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नहाय-खाय के साथ छठ पूजा की शुरुआत, 34 साल बाद बना महासंयोग

अध्यात्म

लखनऊ: सूर्य उपासना का महापर्व छठ पूजा की शुरूआत मंगलवार को नहाय खाय के साथ हो गई। पहले दिन गणेश चतुर्थी है और सूर्य का रवियोग भी है। ज्योतिष के मुताबिक ऐसा महासंयोग 34 साल बाद बन रहा है। रवियोग में छठ की विधि विधान शुरू करने से हर मनोकामना पूरी होती है। कुंडली में कितनी भी बुरी दशा चल रही हो, चाहे शनि-राहु कितना भी भारी क्यों ना हों, सूर्य के पूजन से सभी परेशानियों का नाश हो जाएगा। ऐसे महासंयोग में यदि सूर्य को अर्घ्य देने के साथ हवन किया जाए तो आयु बढ़ती है।

चार दिवसीय त्योहार के पहले दिन महिलाओं ने विधि विधान से पूजन किया। व्रत कर परिवार की खुशहाली की कामना माएं कर रही हैं। व्रतियों ने स्नान के बाद धूप अगरबत्ती के साथ विधि-विधान से सूर्य देवता का पूजन किया। पहले दिन व्रती महिलाएं सूरज देवता की पूजा करती हैं। इसके बाद दोपहर में चावल की सब्जी, चने की दाल और रोटी व्रती महिलाएं ग्रहण करेंगी। शाम के पहर में भी इसी तरह भोजन ग्रहण किया जाएगा। पर्व के पहले दिन पूजा में चढ़ाने के लिए सामान भी तैयार हो चुके हैं। कई व्रतियों ने प्रसाद तैयार करने के लिए मिट्टी के चूल्हे भी तैयार किए हैं।

छठ पूजन में व्रती 36 घंटे तक निर्जल व्रत रहती हैं। इसलिए इससे पहले कई तरह के प्रसाद चढ़ाया जाता है। नहाय-खाय के साथ मंगलवार को पूजन प्रारंभ हो गया है। बुधवार को खरना के बाद व्रती महिलाओं का 36 घंटे का कठिन निर्जल व्रत चालू हो जाएगा। वहीं बाजार में दौरा, सूप, नारियल, धूप की लकड़ी, माला, हल्दी जड़ सहित, अदरक, शकरकंद, गन्ने और फल की बिक्री जोरों से चल रही है। गुरुवार को संध्याकालीन छठ पूजा होगी। इसके बाद शुक्रवार को सुबह में सूर्य को अर्घ्य देने के बाद छठ पूजन संपन्न होगा।

लखनऊ में लक्ष्मण मेला स्थल से लेकर, इंद्रलोक कॉलोनी के मंदिर परिसर, महानगर, छोटी तथा बड़ी नहर आलमबाग, गोमती नदी के झूलेलाल घाट, कृष्णा नगर के मानस नगर के मोचन हनुमान मंदिर, कुड़िया घाट तथा अग्रसेन घाट सहित शहर के घाटों पर विशेष छठ पूजन का आयोजन होगा।

जानकारी के मुताबिक कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से सप्तमी की तिथि तक भगवान सूर्यदेव की अटल आस्था का पर्व छठ पूजा मनाया जाता हैै। नहाय खाय के साथ ही लोक आस्था का महापर्व छठ की शुरुआत हो जाती है। चार दिन तक चलने वाले इस आस्था के महापर्व को मन्नतों का पर्व भी कहा जाता है। इसके महत्व का इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि इसमें किसी गलती के लिए कोई जगह नहीं होती इसलिए शुद्धता और सफाई के साथ तन और मन से भी इस पर्व में जबरदस्त शुद्धता का ख्याल रखा जाता है।

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