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मौसम आधारित राज्य स्तरीय कृषि परामर्श समूह की छब्बीसवीं बैठक सम्पन्न

उत्तर प्रदेशकृषि संबंधित

मौसम आधारित राज्य स्तरीय कृषि परामर्श समूह, वर्ष 2017– 18 की छब्बीसवीं बैठक प्रो. राजेन्द्र कुमार, महानिदेशक, उ.प्र. कृषि अनुसंधान परिषद की अध्यक्षता में दिनांक 17 नवम्बर, 2017 को उ.प्र. कृषि अनुसंधान परिषद के सभाकक्ष में सम्पन्न हुई। बैठक में च.शे.आजाद कृषि एवं प्रौ. विश्वविद्यालय, कानपुर के मौसम एवं कीट वैज्ञानिक, न.दे. कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, कुमारगंज, फैजाबाद के मौसम वैज्ञानिक एवं दलहन प्रजनक, शियाट्स कृषि विश्वविद्यालय, इलाहाबाद के मौसम वैज्ञानिक, कृषि विभाग, उद्यान विभाग, उ.प्र. रिमोट सेंसिंग एप्लीकेशन सेंटर, रेशम, पशुपालन एवं परिषद के अधिकारियों/वैज्ञानिकों ने भाग लिया।

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग से प्राप्त मौसम पूर्वानुमान एवं उपग्रह से प्राप्त चित्रों के विश्लेषण के अनुसार (दिनांक 17 नवम्बर से 23 नवम्बर, 2017 तक) प्रदेश के सभी अंचलों में इस सप्ताह में वातावरण साफ रहने के आसार है, पूर्वी उत्तर प्रदेश में कही- कहीं स्थानीय स्तर पर छुटपुट बदली दिखाई देने के आसार है किन्तु वर्षा की कोई सम्भावना नहीं है। प्रदेश के भावर एवं तराई जलवायुविक क्षेत्र में स्थित लखीमपुर खीरी, रामपुर, शाहजहाँपुर, बिजनौर, बहराइच, मुजफ्फरनगर, पीलीभीत, बरेली जनपदों के उत्तरी भाग में कोहरे की स्थिति रहने की संभावना है। सप्ताह में अधिकतम तापक्रम 26 से 30 डिग्री एवं न्यूनतम तापक्रम 14 से 18 डिग्री. से. के मध्य रहने के आसार है। कुल मिलाकर यह सप्ताह शुष्क रहेगा।

► गेंहूँ की खेती
– सिंचित दशा में गेंहूँ की क्षेत्रवार संस्तुत उन्न्तशील प्रजातियों यथा के- 0307, डी.बी.डब्लू,- 17, एच.डी.- 2687, यू.पी.- 2338, के- 9006, के- 607, के- 402, एच.डी.- 2967, पी.बी.डब्लू- 502, पी.बी.डब्ल्यू- 343, के.- 9107, एच.डी.- 2733, एच.डी.- 2687, पी.बी.डब्ल्यू- 550, राज- 4120 तथा डी.वी.डब्लू- 39 की बुवाई करें।
– गेंहूँ की विलम्ब से बुवाई हेतु क्षेत्रीय संस्तुत प्रजातियों यथा एच.आई.1563, डी.बी. डब्लू.- 16, के- 9423, के- 9533, के- 9162,डी.बी.डब्लू- 14,नरेन्द्र गेंहूँ- 1076,नरेन्द्र गेंहूँ- 2036,के- 7903, यू.पी.- 2925 व पी.वी.डब्लू.- 373 व मालवीय- 468 की बुवाई 25 नवम्बर से करने हेतु बीज की अग्रिम व्यवस्था कर लें।
– सॅंकरी एवं चौड़ी पत्ती दोनों प्रकार के खरपतवारों के एक साथ नियंत्रण हेतु सल्फोसल्फ्यूरान 75 प्रतिशत डब्लू.पी. की 33 ग्रा. (2.5 यूनिट)/हे. अथवा मैट्रीब्यूजिन 70 प्रतिशत डब्लू.पी. की 250 ग्रा. प्रति हे. अथवा सल्फोसल्फ्यूराॅन 75 प्रतिशत, मेट सल्फोसल्फ्यूराॅन मिथाइल 5 प्रतिशत डब्लू.जी. 40 ग्राम (2.50 यूनिट) बुवाई के 20- 25 दिन के बाद 500- 600 ली. प्रति हे. पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।

