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सरकार ने उत्पादों की गुणवत्ता और मात्रा आश्वासन में सुधार करने के लिए कदम उठाए हैं और लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (टी.पी.डी.एस.) के आद्योपांत कम्प्यूटरीकरण की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति की है: राम विलास पासवान

देश-विदेश

नई दिल्ली: राम  विलास पासवान ने लक्षित प्रदायगी सुनिश्चित करने के लिए लाभार्थियों की आधार सीडिंग तथा ई-पी.ओ.एस. मशीनों की संस्थापना की आवश्यकता पर बल दिया। इससे राज्य स्कीम के तहत कवर किए जाने वाले लाभार्थियों की संख्या में बढ़ोत्तरी करने में सक्षम हो सकेंगे, चूंकि राज्यों को किए जाने वाले आवंटन में कोई कमी नहीं की गई है। उन्होंने यह प्रेक्षण भी किया कि केंद्र और राज्य सरकारों को साथ-साथ संबंधित एजेंसियों और संस्थानों द्वारा उपभोक्ताओं के संरक्षण और कल्याण सुनिश्चित करने के लिए ठोस उपाय किए जाने की आवश्यकता है।

      उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण तथा वाणिज्य एवं उद्योग राज्य मंत्री, श्री सी आर चौधरी ने प्रेक्षण किया कि केंद्र सरकार द्वारा विभिन्न नीतिगत पहलों, संवर्धनात्मक उपाय और प्रभावी मॉनीटरिंग के कारण ही, आवश्यक वस्तुओं की कीमतें, कुछेक अपवादों को छोड़कर, लगभग स्थिर रहीं। उन्होंने इस बात का उल्लेख भी किया कि सरकार ने उत्पादों की गुणता और मात्रात्मक आश्वासन में सुधार लाने के लिए आवश्यक उपाय किए हैं और लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (टी.पी.डी.एस.) के आद्योपांत कम्प्यूटरीकरण की दिशा में उल्लेखनीय प्रगति की है।

             राष्‍ट्रीय परामर्शी बैठक में यह उल्‍लेख किया गया कि

क)               व्‍यापारिक और राजकोषीय नीति के न्‍यायिक उपयोग सहित केंद्र और राज्‍य सरकारों द्वारा समन्वित प्रयासों, समुचित और सामयिक नीतिगत हस्‍तक्षेपों के कारण महंगाई का तर्कसंगत पर बने रहना सुनिश्चित हो पाया है। आवश्‍यक वस्‍तुओं की कीमतें, कुछेक में मौसमी/अल्‍पकालिक वृद्धि को छोड़कर, प्राय: सापेक्ष रूप से स्थिर रहती है। तथापि, इनकी नियमित रूप से निगरानी किए जाने की आवश्‍यकता है चूंकि शीघ्र नष्‍ट होने वाली और खाद्य वस्‍तुओं की कीमतों में जुलाई से नवंबर के बीच बढ़ने की प्रवृत्ति पाई जाती है।

ख)               राज्‍यों/संघ शासित क्षेत्रों की सरकारें, आवश्‍यकता पड़ने पर,  राज्‍य स्‍तरीय मूल्‍य स्थिरीकरण कोष स्‍कीम को आरंभ कर सकती हैं, जिसके लिए स्‍कीम के दिशा-निर्देशों के अनुसार केन्‍द्र द्वारा भी अंशदान दिया जाता है।

ग)                ई-कॉमर्स मंच पर विधिक मापविज्ञान नियमों के तहत घोषणाएं करने, घोषणाओं के शब्‍दों और अंकों के आकार को बढ़ाने, कोई भी व्‍यक्ति समरूप पूर्व पैकबंद वस्‍तु पर अलग-अलग अधिकतम खुदरा मूल्‍य  (दोहरा एम.आर.पी.) घोषित नहीं करेगा इत्‍यादि का प्रावधान करते हुए विधिक मापविज्ञान (पैकबंद वस्‍तुएं) (संशोधन) नियमावली, 2017 को  01 जनवरी, 2018 से कार्यान्वित  किया गया था, जिससे मात्रात्‍मक आश्‍वासन में सुधार होगा और उपभोक्‍ताओं का सशक्तिकरण होगा।

