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राष्ट्रपति ने एम सी महाजन डीएवी महिला कॉलेज, चंडीगढ़ के स्वर्ण जयंती समारोह को संबोधित किया

देश-विदेश

नई दिल्लीः राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद ने चंडीगढ़ में एम सी महाजन डीएवी महिला कॉलेज के स्वर्ण जयंती समारोह को संबोधित किया।

इस अवसर पर राष्ट्रपति ने कहा कि उन्हें एमसी महाजन डीएवी महिला कॉलेज के स्वर्ण जयंती समारोह में शिरकत करके खुशी हो रही है। उन्होंने कहा कि महान समाज सुधारक स्वामी दयानंद सरस्वती और भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश स्वर्गीय मेहरचंद महाजन के विजन से प्रेरित होकर यह महाविद्यालय महिला शिक्षा के क्षेत्र में अहम भूमिका निभा रहा है। पिछले पांच दशकों के दौरान उत्तर भारत में महिला शिक्षा के क्षेत्र में एमसीएम डीएवी कॉलेज ने महान योगदान किया है। राष्ट्रपति ने उम्मीद जाहिर की कि यह महाविद्यालय क्षेत्र में एक आदर्श के रूप में काम करता रहेगा और आने वाले 50 वर्षों के दौरान और प्रगति हासिल करेगा।

राष्ट्रपति महोदय ने स्वतंत्र भारत के पहले योजनाबद्ध शहर चंडीगढ़ की प्रसंशा की। उन्होंने कहा कि चंडीगढ़ हमारे देश के लिए शहरी योजना का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। यह शहर ‘हरित भारत,’ ‘स्वच्छ भारत’ और ‘स्वस्थ भारत’ का प्रतीक है। उन्होंने चंडीगढ़ के शहरियों और प्रशासकों को उनके योगदान के लिए बधाई दी।

1.       ‘एम सी एम – डी ए वी महिला कॉलेज’ के स्‍वर्ण जयन्‍ती समारोह में आकर मुझे अत्यंत प्रसन्नता हुई है। महान समाज सुधारक स्‍वामी दयानन्‍द सरस्‍वती की प्रेरणा और सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व प्रधान न्यायाधीश स्वर्गीय मेहर चन्द महाजन के सहयोग से स्‍थापित यह कॉलेज, बेटियों की शिक्षा के क्षेत्र में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। आज का दिन इस कॉलेज की संस्‍थापक प्रिंसिपल श्रीमती शकुन्‍तला रॉय और श्रीमती स्‍नेह महाजन की सेवाओं को भी याद करने का दिन है। इस अवसर पर मैं कॉलेज की प्रबंध समिति, प्राचार्य, संकाय-सदस्‍यों, स्‍टाफ के सदस्‍यों, पूर्व शिक्षकों के साथ-साथ वर्तमान और पूर्व विद्यार्थियों को भी बधाई देता हूं।

2.      भारत के राष्‍ट्रपति के रूप में दायित्‍व संभालने के बाद Le Corbusier द्वारा डिजाइन किए गए इस शहर में मेरी यह पहली यात्रा है। चंडीगढ़, आज़ाद भारत की पहली planned city है। नगर नियोजन के मामले में चंडीगढ़ एक उदाहरण पेश करता है। यह, ‘हरित भारत’, ‘स्‍वच्‍छ भारत’ और ‘स्‍वस्‍थ भारत’ की मिसाल है। इसके वर्तमान स्‍वरूप में यहां के नागरिकों का बहुमूल्‍य योगदान है। यहां के जागरूक नागरिकों और प्रशासकों के योगदान के लिए मैं उन्‍हें बधाई देता हूं।

3.      इस शहर ने Recycling के क्षेत्र में उल्‍लेखनीय पहल की है जिसकी मिसाल है- ‘नेकचन्‍द का रॉक गार्डन’। इसके पीछे इस नगर के योजनाकारों की दूर-दृष्‍टि का योगदान है। शुरुआत से ही यहां री-साइक्‍लिंग, री-यूज, री-जुविनेशन पर ध्‍यान दिया गया है। शहरों में पैदा हो रहे कचरे का, बची-खुची चीजों का, Industrial Waste का और Renewable energy का उपयोग करने में भी चंडीगढ़ ने पहल की है।

