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ब्राजील के प्रतिनिधिमंडल ने ब्रिक्स फिल्म समारोह में ब्राजील की फिल्मों के सार तत्व एवं चुनौतियों पर चर्चा की

देश-विदेश

नई दिल्ली: ब्राजील के प्रतिनिधिमंडल ने ब्रिक्स फिल्म समारोह के दौरान उपस्थित मीडिया को संबोधित करते हुए कहा कि भारत सांस्कृतिक रूप से एक समृद्ध और विविधतापूर्ण देश है और ब्राजील कई मायनों में भारत के ही समान है। ब्राजील की फिल्मों के कलाकारों एवं तकनीकी कर्मियों ने फिल्मों के पीछे के विचार तथा फिल्मों की शूटिंग करने के दौरान हुए अपने अनुभवों को साझा किया। उन्होंने ब्रिक्स फिल्म समारोह में ब्राजील की भागीदारी के महत्व पर भी प्रकाश डाला।

इस अवसर पर फिल्म “दे विल कम बैक” की चर्चा करते हुए फिल्म की अभिनेत्री मारिया लुइज़ा टवारेश ने कहा कि इस फिल्म को वर्ष 2011 में फिल्माया गया था जब वह केवल 13 वर्ष की थी। 2015 से ही वह दुनिया भर में विभिन्न फिल्म समारोहों में फिल्म की स्क्रीनिंग के लिए यात्रा कर रही है और उसने तब से काफी कुछ सीखा है।

फिल्म “दे विल कम बैक” क्रिस एवं उसके बडे भाई पीयू की कहानी है जिन्हें उनके अपने माता-पिता द्वारा समुद्री तट की एक यात्रा के दौरान लगातार आपस में लड़ने की सज़ा के रूप में एक सड़क के किनारे छोड़ दिया गया है। कुछ घंटों के पश्चात् यह महसूस करने के बाद कि उनके माता-पिता अब वापस नहीं लौटेंगे, पीयू एक गैस स्टेशन की तलाश में चला जाता है। क्रिस पूरे दिन उसी जगह पर बिना अपने माता-पिता या भाई के बारे में कोई खबर जाने बैठी रहती है और फिर खुद ही घर वापस लौटने का फैसला करती है।

रोड 47 की निर्माता इजाबेल मार्टिनेज कहती है कि रोड 47 दुनिया के लिए एक बेहद महत्वपूर्ण फिल्म है क्योंकि यह द्वितीय विश्वयुद्ध के सैन्य इतिहास के अब तक अचर्चित रहे अध्याय का खाका खींचती है। दुनिया इटली में मित्र देशों की सेनाओं में 25 हजार ब्राजीली सैनिकों के टुकड़ियों की भागीदारी के बारे में अवगत नहीं है। रोड 47 एक एक्शन फिल्म नहीं है, लेकिन यह युद्ध में ब्राजील की भागीदारी की चर्चा करती है और इसे अधिकतर इटली में ही फिल्माया गया है।

“बिटविन वैलीज” की सहायक निर्माता क्रिस्टिन डी स्टेफानो फ्यू ने अपने अनुभव को साझा करते हुए कहा कि डम्पिंग काम के जारी रहते हुए दुनिया के एक सबसे बड़े डम्प्स्टर में फिल्म की शूटिंग करना काफी चुनौतीपूर्ण था। इसी से जुड़ा एक अन्य कठिन कार्य डम्प्स्टरों में रहने वाले लोगों की जीवनशैली को सीखना था जो जीने के संघर्ष में अपनी पहचान खो बैठे थे।

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