घ)    दिनांक 12 अक्टूबर, 2017 से लागू नए भारतीय मानक ब्यूरो (बी.आई.एस.) अधिनियम के जरिए उत्पाद के गुणवत्ता आश्वासन में काफी सुधार आया है। यह नया भारतीय मानक ब्यूरो अधिनियम, बाजार सर्वेक्षण करने, जागरूकता का सृजन करने, सुरक्षा में वृद्धि और भारतीय मानकों के उपयोग का संवर्धन करने के माध्यम से वस्तुओं की गुणवत्ता के संवर्धन, निगरानी और प्रबंधन की सुविधा प्रदान करेगा। नए अधिनियम में मूल्यवान धातु की वस्तुओं की हॉलमार्किंग को अनिवार्य बनाने संबंधी समर्थकारी प्रावधान किए गए हैं। नए बी.आई.एस. अधिनियम में गैर-अनुरूप पाए जाने वाले उत्पादों को वापिस लेने संबंधी प्रावधान भी किए गए हैं।

ङ)    उपभोक्ता के कल्याण और संरक्षण पर केंद्रित विभिन्न अधिनियम, कार्यक्रम, स्कीमों को राज्यों में अनेक सरकारी एजेंसियों द्वारा कार्यान्वित किया जाता है। समुचित प्रवर्तन तंत्र के साथ एक सुसमन्वित और समेकित प्रशासनिक विभाग की स्थापना उपभोक्ताओं के अधिकारों के संरक्षण में सहायता करेगी। इसे ध्यान में रखते हुए, तीसरी राष्ट्रीय परामर्शा बैठक में राज्यों में एक अलग उपभोक्ता मामले विभाग के सृजन का निर्णय लिया गया था। जिन राज्यों द्वारा अभी तक ऐसे विभाग की स्थापना नहीं की गई है उनमें इसकी स्थापना के लिए तेजी लाई जा सकती है।

च)    उपभोक्ताओं को सशक्त बनाने और उपभोक्ताओं के लिए और अधिक अनुकूल व्यापार संपर्क के सृजन के लिए, विभाग द्वारा राष्ट्रीय उपभोक्ता हेल्पलाइन, भ्रामक विज्ञापनों के विरूद्ध शिकायतें (गामा) इत्यादि जैसी विभिन्न डिजीटल पहलें की गईं हैं, जिससे सभी हितधारकों को शिकायत निवारण की सुविधा तथा बेहतर सुविधाजनक परिवेश मिलेगा।

छ)    राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग तथा जिला मंचों के साथ एक त्रि-स्तरीय अर्द्ध-न्यायिक तंत्र की स्थापना की गई है, जो उनके समक्ष दायर शिकायतों पर अधिनिर्णय प्रदान करते हैं तथा उपभोक्ता को त्वरित प्रतितोष प्रदान करते हैं। राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग और जिला मंचों को उनकी प्रभावकारिता में वृद्धि के लिए अपेक्षित मानवशक्ति और अवसंरचना के प्रावधान के जरिए  समुचित रूप से सशक्त और सुदृढ़ बनाए जाने की आवश्यकता है।

ज)    सार्वजनिक वितरण प्रणाली में सुधारों के जरिए वितरण को और अधिक पारदर्शी और लक्षित बनाया गया। सभी राज्यों/संघ शासित क्षेत्रों में राशन कार्डों के डिजिटीकरण का कार्य पूरा हो चुका है तथा ऑनलाइन खाद्यान्न आबंटन करने वाले राज्यों की संख्या जून, 2014 के 5 से बढ़कर 25 हो गई है। अब, सभी राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों द्वारा ऑनलाइन शिकायत प्रतितोष का आरम्भ किया जा चुका है।

झ)    सभी राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) का कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के बाद बैठक में हुए विचार-विमर्श में सार्वजनिक वितरण प्रणाली में सुधारों पर ध्यान केन्द्रित किया गया। केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्री जी ने अपने सम्बोधन में कहा कि यद्यपि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) में निर्गम मूल्यों में तीन वर्ष के बाद संशोधन करने का प्रावधान है, तथापि सरकार ने ये मूल्य जून, 2019 तक अपरिवर्तित रखे हैं अर्थात मोटे अनाज/गेहूं/चावल के लिए क्रमशः 1/2/3 रुपए प्रति किलोग्राम। उन्होने लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली के प्रचालनों के एक सिरे से दूसरे सिरे तक कम्प्यूटरीकरण की उपलब्धियों का भी उल्लेख किया जिनमें अन्य बातों के साथ-साथ सभी राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों में एनएफएसए लाभार्थी डाटाबेस का डिजिटीकरण और ऑनलाईन शिकायत निवारण/टोल फ्री हेल्प लाईन की सुविधा शामिल है। उन्होने आगे कहा कि लाभार्थियों के प्रमाणन और लेन-देन की इलेक्ट्रोनिक कैप्चरिंग के लिए लगभग 60% उचित दर दुकानों में ई-पॉइंट ऑफ सेल उपकरणों की स्थापना कर दी गई है। जहां इस क्षेत्र में कार्य की गति धीमी है,उन्होने उन राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों से इसे समयबद्ध तरीके से पूरा करने का आग्रह किया। उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्री जी ने राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों द्वारा कल्याण संस्थानों एवं छात्रावासों को खाद्यान्नों के आवंटन की स्कीम का लाभ उठाने की आवश्यकता पर भी ज़ोर दिया और कहा कि इस स्कीम का दायरा बढ़ाने और इसमें पारदर्शिता लाने के लिए इसमें हाल ही में संशोधन किए गए हैं।