4.      यह कॉलेज, ‘दयानन्‍द एंग्‍लो–वैदिक’ शिक्षा संस्‍थानों में से एक है। स्‍वामी दयानन्‍द सरस्‍वती ने उन्‍नीसवीं शताब्‍दी में ही यह समझ लिया था कि शिक्षा और सामाजिक सुधार, किसी समाज को प्रगति के मार्ग पर ले जाने का सशक्त माध्यम हैं। सामाजिक सुधार के लिए उन्‍होंने ‘आर्य समाज’ की स्‍थापना की। ‘आर्य समाज’ यानि कि ‘आचरण’ से, ‘विचार’ से श्रेष्‍ठ जनों का समाज। वे महिला सशक्‍तीकरण को बहुत महत्‍व देते थे। इसी लिए उन्‍होंने बेटियों की शिक्षा के लिए ‘कन्‍या विद्यालयों’ की स्‍थापना की। यही विद्यालय आगे चलकर ‘डीएवी’ शिक्षा संस्‍थानों का आधार बने। डीएवी की शिक्षा-पद्धति में विरासत और आधुनिकता का, ज्ञान और विज्ञान का, अंग्रेजी और हिन्‍दी का, भारतीय ज्ञान परंपरा और पाश्‍चात्‍य वैज्ञानिक दृष्‍टिकोण का अद्भुत मिश्रण है। इसी शिक्षा पद्धति ने पूर्व प्रधान-मंत्री और भारत-रत्‍न श्री अटल बिहारी वाजपेयी जैसा प्रखर व्‍यक्‍तित्‍व देश को दिया है। मैंने भी कानपुर के डीएवी कॉलेज से शिक्षा प्राप्‍त की है।

देवियो और सज्‍जनो !

5.      किसी समाज का विकास सही मायनों में तभी होता है जब उस समाज की महिलाएं सशक्‍त हों और शिक्षित हों। एक शिक्षित बेटी कम से कम दो परिवारों को शिक्षा और ज्ञान के महत्‍व से अवगत कराती है। वह अपने परिवार के भविष्‍य की बेहतर देख-भाल करती है और भावी पीढ़ी को भी सुशिक्षित बनाती है।

6.      चाहे संस्‍कृति कला या खेल-कूद का क्षेत्र हो, या फिर व्‍यापार और उद्योग का। हमारी बेटियों ने देश का नाम हर क्षेत्र में रोशन किया है। इसी श्रंखला में, चंडीगढ़ की वर्तमान सांसद श्रीमती किरण खेर ने भी सिने-जगत में अपनी खास पहचान बनाई है।

7.      अपने-अपने क्षेत्रों में उल्‍लेखनीय काम करने वाली चंडीगढ़ की बेटियों के नामों की एक लंबी सूची है। लेकिन, यदि मुझे केवल एक नाम लेना हो तो मैं नीरजा भनोट का नाम लेना चाहूंगा। 1986 में अपनी बहादुरी से आतंकवादियों के मंसूबों को विफल करते हुए नीरजा ने 359 हवाई यात्रियों की जानें बचाईं। अपनी जान देकर दूसरों की जान बचाने वाली ऐसी बहादुर बेटी पर चंडीगढ़ को ही नहीं, पूरे देश को नाज़ है।

8.      पढ़-लिखकर बेटियां, आज नौकरियों में अपने कौशल का प्रयोग कर रही हैं, हालांकि संगठित क्षेत्र में उनका प्रतिशत कम है। ये समय टैक्‍नोलॉजी का, Artificial Intelligence का और सर्विस सैक्‍टर का समय है। चंडीगढ़ में आईटी और टैक्‍नोलॉजी के विकास के लिए टैक्‍नोलॉजी पार्क बनाया गया है। आईटी क्षेत्र में बेटियों की संख्‍या पिछले सालों में काफी बढ़ी है। इसी प्रकार से उच्‍चतर शिक्षा में बालिकाओं का नामांकन 2015-16 में लगभग 46 प्रतिशत तक हो गया है, लेकिन प्रौद्योगिकी और इंजीनियरिंग जैसे क्षेत्रों में उनका प्रतिशत अभी भी कम है।  मुझे उम्‍मीद है कि इस कॉलेज जैसे संस्‍थानों और समाज के संयुक्‍त प्रयासों से इन क्षेत्रों में भी हमारी बेटियां आगे बढ़ेंगीं।

