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बेटी बचाओ, बेटी पढाओ से संबंधित समाचार पर महिला और बाल कल्याण मंत्रालय का स्पष्टीकरण

देश-विदेश

नई दिल्ली: बेटी बचाओ बेटी पढाओ योजना (बीबीबीपी) को लेकर कुछ सुर्खियां मीडिया में दिखाई दीं, जिसके संबंध मेंमहिला और बाल विकास मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि यह योजना बाल लिंगानुपात (सीएसआर) में असंतुलन और गिरावट को रेखांकित करती है। साथ ही महिला सशक्तिकरण से संबंधित मुद्दों पर समाज की मानसिकता को बदलकर बालिकाओं को महत्व देने की बात करती है। बाल लिंग अनुपात में 1961 (1961 में 1976 से 2001 में 927 और 2011 में 998) से तेजी से गिरावट चिंता का विषय है। यह स्थिति बताती है कि जन्म से पूर्व और जन्म के बाद बालिकाओं/महिलाओं के साथ बड़े पैमाने पर भेदभाव होता है। इसी का नतीजा है कि हमारे समाज में महिलाओं की स्थिति बहुत खराब है।

योजना का प्राथमिक और मुख्य लक्ष्य बड़े पैमाने पर राष्ट्रीय जन जागरूकता पैदा करना है और मीडिया के माध्यम से राष्ट्रव्यापी अभियान चलाकर लड़कियों की घटती संख्या के प्रति समाज में संवेदनशीलता पैदा करना है। जिला मजिस्ट्रेट/ डिस्ट्रिक्ट कोलेक्टर/ कलेक्टरों के सक्रिय नेतृत्व में देश भर में 405 चयनित बीबीबीपी जिलों में बड़े पैमाने पर इससे संबंधित अभिनव गतिविधियां चलाई जा रही हैं। यह योजना सामुदायिकता, जागरूकता अभियान और प्रचार पर अपने बजट के पर्याप्त हिस्से को समर्पित करने के लिए डिज़ाइन की गई है, इसलिए यह स्पष्ट है कि इस पर आने वाला खर्च बड़ा होगा।

यह योजना एक त्रि-मंत्रालयीय योजना है जिसमें केंद्रीय, राज्यों और जिलों के स्तर पर महिला और बाल विकास मंत्रालय, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय और मानव संसाधन विकास मंत्रालय की सक्रिय भागीदारी है। राजनीतिक नेतृत्व और प्रतिबद्ध आधिकारिक मशीनरी के साथ ही समाज की तरफ से बेटी बचाओ बेटी पढाओ योजना को अभूतपूर्व प्रतिक्रिया मिली है।

इस योजना का सुखद परिणाम देशभर में देखने को मिला जब बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का संदेश देश के कोने कोने में पहुंच गया है।

इस योजना ने लोगों के बीच अभूतपूर्व विचार-विमर्श और आत्मनिरीक्षण को गति दी है, और इसकी वजह से लड़कियों को लेकर समाज की सोच में बदलाव आया है। यह देश में पिछले 4 वर्षों में बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना को शुरू किए जाने के बाद से जन्म के समय (एसआरबी) लड़कियों की संख्या बढ़ने के सकारात्मक अनुपात से पता चलता है। साथ ही लड़कियों की सुरक्षा, शिक्षा और सशक्तीकरण के लिए बढ़ती मजबूत आवाज़ों को सभी देखा-सुना जा सकता है।

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