ञ)    उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्री ने यह भी कहा कि राज्य सरकारों से प्राप्त अनुरोधों को ध्यान में रखकर खाद्यान्नों की राज्य के भीतर ढुलाई और उचित दर दुकानों/डीलरों के मार्जिन के लिए राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों को केंद्रीय सहायता के मानदण्‍डों में संशोधन करने पर विचार किया जा रहा है।

ट)    राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों के साथ विचार-विमर्श के दौरान लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली में उचित दर दुकानों के द्वार तक खादयान्नों की सुपुर्दगी करने और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार प्रभावी शिकायत निवारण तंत्र और मानीटरिंग तंत्र स्थापित करने जैसे आवशयक सुधारों के अन्य पहलुओं पर भी जोर दिया गया। राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों से भारतीय खाद्य निगम के गोदामों से खादयान्नों का समय से उठान सुनिश्‍चित करने का भी अनुरोध किया गया, ताकि खादयान्नों के मासिक वितरण में कोई विलम्ब न हो।

ठ)    खरीद और खाद्य सब्सिडी जारी करने के क्षेत्र में निम्नलिखित उपलब्धियां नोट की गईं:-

  1. रबी विपणन मौसम 2018-19 में 355 लाख टन गेहूं की खरीद की गई है, जो 320 लाख टन की अनुमानित खरीद से काफी अधिक है और यह पिछले 3 वर्षों में एक रिकार्ड है।
  2. खरीफ विपणन मौसम 2017-18 में 55 लाख टन के लक्ष्य की तुलना में अब तक 46 लाख टन रबी धान की खरीद की गई है।
  3. 2017-18 के दौरान डीसीपी राज्‍यों को खाद्य सब्‍सिडी के रूप में 38,000 करोड़ रूपए जारी किए गए और भारतीय खाद्य निगम को खाद्य सब्सिडी के रूप में 1,01,982 करोड़ रूपए (40,000 करोड़ रूपए के एनएसएसएफ ऋण सहित) जारी किए गए। यह भी सुनिश्‍चित किया गया है कि सभी राज्य पीएफएमएस के मंच पर आएं ताकि खरीद और वितरण प्रचालनों केविभिन्न स्तरों पर वित्तीय लेन-देन में पूर्ण पारदर्शिता लाई जा सके।

      राष्‍ट्रीय सम्‍मेलन में आगे यह उल्‍लेख किया गया कि उपभोक्‍ता को सशक्‍त बनाना तथा उनके कल्‍याण को सुनिश्चित करना भारत सरकार तथा राज्‍य सरकारों की संयुक्‍त जिम्‍मेदारी है। इस उद्देश्‍य की उपलब्धि में सभी के द्वारा समन्वित कार्रवाई किया जाना आवश्‍यक है। तदनुसार, राष्‍ट्रीय परामर्शी बैठक में अगले वर्ष के दौरान क्रियान्वित किए जाने के लिए निम्‍नलिखित कार्य-योजना को अपनाने पर सहमति व्‍यक्‍त की गई:-

1.    राज्य के सभी मूल्य रिपोर्टिंग केंद्रों द्वारा सप्ताह के सातों दिन और आंकड़ों के संग्रहण के लिए निर्धारित किए गए तरीके के अनुसार मूल्य आंकड़े उपलब्ध कराए जाने चाहिएं। जिन राज्‍यों में केन्‍द्रों की संख्‍या अपेक्षाकृत कम है, वे राज्‍य मूल्‍य-रिपोर्टिंग के लिए अतिरिक्‍त केन्‍द्रों की स्‍थापना कर सकते हैं। राज्य अपने केंद्रों को सुदृढ़ बनाने के लिए संशोधित दिशानिर्देशों के अनुसार अपने प्रस्ताव भेज सकते हैं जिनमें प्रत्येक केंद्र के लिए एक डाटा एंट्री ऑपरेटर और एक हैंडहैल्ड डिवाईस की प्राप्ति का प्रावधान है।

