी से वसुधैव कुटुम्बकम की भावना को साकार किया जा सकता है। दूरस्थ क्षेत्रों की शिक्षण संस्थानों को आईटी से जोड़ने की आवश्यकता है।

उच्च शिक्षा मंत्री डाॅ. धन सिंह रावत ने राष्ट्रपति का आभार व्यक्त करते हुए कार्यक्रम में आए सभी अतिथियों का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि ज्ञान कुम्भ में विभिन्न राज्यों के शिक्षा मंत्री, विश्वविद्यालयों के कुलपति, 500 डिग्री काॅलेजों के प्राचार्य, 350 शोध छात्र, दो हजार मेधावी छात्र सहित 10 हजार शिक्षाविद प्रतिभाग कर रहे हैं। उच्च शिक्षा में गुणात्मक सुधार के लिए आयोजित इस दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन में कुल सात तकनीकी सत्रों का आयोजन किया जा रहा है।

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