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जानिये क्या है इबोला वायरस बीमारी?

जानिये क्या है इबोला वायरस बीमारी?
सेहत

इबोला वायरस बीमारी (ईवीडी), वायरल रक्तस्रावी बुखारों में से होने वाली एक बीमारी है, जिसे इबोला रक्तस्रावी बुखार (ईएचएफ) के रूप में जाना जाता है, जो व्यक्ति की रक्त प्रणाली को प्रभावित करता है।

  • यह अक्सर मानव और गैर मानव प्राइमेट (नर वानर गण जैसे कि बंदरों, गोरिल्ला और चिम्पांजी) में होने वाली एक गंभीर और घातक बीमारी है।
  • यह वायरस संक्रमण के कारण होता है, जो कि जंगली जानवरों से लोगों में प्रसारित होता है तथा इसके उपरांत यह बीमारी मानव आबादी में फैल जाती है।
  • ईवीडी से संक्रमित होने वाले नब्बे प्रतिशत मामलों में व्यक्ति की मृत्यु हो जाती हैं।
  • ईवीडी प्रकोप (रोग की अचानक उपस्थिति) उष्णकटिबंधीय वर्षावन के नज़दीक, मुख्य रूप से मध्य और पश्चिम अफ्रीका के गांवों में पैदा होने के लिए जानी जाता हैं।
  • इबोला का सबसे अधिक प्रकोप पश्चिम अफ्रीका में वर्ष २०१४ से चल रहा हैं, जिसने गिनी, लाइबेरिया, सिएरा लियोन और नाइजीरिया को प्रभावित किया है। अगस्त २०१४ में, अधिक से अधिक १७५० संदिग्ध मामलें देखें गए है।
  • गंभीर संक्रमण से पीड़ित रोगियों को गहन सहायक चिकित्सा देखभाल की आवश्यकता होती है। इस बीमारी के लिए कोई विशेष उपचार या टीका उपलब्ध नहीं है।

इतिहास

ईवीडी का प्रकोप सबसे पहले सूडान और कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य में पैदा हुआ था। आमतौर पर इस बीमारी का प्रकोप उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों के उप सहारा अफ्रीका में प्रकट हुआ था। हर वर्ष कम से कम एक हज़ार लोग, वर्ष १९७६ से २०१३ तक संक्रमित हो चुके है। इबोला का वायरस सबसे पहले रक्तस्रावी इबोला बुखार के प्रकोप के दौरान १९७६ में ज़ैरे और सूडान में पाया गया था। इस बीमारी का प्रकोप पहली बार १९७६ में, कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य में हुआ था, जो कि (ज़ैरे) इबोला नदी पर स्थित है।

लक्षण: इबोला वायरस बीमारी के लक्षण।

१.    बुख़ार।

२.    सिरदर्द।

३.    कमज़ोरी।

४.    जोड़ों और मांसपेशियों में दर्द।

५.    दस्त/डायरिया।

६.    उल्टी।

७.    पेट में दर्द।

८.    भूख में कमी।

इस बीमारी के अगले चरण की प्रगति में खून बहता हैं, जिसमें आँखों, नाक व कान से बाहरी रक्तस्राव होने लगता है। इसके साथ ही शरीर के अंदर भी खून बहता है।

वायरस के संपर्क में आने के बाद, इसके लक्षण दो से इक्कीस दिनों के भीतर कभी भी दिखाई दे सकते हैं। हालांकि इबोला वायरस के संपर्क में आने के बाद लगभग आठ से दस दिन सबसे अधिक सामान्य होते है।

कारण: ईवीडी चार से पांच जेनस इबोला वायरस फिलोविरिडी परिवार के वायरस के कारण होता है, जिसका प्रकार मोनोनेगा वायर्ल्स हैं। चार बीमारियाँ – मानव में निम्नलिखित वायरस के कारण होती हैं :

  1. बुंडीबुगियोबोलावायरस (बीडीबीवी)
  2. जायरे इबोलावायरस (इबीओवी)
  3. सूडान इबोलावायरस (एसयूडीवी)
  4. ताई फोरेस्‍ट इबोलावायर (टीएएफवी)

