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एशियाई चैम्पियन तीरंदाज रजत को 10 साल से नौकरी की आस

खेल समाचार

करीब 13 साल की उम्र में तीरंदाजी को अपना करियर बनाने वाले एशियाई चैम्पियन राजस्थान निवासी रजत चौहान अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश के लिए कई पदक जीत चुके हैं। रजत बीते एक दशक से राज्य सरकार से नौकरी की आस लगाए हुए हैं लेकिन लगातार दो एशियाई खेलों में चमक दिखाने के बाद भी उन्हें निराशा हाथ लगी है।

नौकरी नहीं है तो रजत तीरंदाजी के अभ्यास के अलावा वीडियो गेम खेलकर समय व्यतीत करते हैं। आईएएनएस के साथ साक्षात्कार में रजत ने राज्य सरकार की इस बेरुखी पर निराशा जताई।

राज्य सरकार द्वारा सोमवार को आयोजित हुए एक्सेलेंसी समारोह में रजत को राज्य सरकार के बजट के आधार पर 20 लाख रुपये का चेक दिया गया, लेकिन किसी भी प्रकार की अतिरिक्त पुरस्कार राशि की घोषणा नहीं की और न ही नौकरी का प्रस्ताव मिला। रजत का कहना है कि 2015 के बजट में की गई घोषणा के आधार पर उन्हें राजस्थान पुलिस में एसआई का पद मिल रहा है, लेकिन वह इससे संतुष्ट नहीं हैं।

रजत ने इस साल इंडोनेशिया में हुए 18वें एशियाई खेलों में तीरंदाजी की कंपाउंड टीम स्पर्धा में रजत पदक हासिल किया, लेकिन राजस्थान सरकार ने अभी तक उनके लिए किसी भी प्रकार के पुरस्कार का ऐलान नहीं किया।

इसके अलावा, राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने भी उनसे अभी तक मुलाकात नहीं की है और न ही वह सोमवार को राज्य सरकार द्वारा आयोजित समारोह में शामिल हुईं।

नौकरी का इंतजार कर रहे रजत (मुस्कुराते हुए) ने कहा, “मुझे तीरंदाजी में 10 साल हो गए हैं। 2012 से मैं भारत के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पदक जीत रहा हूं। लेकिन मुझे अभी तक नौकरी नहीं मिली है। ऐसे में मैं खाली समय में वीडियो गेम खेलता हूं।”

उन्होंने कहा, “बजट के आधार पर मुझे एसआई का पद स्वीकार करना है, फिर मेरे इतने पदक जीतने का फायदा नहीं हुआ। खिलाड़ियों द्वारा जीते गए पदकों का कोई मोल नहीं है। राष्ट्रीय स्तर अगर कोई कांस्य पदक जीतता तो भी उसे हवलदार बनाया जाता है और एशियाई खेलों में पदक जीतने वाले को भी हवलदार ही बनाया जाता है। ऐसे में समझदारी यह है कि राष्ट्रीय स्तर पर पदक जीतो और हवलदार बनकर नौकरी करते रहो। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश के लिए मान-सम्मान हासिल का क्या फायदा?”

विश्व चैम्पियनशिप (2015) की कंपाउंड एकल स्पर्धा में रजत पदक जीतने वाले रजत ने कहा, “इंचियोन एशियाई खेलों (2014) में हमारी टीम ने स्वर्ण पदक जीता था। इसमें एक खिलाड़ी हरियाणा से था, अभिषेक वर्मा दिल्ली से थे और मैं राजस्थान से हूं। हरियाणा के खिलाड़ी को डीएसपी पद का प्रस्ताव मिला और अभिषेक आयकर विभाग में शामिल हो गए। लेकिन मैं खाली हाथ रहा। पैसों की बात करें, तो हरियाणा के खिलाड़ी को दो करोड़ रुपये मिले। अभिषेक को 60 लाख रुपये मिले। मुझे 20 लाख रुपये मिले।”

रजत के मुताबिक सरकार घोषित पदक राशि भी देने में आना-कानी और देरी करती है। रजत ने कहा कि 2014 एश्यिाई खेलों में पदक जीतने का पुरस्कार उन्हें सितम्बर 2015 में मिला था।

बकौल रजत, “इस बार फिर हम पदक जीते हैं। दिल्ली के निवासी अमन सैनी और अभिषेक दोनों को 75 लाख रुपये मिलेंगे, लेकिन मुझे अब भी 20 लाख रुपये की पुरस्कार राशि ही मिली है, जबकि मेरी मेहतन में कोई कमी नहीं है।”

रजत ने 2007 में सवाई मानसिंह स्टेडियम में तीरंदाजी का खेल शुरू किया था। मां ने गहने बेचकर उनके लिए तीरंदाजी का दो लाख रुपये का किट खरीदा था और अपने बेटे के जुनून को देखते हुए पिता ने भी जमा-पूंजी लगा दी। अपने परिवार के इस संघर्ष से दुखी रजत को सरकार द्वारा उनकी काबिलियत को न पहचाने जाने की निराशा है।

तीरंदाजी भी एक महंगा खेल है और ऐसे में इस खेल के लिए वित्तीय सहायता के बारे में पूछे जाने पर रजत ने कहा, “इतने महंगे खेल के लिए पदक जीतने पर केंद्र सरकार द्वारा घोषित रकम और केंद्र सरकार (खेल मंत्रालय) द्वारा चलाई जा रही टॉप्स स्कीम में नाम शामिल होने के कारण मिलने वाली रकम उन्हें समय पर मिल जाती है, जिससे वह अपना खर्चा चलाते हैं। इसके अलावा, हर साल उन्हें ओएनजीसी से 17,000 रुपये मिलते हैं।”

अर्जुन पुरस्कार से नवाजे जा चुके रजत ने कहा कि उनका अगला लक्ष्य नेपाल में होने वाले सैफ खेलों, एशियाई चैम्पियनशिप और विश्व कप है। इसके साथ अगले एशियाई खेलों के लिए उन्होंने अभी से तैयारी शुरू कर दी है। Vishva Times

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