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दिल्ली में बिजली महंगी करने की तैयारी में डीईआरसी

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नई दिल्ली: राजधानी में बिजली के रेट बढ़ सकते हैं। दिल्ली के पावर रेग्युलेटर डीईआरसी ने 2015-16 के लिए टैरिफ को रिवाइज करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। डीईआरसी ने यह कदम ऐसे समय में उठाया है, जबकि बिजली दरों में बढ़ोतरी को लेकर वह सरकार के आमने-सामने है। सरकार का डीईआरसी को टैरिफ दरों में और बढ़ोतरी नहीं करने का स्पष्ट संकेत है, इसके बाजवूद डीईआरसी ने मौजूदा दरों की समीक्षा की प्रक्रिया शुरू कर दी है।

डीईआरसी के चेयरमैन पी. डी. सुधाकर का कहना है कि टैरिफ रेट रिवाइज करने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। डीईआरसी के एक अधिकारी के अनुसार आयोग एक अर्द्धन्यायिक संस्था है और वह बिजली की लागत, प्राइवेट बिजली सप्लाई कंपनियों की वित्तीय स्थिति की समीक्षा के बाद टैरिफ दरों में संशोधन के लिए पूरी तरह स्वतंत्र है। यहां यह बता दें कि आम आदमी पार्टी डीईआरसी के कामों की आलोचना करती रही है और उसने इससे बीते कुछ सालों में की गई टैरिफ दर में इजाफा के बारे में स्पष्टीकरण भी मांगा था।

दिल्ली में ‘आप’ की सरकार बनने के बाद डीईआरसी को अप्रत्यक्ष रूप से यह कहा गया है कि बिजली सप्लाई कंपनियों का सीएजी ऑडिट पूरा होने तक वह टैरिफ दरों की नई समीक्षा शुरू नहीं करे। इसके बावजूद डीईआरसी ने समीक्षा शुरू कर दी है। दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने जनता से बिजली में सब्सिडी का भी भरोसा दिया था और चुनाव में बिजली एक अहम मुद्दा भी था। ऐसे में अब नई सरकार नहीं चाहती है कि फिर से बिजली के रेट बढ़ें। पिछले कुछ सालों से लगातार बिजली के टैरिफ में इजाफा किया जा रहा है। साल 2011 में बिजली के रेट 22% बढ़ाए गए थे। इसके बाद फरवरी 2012 में इसमें पांच पर्सेंट की बढ़ोतरी की गई थी। मई 2012 में भी दो पर्सेंट रेट बढ़ाया गया और घरेलू उपभोक्ताओं के लिए जुलाई 2012 में 26% का इजाफा किया गया। इसी प्रकार फरवरी 2013 में तीन पर्सेंट और अगस्त में पांच पर्सेंट रेट बढ़ाए गए।

प्राइवेट पावर डिस्ट्रिब्यूशन कंपनियां, खासतौर से बीएसईएस राजधानी पावर लिमिटेड और बीएसईएस यमुना पावर लिमिटेड टैरिफ में बढ़ोतरी की मांग उठाती रही हैं। उनका कहना है कि उनके लिए बिजली खरीदने की लागत बढ़ गई है। दोनों ही डिस्कॉम्स मिलकर दिल्ली के 70% एरिया में बिजली सप्लाई करती हैं। डीईआरसी के आंकड़ों के अनुसार, शहर में बिजली सप्लाई कर रहीं प्राइवेट डिस्कॉम्स की लागत और आमदनी के बीच 14,000 करोड़ रुपये का गैप है। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, डिस्कॉम्स की आमदनी का करीब 80-90% हिस्सा केंद्र और राज्य सरकारों की इकाइयों से बिजली खरीदने में चला जाता है। यह खरीदारी लॉन्ग टर्म पावर परचेज अग्रीमेंट के जरिये केंद्र और राज्य के रेग्युलेटर्स की ओर से तय रेट्स पर होती है।

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