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सरसों की खेती उन्नत विधि

कृषि संबंधित

सरसो की खेती लगभग सभी जगहों पे की जाती है। सरसो की खेती किसान ज्यादातर तेल के लिए करते है हालाँकि सरसो सा साग भी लोग बड़े चाव से खाते है। इसके प्रयोग करने से प्रोटीन खनिज तथा विटामिन ए और सी की अधिक मात्रा मिलती है।

सरसो के लिए भूमि तैयार करे
सरसो के लिए ठंढे लवायु की आवश्यकता होती है। इस फसल को ठंढी में लगाई जाती है। इसकी बुवाई के लिए 30 डिग्री सेंग्रेड तापमान अच्छा माना जाता है। ये फसल ज्यादा तापमान बर्दास्त नहीं कर सकता ज्यादा तापमान से बीज अच्छा अंकुरत नहीं हो पाता है। सरसो के लिए बलुई दोमट मिटटी अच्छी मानी जाती है। भारी व हलकी चिकनी मिट्टी में भी उगाई जा सकती है। अच्छी पैदावार लिए बुवाई से पहले खेत को अच्छी तरह 3,4 बार जोतवाना चाहिए। खेत अच्छी तरह भुरभुरी हो जाये खेत में देशी खाद डालकर व मिलाकर मेड़-बन्दी करके क्यारियां बनानी चाहिए।

रासायनिक खादों का प्रयोग
थायो यूरिया के प्रयोग से सरसों की उपज को 15 से 20 % तक बढाया जा सकता है। सडी हुई गोबर की खाद एक महीने पहले खेत में डाल दे और उसकी जुताई अच्छी तरीके से कराये गोबर की खाद में मुख्य पोषक प्राप्त होती है। खेत में अच्छी फसल के लिए यूरिया, फास्फोरस, सल्फर , पोटास, MOP , की भी आवश्कता होती है। जिंक डालने से फसल में करीब 20 % तक की बढ़ोतरी होती है।

कीट एवं रोग प्रबंधन:-
सरसों की उपज को बढ़ाने के लिए और रोगों का बहुत की ध्यान रखना होता है क्यूंकि किट हमारे फसल को काफी नुकसान पहुचाते है जिसके वजह से हमें उपज में कमी आजाती है। अगर हम समय के रहते रोगों और कीटो पर नियंत्रण कर लेते है तो उपज में काफी फायेदा हो सकता है।

सरसों में लगने वाले रोग और किट :-
माहू :- माहू पंखहीन या पंखयुक्त हल्के स्लेटी या हरे रंग के होते है। ये 1.5 MM से 3 MM लम्बे होते है। चूसने वाले किट होते है। ये फूलो और पौधों के कोमल तनो बार बैठ कर उससे चूस कर उसे कमजोर बना देते है। ये किट दिसम्बर महीने से लेकर जनवरी से लेकर मार्च तक बना रहता है। जब भी इनका प्रकोप हो तब डाइमिथोएट (रोगोर) 30 ई सी या मोनोक्रोटोफास (न्यूवाक्रोन) 36 घुलनशील द्रव्य की 1 लीटर मात्रा को 600-800 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर में छिड़काव करना चाहिए अगर जरुरत पड़े तो दुबारा 15 दिन बाद फिर छिडकाव करे अगर थोड़े बहुत है। तो आप शाखाओ को तोड़ कर जमीन में गाड दे।

आरा मक्खी:- ये मक्खी के लगने पर मेलाथियान का छिडकाव करे जरुरत पड़ने पर दुबारा भी छिडकाव करे।
चितकबरा किट :- इस किट के लगने पर मेलाथियान का छिडकाव करे।
बिहार हेयरी केटरपिलर : – इसके रोकथाम के लिए मेलाथियान का छिडकाव पुरे फसल पर करे।
सफेद रतुवा:- अगर फसल पर लक्षण दिखाई देने पर मैन्कोजेब, डाइथेन एम-45 या रिडोमिल एम.जेड. 72 डब्लू.पी. का छिडकाव करे 15 ,15 दिन के अंतर छिडकाव से बचा जा सकता है।
काला धब्बा या पर्ण चित्ती : – अगर ये किट दिखाई दे तो आईप्रोडियॉन (रोवरॉल), मेन्कोजेब (डाइथेन एम-45) का अच्छे से छिडकाव करे।
चूर्णिल आसिता:- चूर्णिल आसिता रोग की रोकथाम के लिए घुलनशील सल्फर (0.2 प्रतिशत) या डिनोकाप (0.1 प्रतिशत) का घोल बनाकर रोग के लक्षण दिखाई देने पर अच्छे से छिड़काव करें।
तना लगन:- कार्बेन्डाजिम (0.1 प्रतिशत) फफूंदीनाशक का छिड़काव दो बार फूल आने के समय 20 दिन के अन्तराल (बुआई के 50वें व 70वें दिन पर) छिडकाव कर के इससे बच सकते है।

सरसो की उन्नत किस्मे
पूसा बोल्ड:- ये 110 से 140 दिन में पक जाती है इसकी उपज 2000 से 2500 किलोग्राम हेक्टर होती है। इसमें 40 % तक तेल निकलता है। इसकी खेती राजथान,गुजरात दिल्ली, महाराष्ट्र में की जाती है।
पूसा जयकिसान (बायो 902):- ये 155-135 दिन में पक जाती है। इसकी उपज 2500-3500 हेक्टर होती है। इसमें 40 % तक तेल निकलता है। इसकी खेती गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान में की जाती है।
क्रान्ति:- ये 125-135 में पक जाती है इसकी उपज 1100-2135 हेक्टर होती है। इनमे 42 % तेल निकलता है। इसकी खेती हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान में की जाती है।
आर एच 30:- ये 130-135 दिन में पाक जाती है। इसकी उपज 1600-2200 प्रति हेक्टर होती है। इनकी खेती हरियाणा, पंजाब, पश्चिमी राजस्थान में की जाती है।
आर एल एम 619:- ये 140-145 दिन में पाक जाती है। इसकी उपज 1340-1900 प्रति हेक्टर होती है। इसमें 42 % तेल निकलता है। इसकी खेती गुजरात, हरियाणा, जम्मू व कश्मीर, राजस्थान में की जाती है।
पूसा विजय:- ये 135-154 दिन में पक जाती है। इसक उपज 1890-2715 प्रति हेक्टर होती है। इनमे 38% तेल निकलता है। इसकी खेती दिल्ली में की जाती।

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