प्रिय विद्यार्थियो,

9.      यह आवश्यक है कि आप सब विद्यार्थी-गण देश और समाज के प्रति अपने दायित्‍वों को समझें। अपने व्यक्तिगत एवं व्यावसायिक जीवन में सामंजस्य स्थापित करते हुए आगे बढ़ें। ऐसे सामंजस्य के बल पर ही हम एक विकसित राष्ट्र बन सकते हैं। इसलिए, इस महाविद्यालय के हर विद्यार्थी का यह प्रयास होना चाहिए कि उसके ज्ञान का उपयोग देश के लिए हो और समाज के ग़रीब से ग़रीब व्‍यक्‍ति की बेहतरी के लिए हो।

देवियो और सज्‍जनो !

10.    पुरुष-प्रधान समाज में महिलाओं को जीवन-भर, हर क़दम पर रुकावटों का सामना करना पड़ता है। इस स्‍थिति से बाहर कैसे निकला जाए? मेरी समझ से, यदि माता-पिता और परिवारी-जन बेटियों को खुले में जीने की आज़ादी देंगे; उनको वैचारिक और सामाजिक स्‍वतंत्रता देंगे, उनको नए-नए क्षेत्रों का अनुभव प्राप्‍त करने के लिए प्रोत्‍साहित करेंगे, तो बेटियों का आत्‍म-विश्‍वास बढ़ेगा। वे नई बुलंदियों को छुएंगीं। अभी पिछले हफ्ते फ्लाइंग ऑफीसर अवनि चतुर्वेदी ने अकेले ही फाइटर प्‍लेन उड़ाकर भारतीय इतिहास में अपना नाम दर्ज कराया है। हरियाणा की फोगाट बहिनों ने भी यही दर्शाया है कि कोई भी क्षेत्र बेटियों के लिए ‘taboo’ नहीं होता। पी वी सिंधू, सानिया मिर्जा, सान्‍या नेहवाल और अरुणा रेड्डी के माता-पिता ने यदि उन्‍हें आज़ादी न दी होती, exposure न दिया होता और प्रोत्‍साहन न दिया होता तो वे देश के लिए बड़ी कामयाबी कैसे हासिल करतीं?

11.    महिलाओं पर परिवार की जिम्‍मेदारियां भी खूब होती हैं। लेकिन ये जिम्‍मेदारियां उनके रास्‍ते की अड़चन नहीं बननी चाहिए। ऐसा उदाहरण, मणिपुर की एम.सी. मेरीकॉम ने पेश किया। उन्‍होंने पारिवारिक जीवन में प्रवेश के बाद भी बॉक्‍सिंग के खेल में शामिल होना और जीतना बन्‍द नहीं किया। वे, हर भारतीय महिला के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं।

12.    एमसीएम कॉलेज ने इन 5 दशकों में उत्‍तर भारत में महिला शिक्षा में अच्‍छा योगदान किया है। मुझे विश्‍वास है कि इस क्षेत्र के एक आदर्श कॉलेज के रूप में यह आगे भी काम करता रहेगा। उम्‍मीद है कि आने वाले 50 वर्ष के बाद जब इस कॉलेज का शताब्‍दी समारोह मनाया जाएगा, तो कॉलेज का नाम, भारत के शैक्षिक मानचित्र पर प्रभावशाली रूप से अंकित होगा। एम सी एम- डी ए वी महिला कॉलेज नित नई ऊंचाइयां हासिल करे; इसके लिए मैं आप सभी को अपनी शुभकामनाएं देता हूं।

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