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लोक अदालत के माध्यम से सुलह योग्य वादों का निस्तारण किया जाएगा: विधायी मंत्री, ब्रजेश पाठक

उत्तर प्रदेश

लखनऊ: प्रदेश के विधायी एवं न्याय, अतिरिक्त ऊर्जा स्रोत तथा राजनैतिक पेंशन मंत्री श्री ब्रजेश पाठक ने कहा है कि 10 फरवरी, 2018 को पूरे प्रदेश में राष्ट्रीय लोक अदालत का आयोजन किया जाएगा। इस लोक अदालत में सभी सुलह योग्य वादों का निस्तारण किया जाएगा। इसमें आपराधिक शमनीय वाद, धारा 138 परक्राम्य लिखित अधिनियम के वाद, बैंक वसूली वाद, मोटर दुर्घटना प्रतिकर के वाद, श्रम मामलों के वाद, विद्युत बिल तथा जल कर वाद, पारिवारिक /वैचारिक मामले, भूमि अधिग्रहण वाद, सेवा/वेतन संबंधी वाद, राजस्व वाद तथा अन्य दीवानी वादों को सुलह समझौते से हल किए जाएंगे।

श्री पाठक आज यहां एनेक्सी स्थित मीडिया सेन्टर में राष्ट्रीय लोक अदालत के आयोजन के बारे में मीडिया को जानकारी दे रहेे थे। उन्होंने कहा है कि उ0प्र0 सरकार लोक अदालतों के माध्यम से वादकारिर्यों को त्वरित एवं सस्ता न्याय दिलाने के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा है कि लोक अदालत के माध्यम से न्यायालय में लम्बित वादों की संख्या में प्रभावी कमी सुनिश्चित करने का सार्थक एवं परिणोन्मुखी प्रयास किया जा रहा है। मा0 उच्चतम न्यायालय से लेकर तहसील स्तर तक लेकर समस्त न्यायालयों, अधिकरणों, निकायों, फोरम शासकीय संस्थानों आदि में लोक अदालत लगाई जाएगी।

विधायी मंत्री ने बताया कि सुलह योग्य वादों में यदि पक्षकार पारस्परिक सद्भावना के अधीन सुलह हेतु इच्छुक होंगे, ऐसे मामले भी लोक अदालत में लिए जाएंगे। उन्होंने कहा है कि वादों में पक्षकारों के मध्य पारस्परिक सद्भावना जागृत करने के उद्देश्य से प्री-ट्रायल बैठकें जनपद न्यायालयों में आयोजित की जाएगी। लोक अदालत में वादों को निस्तारित करने से न्यायालय से निस्तारित वादों की तुलना में वादकारियों को अनेक लाभ भी मिलेंगे। उन्होंने कहा कि सभी प्रकार के सिविल वाद या ऐसे अपराधों को छोड़कर जिनमें समझौता वर्जित है, सभी आपराधिक मामले भी लोक अदालतों द्वारा निपटाए जाएंगे। लोक अदालतों के फैसलों को अदालत का फैसला माना जाता है, जिसे कोर्ट की डिक्री की तरह सभी पक्षों पर अनिवार्य रुप से बाध्य होते हुए लागू कराया जाता है। लोक अदालत के फैसलों के विरुद्ध किसी भी न्यायालय में अपील नहीं की जा सकती है। लोक अदालत में समझौते के माध्यम से निस्तारित मामलों में अदा की गई कोर्ट फीस भी लौटा दी जाती है।

श्री ब्रजेश पाठक ने कहा कि  त्वरित एवं सस्ता न्याय सुनिश्चित किया जाना आज न्याय प्रलाणी के समक्ष बड़ी चुनौती है। सभी नागरिकों को न्याय के समान अवसर उपलब्ध कराने के लिए सरकार प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा है कि सुदूरवर्ती  ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले विभिन्न समाज के अपवंचित एवं निर्धन व्यक्तियों को विधिक योजना का लाभ पहंुचाने के उद्देश्य से केन्द्र स्तर पर राष्ट्रीय विधिक एवं प्राधिकरण, राज्य स्तर पर राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण, मा0 उच्च न्यायालय स्तर पर मा0 उच्च न्यायालय विधिक सेवा समिति जिला स्तर पर जिला विधिक सेवा प्राधिकरण एवं तहसील स्तर पर तहसील विधिक सेवा समिति का गठन किया गया है, ताकि कोई भी नागरिक आर्थिक अक्षमता या अन्य कारणों से न्याय प्राप्त करने के समान अवसर से वंचित न रह सके।

विधि मंत्री ने बताया कि वर्ष 1982 में गुजरात प्रान्त के जूनागढ़ जिले में मा0 न्यायमूर्ति श्री ए0पी0 ठक्कर के प्रयासों से प्रायोगिक तौर पर लोक अदालतों को शुरु किया गया एवं उ0प्र0 में इसे वर्ष 1985 में पहली बार आयोजित किया गया। इसकी उपयोगिता को देखते हुए विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 एवं बाद में सिविल प्रक्रिया संहिता में धारा 89 के तहत लोक अदालतों को विधिक मान्यता प्रदान की गई है। वर्ष 1985 के पश्चात से निरन्तर लोक अदालतें अपने राज्य में लगाई जा रही है। मा0 उच्चतम न्यायालय के स्तर पर सर्वप्रथम वर्ष 2008 में लोक अदालत का आयोजन किया गया था।

श्री पाठक ने कहा कि वादों की बढ़ती संख्या में विराम लगाने के उद्देश्य से मा0 न्यायमूर्ति श्री रंजन गेागोई, न्यायधीश, मा0 सर्वोच्च न्यायालय/मा0 कार्यपालक अध्यक्ष, राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा भारत वर्ष में मा0 उच्च न्यायालय से तहसील स्तर तक 10 फरवरी, 2018 को राष्ट्रीय लोक अदालत काराये जाने हेतु निर्देशित किया गया है। उन्होंने कहा कि अनुसूचित जाति/जनजाति एवं अन्य दलित वर्ग के लोगों की पहंुच न्यायालय तक आसानी से नहीं हो पाती है, जिससे उन्हें समाजिक न्याय उपलब्ध हो सके। इस अवसर पर प्रमुख सचिव न्याय एवं अन्य अधिकारी उपस्थित रहे।

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