► जौं की खेती
– जौं की सिंचित दशा में क्षेत्रीय संस्तुत छिलकायुक्त प्रजातियों ज्योति, प्रीती, जागृति, आर.एस.- 6, नरेन्द्र जौं- 2, एन.डी.बी.- 1173 तथा छिलकारहित प्रजाति गीतांजलि, नरेन्द्र जौं- 5 व माल्ट हेतु प्रगति, ऋतम्भरा, डी.डब्लू.आर.- 28, डी.ए.- 28 व रेखा की बुवाई करें।
– जौं की विलम्ब से बुवाई हेतु क्षेत्रीय संस्तुत प्रजातियों यथा ज्योति (क.572/10), मंजुला (के.329), आर.एस.- 6 की बुवाई 25 नवम्बर से करने हेतु बीज की अग्रिम व्यवस्था करें।

► रबी मक्का की खेती
– रबी मक्का की संकर प्रजातियों यथा पी.एम.एच.- 3, एच.क्यू.पी.एम.- 1, सीडटेक- 2324, शक्तिमान- 1, बुलन्द, संकुल मक्का की किस्मों धवल, शरदमणी, शक्ति- 1 लावा हेतु पर्ल- पाॅपकाॅर्न, मीठी मक्का की प्रिया डक्कन- 105, स्वीट काॅर्न व माधुरी स्वीट काॅर्न तथा शिशु मक्का हेतु एच.एम.- 4 व आजाद चारा हेतु जे0- 1006 कमला प्रजातियों की बुवाई शीघ्र समाप्त करें।

► तिलहनी फसलों की खेती
– सरसों की बुआई शीघ्र पूर्ण कर लें
– विलम्ब से बोई गई सरसों की फसल में विरलीकरण अवश्य करें तथा बुवाई के 20 से 25 दिन बाद आवश्यकतानुसार हल्की सिंचाई करें।
– सरसों के पौधों के समुचित विकास एवं अधिक शाखाओं हेतु शीर्ष भाग की खोटाई (तोड़ना) अवश्य करें।
– सरसों में आरा मक्खी का प्रकोप दिखाई देने पर 25 किग्रा. मैलाथियान धूल का बुरकाव करें।
► दलहनी फसलों की खेती
– चना की देर से बुवाई हेतु संस्तुत प्रजातियों पूसा- 372, उदय तथा पन्त जी- 186 की बुवाई करें।
– यदि किसान ने अब तक मटर की बुआई नहीं कि है तो मटर की सम्पूर्ण उ.प्र. हेतु संस्तुत प्रजातियों जैसे- रचना, मालवीय मटर- 15, सपना (के.पी.एम.आर.- 144- 1), पूर्वी उ.प्र. हेतु संस्तुत प्रजातियों मालवीय मटर- 2, पालथी मटर, पश्चिमी उ.प्र. हेतु जय (के.पी.एम.आर- 522), हरियाल, पंत पी- 42, अमन (2009), मध्य उत्तर प्रदेश हेतु संस्तुत प्रजातियों आर- 400, (इन्द्र)के.पी.एम., जे.पी.- 885, आदर्श (आई.पी.एफ.- 99- 15), विकास (आई.पी.एफ.डी. 99- 13), प्रकाश आदि प्रजातियों की बुवाई का कार्य शीघ्र पूर्ण करें।
– मसूर की सम्पूर्ण उ.प्र. हेतु संस्तुत प्रजातियों यथा नरेन्द्र मसूर- 1, डी.पी.एल.- 62, पंत मसूर- 5, एल.- 4076, के- 75, एच.यू.एल.- 57, शेखर- 3, शेखर- 2, पूर्वी उ.प्र. हेतु के.एल.एस.- 218 पश्चिमी उ.प्र. हेतु आई.पी. एल.- 406 मैदानी क्षेत्रों हेतु पन्त मसूर- 4, डी.पी.एल.- 5, पूसा वैभव तथा बुन्देलखण्ड हेतु संस्तुत प्रजाति आई.पी.एल.- 81 की बुवाई करें।

