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आईएसएआरसी, पूर्वी भारत और समान पारिस्थितिकी वाले अन्य दक्षिणी एशियाई एवं अफ्रीकी देशों में खाद्य उत्पादन एवं कौशल विकास के लिए एक वरदान साबित होगा: श्री राधा मोहन सिंह

आईएसएआरसी, पूर्वी भारत और समान पारिस्थितिकी वाले अन्य दक्षिणी एशियाई एवं अफ्रीकी देशों में खाद्य उत्पादन एवं कौशल विकास के लिए एक वरदान साबित होगा: श्री राधा मोहन सिंह
कृषि संबंधितदेश-विदेश

नई दिल्ली: आईएसएआरसी की स्‍थापना के लिए कृषि, सहकारिता एवं किसान कल्‍याण विभाग के प्रतिनिधि के रूप में सचिव डीएसीएंडएफडब्‍ल्‍यू और अन्‍तरराष्‍ट्रीय चावल अनुसंधान संस्‍थान (आईआरआरआई), फिलिपींस के महानिदेशक आईआरआरआई द्वारा आज करार ज्ञापन (एमओए) पर हस्‍ताक्षर किये गये। केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्‍याण मंत्री, श्री राधा मोहन सिंह भी इस मौके पर मौजूद थे।

इस अवसर पर श्री राधा मोहन सिंह ने कहा कि यह केन्‍द्र पूर्वी भारत में प्रथम अंतर्राष्‍ट्रीय केन्‍द्र बनेगा तथा यह क्षेत्र में चावल उत्‍पादन को उपयोग में लाये जाने तथा उसको बनाये रखने में मुख्‍य भूमिका अदा करेगा । इसको पूर्वी भारत और समान पारिस्‍थितिकी वाले अन्‍य दक्षिणी एशियाई एवं अफ्रीकी देशों में खाद्य उत्‍पादन एवं कौशल विकास के लिए एक वरदान साबित होने की संभावना है ।

केंद्रीय कृषि मंत्री ने कहा कि यह चावल मूल्‍य वर्धन (सीईआरवीए) में एक उत्‍कृष्‍टता केन्‍द्र होगा और इसमें खाद्यान्‍न और भूसे में निहित भारी धातु की गुणवत्‍ता एवं स्‍थिति सुनिश्‍चित करने की क्षमता वाली एक आधुनिक तथा उन्‍नत प्रयोगशाला शामिल होगी । यह केन्‍द्र चावल मूल्‍य श्रृंखला से जुड़े हितधारकों के लिए क्षमता निर्माण का कार्य भी करेगा ।

आईआरआरआई न्‍यासी बोर्ड के शासन के तहत आईएसएआरसी का प्रचालन किया जाएगा और आईआरआरआई आईएसएआरसी के निदेशक के रुप में एक उपयुक्‍त आईआरआरआई स्‍टाफ सदस्‍य को नियुक्‍त करेगा । समन्‍वय समिति का गठन किया जाएगा जिसमें अध्‍यक्ष के रुप में महानिदेशक, आईआरआरआई एवं सह-अध्‍यक्ष के रुप में सचिव, भारत सरकार, कृषि, सहकारिता एवं किसान कल्‍याण विभाग होंगे। समन्‍वय समिति के अन्‍य सदस्‍य-उप-महानिदेशक (फसल विज्ञान), आईसीएआर; निदेशक, एनएसआरटीसी; भारत में आईआरआरआई प्रतिनिधि, उत्‍तर प्रदेश सरकार के प्रतिनिधि एवं नेपाल एवं बांग्‍लादेश सरकार के प्रतिनिधि एवं निजी क्षेत्र हैं।

श्री सिंह ने कहा है कि चावलों की विशेष किस्‍मों को विकसित करने के लिए भारत की समृद्ध जैव विविधता को उपयोग में लाया जाएगा । इससे भारत को प्रति हैक्‍टेयर अधिक उपज और समुन्‍नत पोषाहारीय अंश प्राप्‍त करने में मदद मिलेगी । इसके द्वारा भारत की खाद्यान्‍न और पोषाहारीय संबंधी समस्‍या का भी निदान होगा । यह केन्‍द्र देश में मूल्‍य श्रृंखला आधारित उत्‍पादन प्रणाली को अपनाने में भी सहायता देगा । यह केन्‍द्र बर्बादी को कम करने के साथ-साथ मूल्‍य में वृद्धि करके किसानों के लिए उच्‍च आमदनी का मार्ग भी प्रशस्‍त करेगा । दक्षिण एशियाई और अफ्रीकी देशों के अलावा पूर्वी भारत के किसान इस केन्‍द्र से विशेष रुप से लाभान्‍वित होंगे।

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