बीडीबीवी, ईबीओवी, एसयूडीवी सबसे ख़तरनाक वायरस हैं, जो कि अफ्रीका में बड़े पैमाने पर प्रकोप के कारण के लिए उतरदायी पाया गया हैं।

गैर मानव प्राइमेट (बंदरों, गोरिल्ला और चिम्पांजी) में बीमारी पैदा करने के लिए पांचवें वायरस को रेस्टेर्न इबोलावायरस (आरईएसटीवी) के नाम से जाना जाता हैं।

संचारण

क. संक्रमण के प्राथमिक स्रोत – यह वायरस पशु से मनुष्यों में फैलता है। यह वायरस (पशु जनित) जूनोटिक है। मनुष्यों के संक्रमित चमगादड़ों के साथ संपर्क में आने या उनके कच्चें मांस के सेवन द्वारा संक्रमित होने की संभावना अधिक होती हैं।

संक्रमण के द्वितीयक स्रोत – यह वायरस निम्निलिखित के माध्यम से मनुष्य से मनुष्य में संचारित हो सकता हैं :

१. यह बीमारी संक्रमित व्यक्ति के शरीर से उत्सर्जित होने वाली तरल पदार्थों जैसे कि खून, पसीना, लार, वीर्य के साथ सीधे संपर्क में आने से हो सकती हैं।

२. संक्रमित व्यक्तियों द्वारा उपयोग की गई सुई जैसी अन्य वस्तुओं के संपर्क में आने से भी इबोला हो सकता हैं।

३. संक्रमित व्यक्ति का मृत शरीर संक्रमण का स्रोत हो सकता है।

संचारण के बारे में तथ्य।

  • इबोला हवा के माध्यम से संचारित नहीं हो सकता है।
  • यह पानी के माध्यम से भी संचारित नहीं हो सकता है।
  • यह भोजन के माध्यम से भी संचारित नहीं हो सकता है।

यह स्पष्ट हैं कि यह खाद्य जनित, पानी जनित और वायु जनित बीमारी नहीं है।

ज़ोखिम के ख़तरे

प्रकोप के दौरान, निम्नलिखित व्यक्तियों को ज़ोखिम का ख़तरा अधिक होता हैं :

क) स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं।

ख) परिवार तथा अन्य व्यक्तियों को संक्रमित व्यक्तियों के साथ निकट संपर्क में आने से हो सकता हैं।

ग) अंत्येष्टि समारोह में मृतक के शव के सीधे संपर्क में आने वाले शोकाकुल व्यक्तियों को हो सकता हैं।

घ) बीमारी की आशंका वाले क्षेत्रों की यात्रा करने वाले यात्रियों को हो सकता हैं।

निदान: इस बीमारी का उपचार संक्रमण के प्रारंभिक दौर में करना मुश्किल होता है, क्योंकि इबोला वायरस के संक्रमण के प्रारंभिक लक्षण बहुत विशिष्ट नहीं होते हैं। हालांकि, इसका उपचार विभिन्न प्रकार के प्रयोगशाला परीक्षणों द्वारा ही किया जा सकता है –

  • एंटीबॉडी-कैप्‍चर एंजाइम से जुड़ा इम्‍यूनोसारबेंट एसे (एलीसा)।
  • एंटीजन डि‍टेकशन टेस्‍ट।
  • पॉलीमेरेज चेन रि‍एक्‍शन (आरटी- पीसीआर) एसे।
  • सेल कल्‍चर के जरि‍ए वायरस आइसोलेशन।
  • इलेक्‍टॉन माइक्रोसकॉपी।

प्रबंधन: इबोला वायरस रोग के लिए कोई टीका उपलब्ध नहीं है। टीका विकसित करने के लिए प्रसास जारी हैं। इस बीमारी का कोई विशेष उपचार नहीं है। हालांकि, इबोला वायरस रोग के लिए मानक उपचार में गहन सहायक चिकित्सा देखभाल भी शामिल है। इसमें शामिल हैं :

