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आईएफएफआई–2017 में ‘भारत के युवा फिल्‍म निर्माता – उभरते विचार एवं कथाएं’ विषय पर पैनल परिचर्चा

देश-विदेशमनोरंजन

नई दिल्लीः आईएफएफआई–2017 के चौथे दिन ‘भारत के युवा फिल्‍म निर्माता – उभरते विचार एवं कथाएं’ विषय पर पैनल परिचर्चा आयोजित की गई, जिसमें कार्तिक सुब्‍बाराज, आर एस प्रसन्‍ना, भास्‍कर हजारिका और राजा कृष्‍ण मेनन ने शिरकत की तथा इसका बेहतरीन संचालन लेखक-फिल्‍म निर्माता अश्विनी अय्यर तिवारी ने किया।

विगत कुछ वर्षों के दौरान बॉलीवुड में बड़ी संख्‍या में अत्‍यंत प्रतिभाशाली कथाकारों का आगमन हुआ है और ये नए सिनेमाई विचार अपने-आप में अनोखे हैं क्‍योंकि वे महानगरों से परे अन्‍य क्षेत्रों की सा‍माजिक जड़ों वाली कहानियों को बिल्‍कुल रोचक ढंग से पेश करते आ रहे हैं। इस पैनल में कुछ ऐसे सफल एवं अनोखे फिल्‍म निर्माता भी शामिल हैं जिन्‍होंने हाल ही में गैर-पारंपरिक कथाओं पर आधारित फिल्‍में बनाई हैं और इनकी खासियत यह है कि इनका फिल्‍मांकन वास्‍तविक स्‍थानों पर किया गया।

अश्विनी ने बतौर निर्देशक एवं लेखक पहली फिल्‍म ‘नील बट्टे सन्‍नाटा’ के नाम से बनाई जो काफी तारीफ बटोरने में कामयाब रही। इसके अलावा उन्‍होंने ‘बरेली की बर्फी’  के नाम से रोमांटिक कॉमेडी फिल्‍म भी बनाई है। नए कथाकारों के उभरकर सामने आने की चर्चा करते हुए उन्‍होंने कहा कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान हिन्‍दी सिनेमा उद्योग में अनेक फिल्‍म निर्माताओं का आगमन हुआ है जो बाहर से आए हैं और जिन्‍होंने केवल अपनी अनूठी कहानियों के दम पर इस उद्योग में अपनी विशिष्‍ट पहचान बनाई है।

भास्‍कर हजारिका ने कहा कि फिल्‍म उद्योग में सबटाइटिल वाली फिल्‍में भी कमाल दिखा रही हैं। भारत में लोग यदि कोरियाई फिल्‍में देख सकते हैं तो वे सबटाइटिल के साथ मणिपुरी फिल्‍में भी देख सकते हैं। हमारी कोशिश ऐसी फिल्‍में बनाने की रहती है जिसमें अपेक्षाकृत कम डायलॉग हों, क्‍योंकि इसके दृश्‍य ही अपने आप में बहुत कुछ बयां कर देते हैं। मैंने बाम्‍बे में पांच-छह साल संघर्ष किया और मैंने पाया कि असली समस्‍या यह है कि हिंदी मेरी पहली भाषा नहीं है। मैं अपनी कहानियों को हिंदी भाषी दर्शकों के लिए तब्‍दील करने में समर्थ नहीं था। हालांकि जब मैं वापस अपने घर गया और असमिया फिल्‍मों के लिए काम करना शुरू किया तो मुझे कुछ फिल्‍म निर्माताओं ने सभी भारतीय भाषाओं में फिल्‍में बनाने की सलाह दी।

आर एस प्रसन्‍ना ने कहा कि बेरोजगार रहने पर काफी संभावनाएं रहती हैं। जब आप बेरोजगार रहते हैं तो बगैर फिल्‍म निर्माता रहते ही आपको फिल्‍म महोत्‍सव में जाने का अवसर मिल जाता है। ‘कल्‍याणा समायल साधम’ नामक फिल्‍म बनाने से पहले में भी इसी दौर से गुजरा था। यह मेरे जीवन का सर्वोत्‍तम दौर था। इस दौरान मुझे जमीनी स्‍तर पर वास्‍तविक लोगों से बातचीत करने का मौका मिला। केवल इस उद्योग से बाहर के लोगों के मन में ही अनोखे विचार उभरकर आते हैं।

राजा कृष्‍ण मेनन ने कहा कि मेरी पहचान ‘बारह आना’ फिल्‍म से हुई जिसे फिल्‍मोत्‍सव में दिखाया गया था। यह फिल्‍म बनाते वक्‍त मेरे पास एक अच्‍छी कहानी थी और मैंने इसे सर्वोत्‍तम ढंग से पेश करने की कोशिश की। इस फिल्‍म की रोचक समीक्षा पेश की गई जिसमें कहा गया कि यह पूरी तरह से मनमोहन देसाई की फिल्‍म नजर आती है लेकिन इसे वास्‍तविक परिवेश में अनोखे ढंग से प्रस्‍तुत किया गया है।

48वें भारतीय अंतरराष्‍ट्रीय फिल्‍म महोत्‍सव का आयोजन गोवा में 20 नवम्‍बर, 2017 से किया जा रहा है, जो 28 नवम्‍बर तक चलेगा। आईएफएफआई भारत का सबसे बड़ा और एशिया का सबसे पुराना फिल्‍म महोत्‍सव है जिसकी बदौलत इसे विश्‍व के सर्वाधिक प्रतिष्ठित महोत्‍सवों में शुमार किया जाता है।

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