► गन्ना की खेती
– नवम्बर के अन्त में गन्ना बुवाई करने हेतु पाॅली बैग/डीकम्पोजेबुल बैग में एक- एक आॅख के टुकड़े की नर्सरी डालें। देर से काटे गये धान की फसल के उपरान्त खाली खेत में भी पालीबैग/डीकम्पोजेबुल बैग में तैयार किये गये पौधे की रोपाई कर अच्छी उपज प्राप्त की जा सकती है।
– सितम्बर- अक्टूबर में बोये गये गन्ने की फसल में जमाव उपरान्त एक हल्की सिंचाई करें तथा ओट आने पर 5 किग्रा./हे. एजोटौबैक्टर व 5 किग्रा. पी.एस.बी./हे. कल्चर का लाइनों में प्रयोग कर गुड़ाई करें। इससे वायुमण्डलीय नत्रजन का स्थिरीकरण होता है तथा फास्फोरस की उपलब्धता बढ़ती है।
– यदि शरदकालीन गन्ना के साथ गेंहूँ की फसल की अन्तः खेती करनी हो तो दो पंक्तियों के मध्य गेहूं की 3 पंक्तियां हल से बोयें।
– चीनी मिल में पेराई प्रारम्भ होने पर सर्वप्रथम शीघ्र पकने वाली प्रजातियों की पेड़ी की आपूर्ति करें तत्पश्चात् शरदकालीन शीघ्र पकने वाली प्रजातियों का बावग एवं सामान्य प्रजातियों की पेड़ी की आपूर्ति करें।
– परिपक्व गन्ने की कटाई जमीन की सतह से करके तुरन्त चीनी मिल या गुड़ इकाई भेजे।
– कटाई के बाद नमी की उपलब्धता के अनुसार सिंचाई करें। उचित नमी की दशा में गन्ना पंक्तियों से सटाकर गहरी जुताई कर संस्तुत उर्वरकों (200ः130ः100 किलोग्राम यूरियाः डी.ए.पी.: म्यूरिएट आफ पोटाश/हे.) की मात्रा डालें।
– पेड़ी प्रबन्धन के लिए भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान, लखनऊ द्वारा विकसित ‘पेडी प्रबन्धन मशीन‘ का प्रयोग करें।

► आलू
– आलू की बुवाई शीघ्र पूर्ण कर लें। अगेती फसल को सफेद मक्खी, लीफ हाॅपर तथा कटुकी कीट से बचानेे हेतु मोनोक्रोटोफास 40 ई.सी. की 1.2 लीटर मात्रा प्रति हे. की दर से 800 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
– यदि किसाना अब तक आलू की बुआई नहीं कर सके है तो आलू की मुख्य फसल बुआई हेतु कुफरी बहार, कुफरी आनन्द, कुफरी बादशाह, कुफरी सिन्दूरी, कुफरी सतलज, कुफरी लालिमा, कुफरी सदाबहार, कुफरी पोखराज तथा प्रसंस्करण योग्य प्रजातियों कुफरी सूर्या, कुफरी चिप्सोना- 1, कुफरी चिप्सोना- 3, कुफरी फ्राईसोना प्रजातियों की बुआई का कार्य पूर्ण करें।