  • रोगी के तरल पदार्थों और इलेक्ट्रोलाइट्स में संतुलन।
  • रोगी में ऑक्सीजन की स्थिति और रक्तचाप को बनाए रखना।
  • उन्हें अन्य संक्रमणों हेतु उपचार देना।

यह अति महत्वपूर्ण है कि इबोला रक्तस्रावी बुखार (ईएचएफ) का उपचार समय पर किया जाएँ क्योंकि संक्रमण के प्रारंभिक दौर में उपचार करना मुश्किल होता है। प्रारंभिक लक्षण जैसे कि सिरदर्द और बुख़ार गैर विशिष्ट होते हैं, इसलिए कई बार किसी भी अन्य रोग के समान समझ लिये जाते है। इस रोग की रोकथाम करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है, क्योंकि कोई भी व्यक्ति कैसे इएचएफ से संक्रमित हो जाता हैं? यह तथ्य अभी भी स्पष्ट नहीं है।

भारत में आपातकालीन देखभाल स्थापित करना

डब्ल्यूएचओ ने घोषणा की है कि पश्चिम अफ्रीका में इबोला वायरस बीमारी (ईवीडी) का फैलना “सबसे जटिल प्रकोप था, जिसने सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकालीन स्थिति को जन्म दिया है”। सरकार ने चौबीस घंटे ‘आपातकालीन हेल्पलाइन ऑपरेशन केंद्र’ खोलें हैं, जो कि जनसामान्य को सबसे उन्नत ट्रैकिंग और निगरानी प्रणाली प्रदान करते है। ईवीडी से पीड़ित व्यक्तियों के उपचार और बीमारी के प्रबंधन के लिए राम मनोहर लोहिया अस्पताल और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली को चिन्हित किया गया है। इसके लिए हेल्पलाइन नंबर (०११) – २३०६१४६९, ३२०५ और १३०२ हैं।

रोकथाम: प्राथमिक रोकथाम उपायों में अलगाव सावधानियां और नर्सिंग तकनीक की सावधानियों का समावेश है। अलगाव सावधानियां संक्रामक बीमारियों से पीड़ित व्यक्तियों को स्वस्थ व्यक्तियों से अलग करती है।

संगरोध, रोग के प्रसार, विशेष रूप से संक्रामक रोगों के प्रसार को कम करने की स्थिति में, अलगाव सावधानियों को अपनाना प्रभावी होता है, जिसके अंतर्गत संक्रामक बीमारियों से पीड़ित व्यक्तियों को स्वस्थ व्यक्तियों के संपर्क में आना प्रतिबंधित होता है। आमतौर पर, संगरोध की अवधि के दौरान, बीमारी की ऊष्मायन अवधि का समय (संक्रमण और लक्षणों की उपस्थिति के बीच की अवधि) अर्थात् इबोला वायरस रोग के मामले में दो से इक्कीस दिन है।

नर्सिंग तकनीकों में निम्नलिखित सावधानियां शामिल हैं:

  • सुरक्षात्मक कपड़े (जैसे मास्क, दस्ताने, गाउन, और काले चश्मे) पहनें।
  • संक्रमण नियंत्रण उपायों (सभी उपकरणों पर रोगाणुनाशन और कीटाणुनाशक का नियमित उपयोग करना) का उपयोग करें।
  • अपने पर्यावरण को घूप लगाएं और अपने आसपास के परिवेश को कीटाणुरहित भी रखें। यह वायरस कीटाणुनाशक, गर्मी, धूप, डिटर्जेंट और साबुन से बच नहीं सकता हैं।
  • मृत शरीर इबोला बीमारी संचारित कर सकता हैं। सुरक्षात्मक उपकरणों के बिना, मृत शरीर को न छुएं या बेहतर होगा कि उनसे पूरी तरह से दूर रहें।
  • अपने हाथ साबुन से अच्छी तरह से धोएं या सैनिटाइजर का उपयोग करें।

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