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देश के विकास के लिए गांवों का विकास एक आवश्यक पूर्व शर्तः उपराष्ट्रपति

देश-विदेश

नई दिल्ली: उपराष्ट्रपति श्री एम. वेंकैया नायडू ने कहा कि ग्रामीण इलाकों का विकास करते समय उनकी अनोखी पहचान नहीं खत्म होनी चाहिए बल्कि उनकी आत्मा मजबूत बनाई जानी चाहिए। गांवों में सुविधाएं शहरों की तरह होनी चाहिए लेकिन भारतीय गांवों की आत्मा और उनके मूल्यों को संरक्षित किया जाना चाहिए। उपराष्ट्रपति नई दिल्ली में एआईसीटीई-ईसीआई-आईएसटीई छात्र विश्वकर्मा पुरस्कार और एआईसीटीई-एसएजीआई पहल पुरस्कार प्रदान करने के लिए आयोजित समारोह को संबोधित कर रहे थे।

श्री नायडू ने कहा कि ये पुरस्कार युवा छात्रों के समक्ष नए विचारों के साथ आगे आने की चुनौती खड़ी करेंगे जहां निचले स्तर पर तकनीकी हस्तक्षेप के जरिए गांवों के जीवन को प्रभावित करने की काफी संभावना है। महात्मा गांधी के इस वक्तव्य से सहमति व्यक्त करते हुए कि भारत का भविष्य गांवों में है, उपराष्ट्रपति ने कहा कि देश के विकास के लिए गांवों का विकास एक आवश्यक पूर्व शर्त है।

उपराष्ट्रपति ने कहा शैक्षणिक संस्थानों को अपने पाठ्यक्रम नए सिरे से तैयार करने चाहिए ताकि छात्र लोगों से बातचीत करके और उनकी समस्याओं को समझते हुए अपना समय ग्रामीण इलाकों में बिता सकें।

उपराष्ट्रपति ने कहा कि पर्यावरण अनुकूल औद्योगिकीकरण, निरंतर शहरीकरण, और ग्रामीण अर्थव्यवस्था के समावेशन की दिशा में बढ़ते हुए, भारत के पास न केवल दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था बनने की संभावना है बल्कि वह दुनिया के सामने आदर्श पेश करके प्रेरणा स्रोत बन सकता है।

इस बात पर निराशा व्यक्त करते हुए कि विकास के लिए हमारी कल्पना अभी भी अधिकांशतः शहरों पर केन्द्रित है, श्री नायडू ने कहा कि विकास के महत्वपूर्ण संकेतकों के मामले में ग्रामीण भारत अभी भी शहरी भारत से पीछे है।

कृषि क्षेत्र के महत्व पर जोर देते हुए जिस पर आज भी ग्रामीण अर्थव्यवस्था मुख्य रुप से टिकी हुई है, उपराष्ट्रपति ने कहा कि हमें अपनी कृषि में लगातार सुधार करने होंगे और नयापन लाना होगा ताकि खेती प्रतिफल देने वाली, फायदेमंद और लगातार हो।

श्री नायडू ने कहा कि भारत जैसे विविधता वाले देश का विकास ‘सभी परिस्थितियों के लिए उपयुक्त’ वाले दृष्टिकोण से नहीं हो सकता। प्रत्येक गांव की अपनी अलग पहचान है, उसके अपने उद्योग हैं और विकास की अपनी जरूरतें हैं। उन्होंने कहा कि हमारी योजनाओं में लोगों की आकांक्षाओं का समावेश होना चाहिए, उनकी क्षमता को तरजीह दी जानी चाहिए और उनकी कमजोरियों पर गौर नहीं किया जाना चाहिए।

इस बारे में अपना दृढ़ मत प्रकट करते हुए कि विकास और पर्यावरण संरक्षण परस्पर अनन्य उद्देश्य नहीं हैं बल्कि वे मानार्थ हैं, उपराष्ट्रपति ने युवा टेक्नोक्रेट से आग्रह किया कि वे अपने अविष्कारों के लिए संभावना की गणना करते समय प्राथमिकता के आधार पर पर्यावरण संबंधी मूल्यों पर गौर करें। उन्होंने चेतावनी दी कि हम अपने पारिस्थितिकीय पदचिन्हों की अनदेखी नहीं कर सकते।

भारत के सामने एक तरफ मौजूद कुपोषण और भूख तथा दूसरी तरफ मोटापा और जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों की दोहरी चुनौतियों पर रोष व्यक्त करते हुए श्री नाडयू ने युवाओं का आह्वान किया कि वे संतुलित आहार लें और स्वस्थ जीवन बिताएं। उन्होंने कहा कि केवल एक स्वस्थ राष्ट्र ही सम्पन्न राष्ट्र बन सकता है।

संतुलित विकास का आह्वान करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि विकास के प्रति हमारा दृष्टिकोण दो बातों पर केन्द्रित होना चाहिए, यह विस्तृत होना चाहिए और इसमें शहरी और ग्रामीण हकीकतों को ध्यान में रखा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि हमारे शहरी स्थान तेजी से भीड़भाड़ वाले बन रहे हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि ग्रामीण इलाकों में आजीविका, कनेक्टिविटी, स्वास्थ्य सेवाओं, बुनियादी ढांचा और मनोरंजन की सुविधा प्रदान करके कठिनाई के कारण होने वाले पलायन को कम किया जा सकता है।

उपराष्ट्रपति ने कहा कि थ्रीडी- जनसांख्यिकी, मांग और लोकतंत्र आज के भारत को दुनिया के अन्य देशों के मुकाबले श्रेष्ठ बना रहे हैं। उन्होंने कहा कि उन्हें भारत के युवाओं की दूरदर्शिता और उनकी क्षमताओं पर पूरा भरोसा है जो देश की कुल जनसंख्या का 65 प्रतिशत हैं।

उन्होंने भारतीय इंजीनियरिंग परिषद और भारतीय तकनीकी शिक्षा समाज के सहयोग से ग्रामीण विकास को उत्प्रेरित करने के लिए अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद के प्रयासों की सराहना की।

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