► सब्जियों की खेती
फूलगोभी व पातगोभी में 50 कि.ग्रा. यूरिया प्रति हे. की दर से 35- 40 दिन की अवस्था में टाॅप ड्रेसिंग कर मिट्टी चढ़ायें।
– उचित नमी की स्थिति में टमाटर में निकाई- गुड़ाई सहित मिट्टी चढ़ाने का कार्य व स्टेकिंग करें। फसल को झुलसा रोग से बचाने के लिये 0.2 प्रतिशत (2 ग्राम/ली.) मैन्कोजेब का छिड़काव करें। कीटों से बचाव हेतु नीम आधारित कीट नाशकों का प्रयोग करें।
– प्याज की संस्तुत प्रजातियों यथा कल्याणपुर लाल गोल, पूसा रतनार, एग्रीफाउण्ड लाइट रेड, एग्रीफाउण्ड व्हाइट तथा संकर प्रजातियों यथा एक्स केलीवर, बरगण्डी, केपी, ओरिएण्ट, रोजी की नर्सरी अभी तक नहीं डाली हो तो अतिशीघ्र पूर्ण कर लें।
– पालक, मूली, शलजम, चुकन्दर, गाजर की संस्तुत प्रजातियों की बुवाई मेढ़ों पर करें।

► बागवानी
– आम में मिलीबग (गुजिया) से नियंत्रण हेतु तने के चारों ओर गहरी जुताई कर 2 प्रतिशत मिथाइल पैराथियान चूर्ण (200 ग्राम/पेड़) तने के चारों ओर बुरक दें।
– आम में शूट गाल मेकर एवं टैन्ट कैटरपिलर (जाला कीट) से प्रभावित शाखाओं की छॅंटाई कर उन्हें नष्ट कर दें तथा थायोमेथोक्सान का प्रयोग करें।
– आम में यदि शाखाओं से गोंद निकलने की समस्या हो तो पौधों की जड़ों के पास 200- 400 ग्रा. काॅपर सल्फेट प्रति वृक्ष की दर से प्रयोग करें।
– केले में 50- 60 ग्रा. यूरिया तथा 100- 125 ग्रा. म्यूरेट आॅफ पोटाश प्रति पौधे की दर से प्रयोग करें तथा 10 दिनों के अन्तराल पर सिंचाई करें।

► पशुपालन
– वरदान, मेस्काबी, बुन्देलखण्ड बरसीम (जे.एच.बी.- 146), बुन्देलखण्ड बरसीम (जे.एच.टी.बी.- 146) तथा बी.एल.- 10 प्रजाति के बरसीम बीज को 250 ग्रा. राईजोबियम कल्चर/10 किग्रा. बीज की दर से उपचारित करें तथा 25- 30 कि.ग्रा. बरसीम बीज के साथ 1 कि.ग्रा. टाइप- 9 सरसों के बीज को मिलाकर प्रति हे. की दर से बुवाई करें जिससे पहली कटाई में अधिक चारा उत्पादन हो।
– जई की विभिन्न प्रजातियों जैसे कैन्ट, बुन्देल जई- 99- 2, नरेन्द्र जई, बुन्देल जई- 822 एवं बुन्देल जई- 851 की बुवाई करें। बुन्देल जई- 822 बुन्देलखण्ड के लिए उपयुक्त है शेष प्रजातियां पूर्ण उ.प्र. के लिए उपयुक्त हैं।
– नवजात बछड़ों को उनके वजन के दसवें हिस्से के बराबर दिन में तीन बार बाॅटकर खीस अवश्य पिलायें।
– स्थानीय पशु चिकित्सक की सलाह से दुधारू पशुओं में पेट के कीड़े की रोकथाम हेतु कृमिनाशक दवा पिलायें।
– पशुओं खुरपका- मुंहपका रोग से बचाव के लिये एफ.एम.डी. वैक्सीन से टीकाकरण करायें।
– बकरियों में पोकनी रोग से बचाव हेतु पी.पी.आर. वैक्सीन से टीकाकरण करायें।