2.    भारत सरकार ने प्रभावी बाजार उपायों के लिए दालों का 20 लाख मीट्रिक टन तक के बफर स्टॉक का सृजन किया है। राज्यों/संघ शासित क्षेत्रों द्वारा मिड-डे-मिल, आंगनबाड़ी स्कीम, अस्पतालों, छात्रावासों जैसी स्कीमों सहित विभिन्न कल्याणकारी स्कीमों के लिए अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए बफर से इन दालों का उपयोग किया जा सकता है और/या राज्य की किसी अन्य एजेंसी द्वारा उनका ईष्टतम प्रबंधन और उपयोग किया जा सकता है।

3.    समरूप वस्तुओं में प्रभावी बाजार उपायों के लिए राज्य अपने राज्यस्तरीय मूल्य स्थिरीकरण कोष स्थापित करने पर विचार कर सकते हैं। भारत सरकार द्वारा राज्य मूल्य स्थिरीकरण कोष में अपना अंशदान, मूल्य स्थिरीकरण कोष के संबंध में बनाए गए दिशानिर्देशों के प्रावधानों के अनुसरण में दिया जाएगा।

4.    राज्यों द्वारा आवश्यक वस्तु अधिनियम और चोरबाजारी निवारण एवं आवश्यक वस्तु प्रदाय अधिनियम के प्रवर्तन के संबंध में की गई कार्रवाई संबंधी रिपोर्ट निर्धारित प्रपत्र में मासिक आधार पर भेजी जानी अपेक्षित है। केवल कुछ ही राज्यों द्वारा यह जानकारी नियमित रूप से उपलब्ध कराई जा रही है। राज्यों को रिपोर्टिंग की सुविधा प्रदान करने के लिए विभाग द्वारा हाल ही में एक वेब-आधारित रिपोर्टिंग तंत्र सृजित किया गया है। राज्य अब अपेक्षित आंकड़ों को नियमित रूप से ऑनलाइन भी भेज सकते हैं।

5.    राज्‍य सरकारों द्वारा समरूप पूर्व-पैकबंद वस्‍तुओं पर दोहरी एम.आर.पी. की घोषणा पर उपयुक्‍त कार्रवाई की जाए।

6.    राज्‍य सरकारें यह सुनिश्‍चित कर सकती हैं कि ई-कॉमर्स की सभी संस्‍थाएं विधिक मापविज्ञान (पैकबंद वस्‍तुएं) नियमावली के अनुसार अनिवार्य घोषणाएं करें।

7.    राज्‍य यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि राज्‍यों में विधिक मापविज्ञान प्रयोगशालाओं को सुदृढ़ करने के लिए केन्‍द्रीय सरकार द्वारा दिए गए सहायता अनुदान के लिए उपयोग प्रमाणपत्र समय से दिए जाते हैं।

8.    राज्य सरकारें, राज्य औरजिला उपभोक्ता मंचों के लिए नियुक्ति, सेवाकाल आदि के संबंध में मॉडल नियम का कार्यान्वयन राज्य सरकारें कर सकती है जिनका अनुमोदन माननीय उच्चतम न्यायलय द्वारा किया गया है।

9.    राज्य सरकारें, उपभोक्ता मंचों के अध्यक्ष और सदस्यों की रिक्तियों को भरने में तेजी ला सकती हैं।

10.   राज्य सरकारें, राज्य उपभोक्ता हेल्पलाइनों के प्रभावी कार्यकरण को सुनिश्चित कर सकती हैं।

11.   राज्य सरकारें, उपभोक्ता जागरूकता कार्यक्रम चला सकती हैं और राज्य उपभोक्ता कल्याण कोष स्थापित कर सकती हैं।

12.   राज्य सरकारें, नोडल अधिकारी नियुक्त कर सकती हैं और प्रत्यक्ष बिक्री दिशानिर्देश, 2016 के तहत तंत्र की मानिटरिंग के कार्यान्वयन को सुनिश्चित कर सकती हैं।

13.   उपभोक्‍ता सशक्तिकरण तथा संरक्षण के लिए यह विभाग विभिन्न स्‍कीमों के माध्‍यम से राज्‍य सरकारों को निधियां प्रदान कर रहा है। राज्‍यों को यह करना है:-

क)    निधियों के उपयोग की समय-सारणी के अनुसार निधियों का उपयोग करना।

ख)    उपभोक्‍ता मंचों के भवनों, विधिक मापविज्ञान प्रयोगशालाओं आदि के निर्माण के लिए भूमि उपलब्‍ध कराना, निधियों के उपयोग में हुए विलंब तथा स्‍कीमों के क्रियान्‍वयन के निष्‍कर्ष।

ग)    जागरूकता सृजन कार्यकलापों की इस विभाग को नियमित रूप से रिपोर्ट भेजी जानी है।

सभी राज्‍य और संघ शासित क्षेत्र समयबद्ध आधार पर कार्य को पूरा करने के लिए एक कार्य-योजना तैयार करेंगे।

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