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राधामोहन सिंह ने हरित क्रांति के जनक प्रो. एम. एस. स्वामीनाथन को सम्मानित

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नई दिल्ली: केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री राधामोहन सिंह ने चेन्नई में विश्व कृषि पुरस्कार से सम्मानित प्रो. एम. एस. स्वामीनाथन के सम्मान में आयोजित कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए कहा कि स्वामीनाथन जी को “भारत में हरित क्रांति का अगुआ” माना जाता है। यह स्वामीनाथन जी के प्रयत्नों का ही परिणाम है कि भारत आज खाद्यान्नों के मामले में आत्मनिर्भर है और खाद्यान्नों का निर्यात भी कर रहा है।
केन्द्रीय कृषि मंत्री ने कहा कि 60 से 80 के दशक में स्वामीनाथन जी द्वारा लाई गई ‘हरित क्रांति’ कार्यक्रम के तहत ज़्यादा उपज देने वाले गेहूं और चावल के बीज ग़रीब किसानों के खेतों में लगाए गए। इस क्रांति ने भारत को दुनिया में खाद्यान्न की कमी से उबारकर 25 वर्ष से कम समय में आत्मनिर्भर बना दिया। उस समय से भारत के कृषि पुनर्जागरण ने स्वामीनाथन जी को ‘कृषि क्रांति आंदोलन’ के वैज्ञानिक नेता के रूप में ख्याति दिलाई। देश में कृषि क्षेत्र में उनके के उत्कृष्ट योगदान हेतु उन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित भी किया गया। हाल ही में उन्हें भारतीय खाद्य एवं कृषि परिषद् (आईसीएफए) द्वारा जेनेटिक्स, साइटोजेनेटिक्स, रेडिएशन, खाद्य तथा जैव विविधता संरक्षण पर शोध के लिए विश्व कृषि पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
श्री राधामोहन सिंह ने बताया कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सरकार ने वर्ष 2014 में सत्ता में आने के बाद कृषि क्षेत्र के चहुमुखी विकास के लिए काम किया। सरकार की सदैव यह धारणा रही कि अन्न एवं कृषि उत्पादों के भंडारों के साथ साथ किसान की आय भी बढ़े। इसी आशय के साथ किसानों की आय को दोगुना करने के लिए दलवई समिति का गठन किया गया। डी.एफ.आई. समिति की सिफ़ारिशों के अनुरूप आज हमारी सरकार एक ठोस रणनीति से कार्य कर रही है, जिसके तहत कृषि लागत में कटौती के लिए मृदा स्वास्थ्य कार्ड व नीम लेपित यूरिया के इस्तेमाल और हर बूंद से ज्यादा फसल संबंधी योजनाओं को लक्षित कर उनका सफल कार्यान्वयन किया जा रहा है।
उन्होंने बताया कि जैविक खेती पर व्यापक नीति के अंतर्गत पहली बार सरकार ने वर्ष 2014-15 में देश में जैविक खेती को बढ़ावा देने हेतु परम्परागत कृषि विकास योजना (पीकेवीवाई) शुरू की है। इसके साथ ही पूर्वोत्तर क्षेत्र हेतु जैविक मूल्य श्रृंखला विकास मिशन (एमओवीसीडीएनईआर) जिसे देश के पूर्वोत्तर क्षेत्र में जैविक खेती की संभावना देखते हुए केन्द्रीय क्षेत्र स्कीम के तहत शुरू किया गया है।
कृषि मंत्री ने कहा कृषि उपज का समुचित मूल्य दिलाने हेतु सरकार दृढ़प्रतिज्ञ है। राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक कृषि मंडी (ई-नाम) के अंतर्गत मार्च, 2018 तक देश भर में 585 मंडियों के एकीकरण का लक्ष्य प्राप्त कर लिया है। वहीं अतिरिक्त 415 मंडियों को 2019-20 तक ई-नाम के तहत जोड़ने का कार्य प्रगति पर है। इसके अतिरिक्त आपदाओं से सुरक्षा के लिए सरकार ने कृषि से जुड़े जोखिमों को दूर करने हेतु खरीफ, 2016 से प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई) भी शुरू की गयी है।
श्री सिंह ने कहा कि किसानों को उनकी फसल की लागत का कम से कम डेढ़ गुना दाम दिलाने हेतु वर्तमान सरकार द्वारा खरीफ 2018-19 की नोटीफाइड फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य को लागत का डेढ़ गुना या उससे ज्यादा बढ़ने के निर्णय को मंज़ूरी देना एक और बहुत बड़ा एतिहासिक फैसला है।
श्री सिंह ने वर्ष 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करने के भारत सरकार के संकल्प को साकार करने की दिशा में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इस दिशा में पिछले तीन साल में आईसीएआर द्वारा अधिक उपज देने वाली एवं प्रतिकूल प्रकृति सहिष्णु किस्में, नई पशु नस्लों एवं बेहतर कृषि रीतियों आदि का विकास किया गया है। दलहन उत्पादन के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता लाने के लिए देशभर में 150 सीड हब स्थापित किए गए, जिसके परिणामस्वरूप दालों का 22 मिलियन टन रिकॉर्ड उत्पादन हुआ। इसके साथ ही देश के छोटे व सीमांत किसानों की आय को बढाने के लिए विशेषकर 45 एकीकृत कृषि प्रणाली मॉडल विकसित किए हैं, जिसमें खेती के लिए पशुपालन, पोल्ट्री और बागवानी पर विशेष ध्यान दिया गया है।
केंद्रीय कृषि मंत्री ने बताया कि देशी नस्लों को संरक्षण और बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय गोकुल मिशन की शुरूआत की गई है। उन्होंने कहा कि इसके तहत 31 मार्च, 2018 तक राज्यों के लिए 546.15 करोड़ रुपये जारी किए गए हैं। श्री सिंह ने कहा कि सरकार द्वारा वर्ष 2018-19 में सभी खरीफ फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में कम से कम डेढ गुना वृद्धि करना एक ऐतिहासिक निर्णय है। इसके द्वारा बजट 2018-19 में किए गए वादे को पूरा किया गया है। केंद्रीय कृषि मंत्री ने कहा, “मुझे पूर्ण विश्वास है कि स्वामीनाथन जी  के नेतृत्व में भारत में आने वाले वर्षों में कृषि एवं खाद्य सुरक्षा निरंतर और सतत बनी रहेगी और हम किसानों  की आय नियत लक्ष्य अनुसार दोगुनी करने में अवश्य सफल होंगे।”

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