► मत्स्य पालन
– सरसों की खली एवं राइस पाॅलिश बराबर मात्रा में मिलाकर मछलियों के वजन का 1 प्रतिशत पूरक आहार प्रतिदिन दें।
– मत्स्य पालन तालाब के पानी का तापमान सुबह 6 बजे 20 डिग्री से. से कम होने पर मछलियों को आवश्यकतानुरूप ही पूरक आहार दें।
– जाड़े के मौसम में एपिजोटिक अल्सरेटिव सिन्ड्रोम नामक बीमारी मछलियों में पाई जाती है, इससे बचाव के लिये तालाब में चूना 250 किग्रा. प्रति हे. की दर से घोल बनाकर डालें अथवा सीफैक्स 01 ली. प्रति हे. की दर से घोल बनाकर तालाब में छिड़काव करें। यदि आवश्यकता हो तो ताजा पानी तालाब में भरें एवं गोबर न डालें।
– यदि मछलियां रोगग्रस्त हैं तो आवश्यकतानुसार ही पूरक आहार दें।
– तालाब में रोगग्रस्त मछली यदि मरी हुई दिखाई पड़ती है तो उसे तालाब से बाहर निकालकर जमीन में गाड़ दें तथा तालाब में 01 किग्रा. पोटेशियम परमैंगनेट प्रति हे. की दर से घोल बनाकर तालाब में छिड़काव करें तथा 15 दिन पश्चात् 250 किग्रा. चूने का घोल बनाकर तालाब में छिड़काव करें। पोटेशियम परमैंगनेट एवं चूना को 1 महीने के अन्तराल पर 3 बार घोल बनाकर तालाब में छिड़काव करें।
– रोगग्रस्त तालाब में जाल का उपयोग करने के पश्चात दूसरे तालाब में उपयोग न करें। जाल को पोटेशियम परमैंगनेट के घोल में धोकर सुखाने के बाद रखें अथवा उपयोग करें।
– जिन मत्स्य पालकों ने अभी तक जलकुम्भी नियंत्रण के उपाय नहीं किये हैं वे अपने तालाब से जलकुम्भी बाहर निकाल दें।
– थाई माँगुर एवं बिग हेड मछली पालना प्रतिबन्धित है, अतः इनको न पाला जाये।

► रेशम
– अच्छे रेशम कोया उत्पादन के परिणाम हेतु माउण्टेज का उपयोग किया जाये एवं रेशम कोये की हारवेस्टिंग माउण्टिंग तिथि के 04 दिन पश्चात की जाये।
– टसर रेशम कीटपालन अन्तर्गत कीटों का स्थानान्तरण दूसरें पेड़ों पर पत्ती की उपलब्धता के आधार पर सावधानी पूर्वक किया जाये तथा कीटों को पक्षियों से बचाने के लिए नियमित निरीक्षण करें।
– एरी रेशम कोया उत्पादन अन्तर्गत मौसम को दृष्टिगत रखते हुए कीटपालन गृह की खिड़की दिन में खुली रखीं जायें तथा रात्रि में बन्द कर दी जाये एवं नियमित सफाई कर बीमारयुक्त कीटों की छटाइ्र कर हटाया जाये।

► वानिकी
– कृषि वानिकी पद्धति के साथ- साथ कृषि- बागवानी- वानिकी, सब्जी- वानिकी, पुष्प- बागवानी- कृषि- वानिकी, चारागाह- वानिकी पद्धति को प्रोत्साहित करें।
– वानिकी वृक्षों के मध्य पड़े रिक्त स्थान में विभिन्न उपयोगी पौधों का रोपण करें।
– यदि यूकेलिप्टस की पौध उगाना चाहते हंै तो उन्हें अंकुरण कक्ष में बो दें। बीज रेन्ज कार्यालय एवं बाजार से किसान खरीद सकता है।
– किसान वृक्षारोपण हेतु अधिक जानकारी के लिए अपने जनपद/तहसील स्तर पर रेन्ज कार्यालय से सम्पर्क कर सकता है।

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