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शैक्षिक कार्यक्रम की श्रंखला में डाॅ0 वासुदेव शरण अग्रवाल स्मृति व्याख्यानमाला का आयोजन किया गया

उत्तर प्रदेश

लखनऊ: राज्य संग्रहालय , लखनऊ की शैक्षिक कार्यक्रम की श्रंखला में डाॅ0 वासुदेव शरण अग्रवाल स्मृति व्याख्यानमाला का आयोजन दिनांक 19.03.2019 को संग्रहालय सभागार में किया गया। राज्य संग्रहालय, लखनऊ प्राच्य विद्याओं के ज्ञाता मथ्ुारा लखनऊ एवं दिल्ली संग्रहालयों के अध्यक्ष स्व0 वासुदेव शरण अग्रवाल की स्मृति में वर्ष 1981 से वार्षिक व्याख्यानमाला का आयोजन निरन्तर करता आ रहा है। डाॅ0 अग्रवाल का जन्म 07 अगस्त 1904 ई0 को मेरठ जनपद के  खेड़ा ग्राम में हुआ था। सन् 1972 में काशी विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि लेकर विश्वविद्यालय से स्नाकोत्तर और इण्डिया ऐज नोन टू पाणिनि विषय पर पी.एच.डी. एवं डी. लिट. उपाधियों से सम्मानित हुए। मथ्ुारा संग्रहालय में डा0 अग्रवाल ने संग्रहालयाध्यक्ष के पद पर राजकीय सेवा में प्रवेश किया ओर सन् 1931 से 1934 के बीच संग्रहालय के संग्रह में महती वृद्धि वृद्धि तथा बहुविध योगदान किया। तत्पश्चात् लखनऊ संग्रहालय में अध्यक्ष बन कर आये और यहाॅ वीथिकाओं का पुनर्गठन किया। अपने कार्यकाल में डा0 अगवाल ने राष्ट्रीय संग्रहालय नई दिल्ली की पृष्ठभूमि भी तैयार की। डा0 वासुदेव शरण ने इतिहास एवं कला पर अनेको पुस्तके लिखी जिनमें भारतीय कला, कादम्बरी इत्यादि प्रमुख है।

कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में  प्रो0 पीयूष भार्गव, प्राचीन भारतीय इतिहास एवं पुरातत्व, लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ ने एलोरा की ब्राहम्ण धर्म से संबंधित मूर्तियों विषय पर अत्यन्त ही सारगर्भित व्याख्यान दिया। विद्धान वक्ता द्वारा बताया गया कि एलोरा महाराष्ट्र प्रान्त में स्थित प्राचीन कला केन्द्रों में से एक है जहाॅ प्राचीन तीनों धर्मो से संबंधित यथा- बौद्ध, ब्राहम्ण एवं जैन कलावशेष मिलते है। विशाल चट्टानों को काटकर बनाये गये गुफा मन्दिर और उसमें उकेरी गई मूर्तियां अतीत के सर्वश्रेष्ठ गौरव का स्मरण कराती है। इनमें ब्राहम्ण धर्म से संबंधित गुफाऐं बड़ी महत्वपूर्ण  है क्योकि इनमें तत्कालीन संरचनात्मक मन्दिरों की झलक मिलती है। विशेषरूप से गुफा सं0-16 जो शैलकृत स्थापत्य का उदाहरण होते हुए भी संरचनात्मक मन्दिर का आभास होता है। इन गुफा मन्दिर की दीवारों पर पौराणिक ब्राहम्ण धर्म से संबंधित देवी-देवताओं और आख्यानों से संबंधित अनेक अंकन दिखयी पड़ते है। जो कला की अमूल्य निधि होने के साथ-साथ हिन्दू प्रतिमा विज्ञान की अमूल्य निधि है। वैष्णव शैव धमों से संबंधित इन आक्ष्यानों का अंकन बड़ा लोकप्रिय रहा है। जैसेः-षिव और पार्वती के परिणय का प्रसंग जो कल्याणसुन्दर प्रतिमा के नाम से जाना जाता है। विद्वान वक्ता द्वारा पाॅवर प्वाइन्ट पेसन्टेशन के माध्यम से व्याख्यान दिया गया।

कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में प्रो0 अवनीश चन्द्र, इतिहास एवं पुरातत्व विभाग,  शकुन्तला मिश्रा राष्ट्रीय पुर्नवास विश्वविद्यालय, लखनऊ ने संदर्भित विषय पर प्रकाश डाला।

अंत में निदेशक उ0प्र0 संग्रहालय, निदेशालय लखनऊ द्वारा डाॅ0 वासुदेव शरण अगवाल स्मृति व्याख्यानमाला में उपस्थित सभी अतिथिगणों को धन्यवाद ज्ञापित किया गया। निदेश महोदय द्वारा अवगत कराया गया कि संग्रहालय ज्ञान का वातायन है और यहाॅ सभी प्रकार की जिज्ञासु जो अपनी संस्कृति एंव कला से संबंधित नवीन एवं महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त करना चाहते है, आते रहते है। संग्रहालय द्वारा समय-समय पर देश-प्रदेश के विशिष्ट विद्वानों के माध्यम से व्याख्यान आयोजित कराये जाते है। कार्यक्रम का संचालन श्रीमती रेनू द्विवेदी, सहायक निदेशक ने किया।

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