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गरीब किसानो तक तकनीकी हस्तान्तरण होना जरुरी: स्वामी विश्वमायानंदा

उत्तर प्रदेशकृषि संबंधित

लखनऊ: केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान तथा उपोष्ण बागवानी समिति के संयुक्त तत्वाधान में उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में औद्यानिक तकनीकी के माध्यम से कृषकों की आय को दो गुना करने की रणनीतियों एवं चुनौतियों पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन आज दिनांक 21 जून 2018 को प्रारम्भ हुआ I डॉ. शैलेन्द्र राजन, निदेशक, केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान, लखनऊ ने आगंतुकों के स्वागत में बोलते हुए कहा कि देश के माननीय प्रधानमंत्री द्वारा दिए गए लक्ष्य “हम सभी को वर्ष 2022 तक किसानो की आय को दो गुना करना है” को ध्यान में रखते हुए हमको उत्पादन और उत्पादकता से अधिक शुद्ध लाभ की प्राप्ति पर जोर देना है I देश के विभिन्न भागों से आये वैज्ञानिकों की प्रस्तुतियों द्वारा हम अनेक नयी तकनीकी से अवगत होंगे, जिससे अंततः कृषकों को लाभ होगा I आदरणीय स्वामी विश्वमयनंद, रामकृष्ण आश्रम, सारगाछी, पश्चिम बंगाल ने कहा कि मैं गरीब किसानो का प्रतिनिधि हूँ और चाहता हूँ कि उन तक, तकनीकी का हस्तान्तरण हो I  अभी तक विकसित की गयी तकनीकी का मात्र 17 प्रतिशत ही किसानो तक पुहंचा है I

                इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ. आर. सी. श्रीवास्तव, माननीय कुलपति, राजेंद्र कृषि विश्वविद्यालय, समस्तीपुर, बिहार ने फार्मर्स फर्स्ट परियोजना के अंतर्गत किये जा रहे परसों की सराहना की और कहा कि इसके माध्यम से हम युवाओं का गांव से पलायन रोकने में सफल होंगे I डॉ. डब्लू. एस. ढिल्लन, सहायक महानिदेशक (बागवानी विज्ञान), भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद्, नई  दिल्ली ने बताया कि खाद्यान फसलों के न्यूनतम बृद्धि दर के अनुपात में औद्यानिक बृद्धि दर 4 प्रतिशत से अधिक रही है और औद्यानिक क्षेत्र ही कृषकों कि आय को दो गुना करने में सक्षम है I औद्यानिक क्षेत्र सकल घरेलू उत्पाद में मात्र 12 प्रतिशत भूमि से 33 प्रतिशत का योगदान कर रहा है I इस अवसर पर सौवेनिर-कम-बुक ऑफ़ अब्स्ट्रैट्स तथा राजभाषा पत्रिका, “उद्यान रश्मि” जून 2018 अंक, आम तोड़क यंत्र और फल मक्खी ट्रैप का विमोचन किया गया. उदघाटन सत्र के समापन में डॉ मनीष मिस्र ने सभी को धन्यवाद ज्ञापित किया.

                डॉ. विशाल नाथ, निदेशक, राष्ट्रीय लीची शोध केंद्र, मुज्जफरपुर, बिहार ने अपने सम्भाषण में बताया कि उत्तर प्रदेश के तराई क्षेत्र में लीची उत्पादन के अपार संभावनाएं हैं. यहाँ पंजाब की तरह उत्पादकता भी 15 मीट्रिक टन प्रति हेक्टेयर से अधिक होने के अपेक्षा है. डॉ. एम्. आर. दिनेश, निदेशक, भारतीय औद्यानिक शोध संसथान, बगलूरु ने अपने सम्भाषण में दक्षिण भारत में सफल अनेक तकनीकी का वर्णन किया और बताया कि इनको उत्तर भारत में प्रयोग करने की अपार संभावनाएं हैं.  उन्होंने बताया की उनके संसथान द्वारा विकसित टमाटर की प्रजातियां भारत के 23 राज्यों में उगाई जा रही हैं.

                डॉ. रंजन श्रीवास्तव, जी.बी. पंत कृषि एवं प्रोद्योगिक विश्वविद्यालय, पंतनगर ने फूलों की खेती पर वार्ता में  ग्लेडियोलस, रजनीगंधा, गेंदा और गुलाब की खेती को आम के बागों के आसपास करने हेतु प्रेरित किया. काशीपुर, ऊधमसिंह नगर के श्री  अरुण  कुमार  भाकू, जो कि आम और अमरुद की सघन बागवानी कर रहे हैं, ने सरकारी शोध संस्थानों द्वारा वृहद स्तर पर तकनीकी के प्रदर्शनों की आवश्यकता बताई.  डॉ. दीपक  नायक, आर आर एस, मालदा ने पूर्वी भारत में समेकित कृषि पद्धति पर किसानो के मध्य किये गए कार्यों कि सफलता के विवरण प्रस्तुत किया.

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